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टुन्नू (बबाल) की समझ पर तो भरोसा है लेकिन पिंटू(समीरलाल) के हाल न पूछो। कोई भरोसा नहीं। अब बताओ हमने अपने मोबाइल कैमरे से उनकी इत्ती फ़ोटॊ खैंच दी क्यूट सी लेकिन पिंटू ने हमारे साथ क्या किया? केवल नेचुरल सी फोटो खींच के धर दी। जरको स्मार्टनेस का ख्याल नहीं रखा। उनके कैमरे से अच्छा तो हमारे यहां के फ़टाफ़ट स्टूडियो का फोटो होता है। अच्छा न लगे तो कह तो सकते हो कि ये हमारा नहीं, समीरलाल का फोटो है, लेकिन अच्छा आया है।
आप को पता नहीं है लेकिन भुगते तो हम हैं न! आपको बतायें कि समीरलाल को हमने अपने मोबाइल कैमरे में पहले खाते हुये पकड़ लिया। उनकी प्लेट में मार नास्ते भरे थे , उनके ब्लाग में टिप्पणियों की तरह! हम छूंछी प्लेट लिये खड़े थे। हमने उनको वहीं धमका सा दिया। क्या समझते हैं भाई! हम ब्लागर हैं। ब्लाग में फोटो लगाना जानते हैं! यही फोटो सबको दिखायेंगे कि सम्मानित ब्लागरों को भूखा मारा जा रहा है।
तो बस भैया टुन्नू क्या बतायें कि आपके पिंटू ने फ़टाक से हमारी प्लेट में ढेर नास्ता डलवा के फ़ोटॊ खैंच लिया। सच तो यह है कि फोटो नहीं हमको खैंचा गया। अगले को ये चिंता नहीं कि हम खा रहे हैं कि नहीं बस भरी प्लेट के फोटो खैंच के हमारा मुंह बंद कर दिया। सब जगह फ़ोटो सटा दिये। ये भी न देखा कि क्यूट लगे रहे हैं कि नहीं, स्मार्ट बने हैं कि नहीं बस छाप दिया । अब बताओ कोई क्या कहेगा- क्या खाली खाने-पीने गये थे सांस्कृतिक राजधानी।
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वैसे पसड़ने के फ़िर भी बहुत बहाने थे यथा:
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समीरलाल ने और तो और अपने इंतजाम के चक्कर में सालों पुरानी से चली आई कहावत लौटी बारात और गुजरे गवाह को कोई नहीं पूछता को भी आधा झूठा साबित कर दिया और शादी के अगले दिन भी बारातियों का ख्याल रखते रहे। आधा झूठा इसलिये कहा कि वहां गवाह वाला कोई मामला नहीं था इसलिये उसमें बेचारे वे क्या कर सकते थे।
आगे शायद जारी रहे। ऊपर के फोटो जयमाल के और प्रगति के जन्मदिन के अवसर पर केक-कटाई के। ये एकदम ऊपर का फोटो हमारा और दीपक बजाज का है जो समीरलाल ने साजिशन नेचुरल खींचा है। स्मार्टनेस और क्यूटनेस का जरा सा भी ख्याल किये बिना!
