Sunday, July 03, 2016

धनात्मक बातें करनी चाहिए

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जबलपुर में कलीम से मुलाकात हुई थी। पुलिया पर। 10 मार्च, 16 को। कलीम कब्ज़ा पेटी रिपेयर का काम करते थे। इस असुरक्षित धंधे के बजाय कुछ दूसरा काम करने की सलाह हमने ऐसे ही उछाल दी तो कलीम ने बताया कि वे पोल्ट्री फार्म वगैरह के लिए दाना बनाने का काम करना चाहते हैं। बहुत दिन का सपना है उनका। चार लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

50-60 हजार की रकम चाहिए थी काम शुरू करने के लिए। पहले तो बस राय देने तक ही सीमित रहे हम। लेकिन अपना काम करने का सपना जिस सिद्दत से कलीम देखने लगे उससे हम उनके लिए लोन की कोशिश में भी जुटे। 'मुद्रा लोन' के बारे में पता किया। बैंक अधिकारियों से बात की।

इस बीच कलीम से अक्सर बातचीत और मुलाकात होने लगी। एक दिन वो मेरे कमरे में भी आये। उनके अपना काम करने की ललक देखकर मन किया कि अपने पास से रूपये दे दें निकाल कर लेकिन ऐसा किया नहीं। पर यह जरूर कहा एक बार फिर -'जिस शिद्दत से तुम यह सपना देख रहे हो उसके बाद फिर इसको पूरा होने से कोई रोक नहीँ सकता।'

इस बीच हम कानपुर आ गए। उधर कलीम का लोन का कागज सरकने लगा। हमारे जबलपुर के साथी विनय को इस काम में सहयोग के लिए बैंक गए। वहां अधिकारियों से मिले। वहां कुछ देरी हुई। फिर भी कुछ हुआ। बाद में बैंक वालों ने कोटेशन माँगा कि सामान कहां से खरीदेंगे। एक सप्लायर ने मेरे कहने पर कोटेशन दे दिया।

बैंक वाले सर्वे के लिए आये। लोन पास हो गया है। 40600/- रूपये। पता चला कि लोन का चेक वो उस सप्लायर के नाम ही देंगे जिसने कोटेशन दिया था। वह भी तब जब मशीन बन जायेगी। हमने फिर बात की बैंक वाले साहब से। कुछ गर्मा-गर्मी भी हुई। जबलपुर में होते तो बैंक में ऊपर शिकायत भी करते। मशीन बन जायेगी फिर लोन का क्या आचार डालेगा कोई।

बैंक वाले क्या इसी तरह 'मुद्रा लोन' पास करते हैं ? क्या प्रधानमंत्री जी को पता है कि 'मुद्रा लोन' तब पास करते हैं जबलपुर की 'सटक बैंक' के अधिकारी जब वह काम हो जाये जिसके लिए लोन स्वीकृत हुआ है।

फिर मैंने सप्लायर से अपनी गारन्टी पर सामान देने को कहा। उसके पास जो सामान था उसने दे दिया। बाकी सामान कलीम ने उधारी पर इधर-उधर से लिया। मशीन बनाने में जुट गए।

आज फोन पर बात हुई तो पता चला कि कलीम की मशीन लगभग बन गयी है। बैंक वाले देख भी गए हैं। सोमवार को पैसा देने के लिए बुलाया है। क्या पता सोमवार को लोन का चेक मिल भी जाये। 1200 रूपये महीने की क़िस्त बनी है।

अब जब सब काम लगभग पूरा हो गया है। कलीम की मशीन बन गयी है। उनका अपना काम करने का सपना पूरा हो जायेगा। शायद ईद के पहले ही।

कलीम से जब हमने अपना काम करने की बात कही थी तब मुझे अंदाजा नहीं था कि ऐसा कुछ होगा। लेकिन उन्होंने मेरी बात को गंभीरता से लिया और अपना बहुत दिनों का सपना पूरा करने में जुट भी गए।

इसीलिये कहते हैं धनात्मक बातें करनी चाहिए। क्या पता कौन सी बात कब सच साबित हो जाए।
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