Thursday, May 01, 2014

सूरज अभी-अभी यहाँ से गया है





शाम हुई तो आज छत पर गये सूरज भाई से मिलने।देखा तो वे दूकान समेटने की तैयारी कर रहे थे। हमको देखते ही तपाक से रौशनी का हाथ बढ़ाकर हाथ मिलाये।करोड़ों मील लम्बा हाथ। झट से मिलाकर किरने समेटने लगे।

सूरज की किरने ऊपर की तरफ मुंह करके फैली थीं। जैसे किसी दुकान का ऊपर का पल्ला सरिये पर टिका हो।

दूर सूरज भाई पेड़ों की कुर्सी पर सेठ की तरह बैठे सब तरफ का मुआइना कर रहे थे। उनको ख्याल था कि कोई किरन छुट न जाए। ज़माना बड़ा खराब है न।

कुर्सी की बात से एक दिन की बात याद आ गई।एक दिन शहर के बाहर जा रहे थे कि देखा सूरज भाई कतार से लगे युकिलिप्तास के पेड़ों की पालकी पर बैठे चले जा रहे थे।जैसे कभी सप्तर्षियों की पालकी पर बैठे राजा नहुष इन्द्राणी से मिलने गए होंगे। कुछ दूर जाकर सूरज भाई पेड़ों की पालकी से उतर कर नीचे आ गये ।रौशनी की बाँहें दोनों तरफ फैलाकर खुले आसमान में खड़े हो गए।ऐसा लग रहा था जैसे एयरपोर्ट पर बोर्डिंग के पहले 'चेक इन ' के लिए बाहें फैलाये खड़े हों।

देखते-देखते पक्षी हल्ला मचाने लगे। चहकते हुए मानो सूरज भाई से कह रहे हों- "दादा आप चलो हम यहां देख लेंगे।" एक पक्षी तेज तेज चिल्लाने लगा। शायद वह कह रहा हो-" दादा, आप फ़ौरन निकलो। आजकल यहाँ चुनाव आचार संहिता लगी है। कोई पकडकर पूछताछ करने लगेगा कि किस प्रत्याशी के कहने पर देर तक चमक रहे हो। "

सूरज भाई मुस्कराते हुए क्षितिज की तरफ बढ़े और देखते-देखते अंतर्ध्यान हो गए। आसमान में उजाला अभी भी पसरा हुआ है जो इस बात का गवाह था की सूरज अभी-अभी यहाँ से गया है।

शाम हो गयी है।

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