जबलपुर के कुछ और किस्से
By फ़ुरसतिया on January 15, 2009
पिंटू का कोई भरोसा नहीं
समीरलाल ने पिछली पोस्ट में टिपियाया कि गजल ऊ वाली नहीं पढ़ी गयी थी ये वाली पढ़ी गयी थी। बबाल भाई ने भी कह मारा किकहाँ सेहरा और कहाँ मर्सिया पढ़ना है, ये इल्म न होता तो बवाल क़व्वाल न होता महज़ वबाल होता ।अब हम क्या कहें? हमारा इशारा और एतराज इस बात पर था और है कि जब बबुआ ब्याहने के लिये जबलपुर कैंप किया जा रहा हो तो मर्सिया टाइप गजल लिखना गुनाह है। कल को कोई अनजान आदमी देखेगा तो यही कहेगा न कि देखो कित्ता दुखी इन्सान था जो लड़के की शादी में भी ऐसी भीगी गजल लिख रहा था कि पूरा जबलपुर भीगा जा रहा था। जब फ़ैशन के हिसाब से ही लिखना है आंसू, गम, जिल्लत ही पर ही काहे टाइम खर्च करना? उल्लास, उछल-कूद के भी भतेरे खिलौने मिलते हैं गजल-बाजार में।
हूटर किसी मौके का मोहताज नहीं होता
वैसे हम वहां तो हूट कर ही दिये होते। हूटर किसी मौके का मोहताज नहीं होता। किसी बहाने का इंतजार नहीं करता। हम होते तो समीरलाल को उचका के उनका ही पर्चा थमा देते। जैसे ही पढ़ते हम शुरू हो जाते- क्या बेमौसम गजल पढ़ रहे हो भाई।टुन्नू (बबाल) की समझ पर तो भरोसा है लेकिन पिंटू(समीरलाल) के हाल न पूछो। कोई भरोसा नहीं। अब बताओ हमने अपने मोबाइल कैमरे से उनकी इत्ती फ़ोटॊ खैंच दी क्यूट सी लेकिन पिंटू ने हमारे साथ क्या किया? केवल नेचुरल सी फोटो खींच के धर दी। जरको स्मार्टनेस का ख्याल नहीं रखा। उनके कैमरे से अच्छा तो हमारे यहां के फ़टाफ़ट स्टूडियो का फोटो होता है। अच्छा न लगे तो कह तो सकते हो कि ये हमारा नहीं, समीरलाल का फोटो है, लेकिन अच्छा आया है।
आप को पता नहीं है लेकिन भुगते तो हम हैं न! आपको बतायें कि समीरलाल को हमने अपने मोबाइल कैमरे में पहले खाते हुये पकड़ लिया। उनकी प्लेट में मार नास्ते भरे थे , उनके ब्लाग में टिप्पणियों की तरह! हम छूंछी प्लेट लिये खड़े थे। हमने उनको वहीं धमका सा दिया। क्या समझते हैं भाई! हम ब्लागर हैं। ब्लाग में फोटो लगाना जानते हैं! यही फोटो सबको दिखायेंगे कि सम्मानित ब्लागरों को भूखा मारा जा रहा है।
तो बस भैया टुन्नू क्या बतायें कि आपके पिंटू ने फ़टाक से हमारी प्लेट में ढेर नास्ता डलवा के फ़ोटॊ खैंच लिया। सच तो यह है कि फोटो नहीं हमको खैंचा गया। अगले को ये चिंता नहीं कि हम खा रहे हैं कि नहीं बस भरी प्लेट के फोटो खैंच के हमारा मुंह बंद कर दिया। सब जगह फ़ोटो सटा दिये। ये भी न देखा कि क्यूट लगे रहे हैं कि नहीं, स्मार्ट बने हैं कि नहीं बस छाप दिया । अब बताओ कोई क्या कहेगा- क्या खाली खाने-पीने गये थे सांस्कृतिक राजधानी।
खोये की जलेबी
बहुत लोगों ने खाने के विवरण चाहे हैं। वो हमने जानबूझकर नहीं लिखे। हम नहीं चाहते कि किसी के मुंह में पानी आये और उसके की-बोर्ड को पोंछे की जरूरत पड़े। वैसे स्वीट डिस में हमने जबलपुरिया जलेबी धांस के खायी। जबलपुर की खोये की जलेबी बड़ी स्वाददार और मजेदार होती है। जबलपुरिया ब्लागर साथियों ने ही मुझे वहां बताया कि इसका पेटेंट कराने के लिये परसाई जी ने लोगों को सलाह दी थी।ये भी कोई शादी है
शादी तो निपट गयी लेकिन हमें लगा कि यह भी कोई शादी है भला। शादी में जब तक दे तेरे की , ले तेरे की न हो तब तक भला कहीं मजा आता है। जबलपुर की ही शादी के किस्से परसाई जी ने मुन्नू भैया की बारात में लिखे हैं। हमें लगा कि उनमें से कोई एक तो ,भले ही रस्म के तौर पर ही सही ,तो दोहराया जाता। लेकिन हमारे अरमान न पूरे हुये। समीरलाल के इंतजाम से सब चौपट कर दिया।वैसे पसड़ने के फ़िर भी बहुत बहाने थे यथा:
१. जलेबी के साथ दही का इंतजाम काहे नहीं था?इत्ते सारे धांसू बहानों के बावजूद कोई पसड़ा नहीं और बीचबचाव की कोई गुंजाइश नहीं निकली। हम भी इसलिये कुछ नहीं बोले काहे से कि टिकट अगले दिन का था। अगर पसड़ते तो जाते कहां जाड़े के मौसम में होटल छोड़कर!
