Friday, December 16, 2016

सूरज भाई छापेमार बन गए

सूरज भाई छापेमार बन गए
कोहरे को पकड़, रगड़ दिए।
ठण्ड के थोड़े पर कतर दिए
हवा, धूप के हाथ मिला दिए।
उजाले की गस्त भी बढ़ गयी
धूप भी जरा और गुनगुनी हुई।
धूप मुस्कराकर अब पसर गई
सुबह अब यहां सुहानी हो गई।
धूप का टुकड़ा इधर टहल रहा
बच्चा मानो आँगन में मचल रहा।
घास-फूल मौज से इठला रहे
मानों इनके अच्छे दिन आ गए।
यह तो यहां का हाल है कहा
धूप का हाल कैसा हैं वहां?
-कट्टा कानपुरी

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