Tuesday, July 28, 2015

तोहफे स्वीकार करना अच्छी आदत नहीं होती

कल शाम कलाम साहब के निधन की खबर सुनकर उनको श्रद्धांजलि देते हुए पोस्ट लिखी थी। अभी देखा तो उसकी सेटिंग 'व्यक्तिगत' थी। मतलब यह केवल मुझको दिखने के लिए थी।

कलाम अपनी किताब 'टर्निंग प्वाइंट्स' में 'जो दूसरों से सीखा' अध्याय में अपने पिता से मिली सीख का जिक्र करते हुए लिखा है:

"तोहफे स्वीकार करना अच्छी आदत नहीं होती। तोहफे हमेशा किसी खास मकसद के साथ दिए जाते हैं इसलिए उन्हें लेना खतरनाक है। उनका यह पाठ मेरे दिमाग में आज भी ताजा है, जबकि मैं आज अस्सी बरस से ज्यादा उम्र का हो चुका हूँ। यह घटना मेरे दिमाग में गहराई से घर कर गई है,और उसने मेरा मूल्यबोध रचा है। अब भी, जब कोई व्यक्ति मेरे सामने कोई उपहार लेकर आता है, मेरा दिल दिमाग काँप उठता है।"
यह बात उनके पिताजी ने उनसे तब कही जब कलाम साहब के पिताजी रामेश्वरम द्वीप में पंचायत चुनाव में ग्राम सभा के अध्यक्ष चुने गए थे। पिता की अनुपस्थिति में उनके यहां कोई व्यक्ति तोहफे में कुछ कीमती कपड़े, चांदी के प्याले और कुछ मिठाई दे गया था। कलाम साहब सबसे छोटे बच्चे थे। उन्होंने उस व्यक्ति के लाये तोहफे घर में रखने को कहा। लौटने पर पिताजी, जो कि उनको बहुत प्यार करते थे, से उन्होंने पहली बार मार खाई। वे रोने लगे। उसके बाद उनके पिताजी ने अपनी नाराजगी की वजह बताई और समझाया कि बिना उनकी इजाजत के कभी कोई तोहफा न स्वीकार करें। एक हदीथ सुनाते हुए समझाया कि,' जब खुदा किसी इंसान को किसी ओहदे पर बैठाता है तो वह उसकी जरूरतों का भी बन्दोबस्त करता है। अगर कोई शख्स इससे ज्यादा कुछ लेता है तो वह गैरवाजिब होता है।'

कलाम साहब की स्मृति को नमन। विनम्र श्रद्धांजलि।

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