२. सारे बरातियों को खुले आकाश के नीचे बैठा दिया गया ?
३. रायते में पानी ज्यादा मिला दिया गया।
४. खाने का इंतजाम खुले में काहे किया गया?
५. मान्यों का उचित सत्कार नहीं किया गया!
६. मंडप के नीचे उनको बुलाया लेकिन इनको काहे नहीं बुलाया।
७. घर की बहू-बेटियां डांस कर रही थीं (बुजुर्गों को काहे नहीं नचाया गया)
८. बारात स्थल पर आनलाइन ब्लागिंग की सुविधा काहे नहीं थी?
समीरलाल ने और तो और अपने इंतजाम के चक्कर में सालों पुरानी से चली आई कहावत लौटी बारात और गुजरे गवाह को कोई नहीं पूछता को भी आधा झूठा साबित कर दिया और शादी के अगले दिन भी बारातियों का ख्याल रखते रहे। आधा झूठा इसलिये कहा कि वहां गवाह वाला कोई मामला नहीं था इसलिये उसमें बेचारे वे क्या कर सकते थे।
हैप्पी बर्थ डे टु बहूरानी
रात जयमाल होकर निपटी तो पता चला अगले दिन ही बहूरानी का जन्मदिन था। रात के बारह बजते ही माहौल हैप्पी बर्थ डे टू यू नुमा हो गया। अगले दिन दोपहर के बाद हाल में ही केक काटा गया। सबने केक खाया और बहूरानी को नये जीवन की फ़िर से मंगलकामनायें दीं। प्रगति को जीवन पथ पर अविराम प्रगति करते रहने की दुआयें दी गईं!आगे शायद जारी रहे। ऊपर के फोटो जयमाल के और प्रगति के जन्मदिन के अवसर पर केक-कटाई के। ये एकदम ऊपर का फोटो हमारा और दीपक बजाज का है जो समीरलाल ने साजिशन नेचुरल खींचा है। स्मार्टनेस और क्यूटनेस का जरा सा भी ख्याल किये बिना!
एक है लाल तो दूजा बवाल !
regards
आप भी फुरसतिया जी पहले कराने का काम बाद में कर दिए.. ये ख़बर पहले देनी चाहिए थी.. अब हम इत्ती लेट होगये जन्म दिन की बधाई देने में ..और इब कोई हमारे लिए केक थोड़े ही बचा होगा.
आपकी लच्सदार भाषा में जबलपुर यात्रा वृतांत में बेहद मजे आ रहे हैं. सो पिंटू जी …नही नही..हमारे गुरुदेव के सारे किस्से जारी रहना चाहिए.
आज आपने वर्षों बाद जलेबी की के साथ दही की याद दिला दी सो हम तो जा रहे हैं दही जलेबी खाने अब.
और हां जबलपुर के बडकुल हलवाई की खोये की जलेबी का स्वाद तो लाजवाब है. पर हमारे यहाँ तो मैदा वाली से ही काम चलाना पडेगा.
रामराम.
बामुलाहिज़ा बयान ग़ुज़रे हुये ग़वाह
हर लाइन पर निकलती है, वाह वाह !
सारी सर, टुन्नू मेरा भी नाम है..
सो, टिप्पणी भी बवालनुमा निकल पड़ी,
निकल पड़ी तो.. यह मेरे दिल की बात ही समझी जाये ।
achchha hua ki ham nahi aaye….!!!!!!!! itani asuvidhao.n ke beech bhala kaise rah paate ham log ):
mazaa aa gaya baarat me khud ko mahasoos kar rahe hai.n….!
dhanyavaad
स्वेटर बदल गया…..
केक देखकर अच्छा लगा ……बहू को ढेरो शुभकामनाये …..
‘.ऐसे शरीफ बाराती भगवन हर लड़की के बाप को दे …पर ये wi fi कनेक्शन की मांग ????
अंत वाली फोटू में समीर जी आपको और दीपक जी को सूप का मज़ा लेते हुए पकड़े हैं ताकि सबको साबित किया जा सके कि सम्मानित ब्लॉगरों को भूखा नहीं रखा गया (यदि आप ऐसा दावा करते तो)!!
प्रगति को देर से ही सही जन्मदिन की बधाई ।
और आपका शुक्रिया क्योंकि आपके बहाने हम भी बारात का लुत्फ़ उठा रहे है।
यह इंडिया है !
यह तो बहुत नाइंसाफी थी . पिंटू के बेटे की शादी मे ऑन लाइन ब्लॉग्गिंग सुविधा नही थी . और आप कानपुरिया हो कर शांत रहे .
सौ. प्रगति बहुरानी को सालगिरह पर आशीर्वाद
और अब जो फोटो लगायेँ हैँ हम तो
बेहद खुश हुए देख कर
शानदार च जानदार सब -चकाचक लगा -
खास तौर से,
जबलपुर की जलेबी और केक के क्या कहने …
- लावण्या
समीर जी को खोए की जलेबी आप के हाथ भिजवानी चाहिए थी ना !!
आखिर बाकी ब्लॊगरों का कुनबा खाली-पीली पढ़-पढ़ कर दूल्हेवालों से मुँह मीठा करवाने के जलेबीदार सपने तो न पालता।
- विजय
वैसे मैं इन फ़ुरसतिया जी को पहचान चुका था बात करते वक्त ही के “दीर्घ दन्ता क्वचित मूर्खा” सो मैंने जानबूझकर बातें भी की थीं और कहावत पटकी थी। हमारी नानी जी सही कहा करती थीं। कानपुरिया कान का कच्चा होता है। सिद्ध हुआ।
—आपका अपना बवाल
पूरी श्रृंखला एलबम की तरह संग्रहणीय है.
मैं इन सभी आलेकों को लेमिनेट करा कर बिना आपकी इजाजत उनकी फोटो एलबम में लगवा रहा हूँ..एलबम के साथ आँखों देखा विवरण उसे सजीव बना देगा.
बहुत आभार इन आलेखों का.
–समीर लाल ( पिन्टू)
p.s. बाकी सारे लोग भी आमंत्रित हैं जबलपुर..भेड़ाघाट गुमाया जायेगा, जलेबी खिलाई जायेगी और ठहरने की उत्तम व्यवस्था. नहाने के लिए गरम पानी और तिवारी के यहाँ की कट चाय. आने की अग्रिम सूवना भेजें तो स्टेशन से लिवाने की व्यवस्था.
मतलब अइसेहि पूछत हैं . सामान्य ज्ञान बढावै खातिर .
बकिया आपके पसड़ने के बहाने ‘ट्रैडीशनल’ भी हैं और ‘कंटेम्परेरी’ भी . कौनो पसड़ा नहीं इहै अजीब ट्विस्ट है कहानी का . वैसे हिंदुस्तानी शादी बिना पसड़े-फैले और बिना रूठा-मनउअल के सम्पन्न हो जाए तो परम्परागत हिंदुस्तानी शादी नहीं लगती . कौनो ‘साउंड बाइट’ , कौनो कहानी नहीं बनती . आगे जुगाली करने के लिए .