Tuesday, May 09, 2017

दिल्ली में साइकिलबाजी


आज सबेरे बहुत दिन बाद साइकिल चलाई। दिल्ली में। जंतर-मंतर के सामने धरना दे रहे एक भाई बोले- ’ दिल्ली देश का दिल है। कलाट प्लेस दिल्ली का दिल है।’ इस लिहाज से तो हमने देश के दिल पर साइकिल चला दी। लेकिन मोहब्बत से चलाई। इसलिये सब माफ़।
सबेरे होटल से टहलने निकले। दरबान से बतियाने लगे। दरभंगा के उमाकान्त पांच साल पहले दिल्ली आये थे। यहां दरबानी करते हैं। 15-17 हजार मिलते हैं। बारह घंटे की ड्यूटी आंखों में बजी हुई लग रही थी। हर आने वाले गाड़ी पर बैरियर खोलना। बन्द करना।
और कोई काम नहीं मिला पूछने पर बोले- ’दिल्ली आये तो चार-पांच साल बरबाद कर दिये इधर-उधर। अब 35 साल के हो गये। और कोई क्या काम मिलेगा।’
गेट पर ही साइकिलें खड़ी थीं। पता चला घूमने ले जा सकते हैं। एक साइकिल इशू कराई। निकल लिये। पता चला पास में इंडिया गेट है। उधर ही बढ गये।
सड़क पर फ़ुटकर मार्निंग वाकर दिख रहे थे। एक बुजुर्ग की बनियाइन पर लिखा था - ’लिव हैप्पिली।’ एक महिला अपनी सहेली के साथ फ़ुर्ती के साथ टहल रही थीं। हाथ का डंडा इत्ती फ़ुर्ती से लपलपा रहीं थीं कि चर्बी डर के मारे पास न फ़टके।
हैदराबाद हाउस के पास मोड़ पर एक बुजुर्ग दम्पति से हमने इंडिया गेट का रास्ता पूछा। उन्होंने मोहब्बत से फ़ुल तसल्ली के साथ समझाया। देर तक और दूर तक देखते रहे कि हम सही जा रहे हैं कि नहीं।
बुजुर्गों से बतियाने का यह उत्तम उपाय है उनसे कुछ पूछते रहो। भले ही अमल में मत लाओ। उनके पास जो जानकारी होती है उसको पताकर उनको सुकून मिलता है। दफ़्तर में बॉस को भी बरतने में यह उपाय अमल में लाया जा सकता है। साहब को जो आता हो उनसे पूछो। साहब को ज्ञान प्रदर्शन का मौका मिलेगा। उसको खुशी मिलेगी। आप भी खुश रहोगे।
इंडिया गेट पर लोग वर्जिश कर रहे थे, टहल रहे थे, गपिया रहे। कोई अपने शरीर दोहरा कर रहा था। कोई दांये-बांये हिला रहा था। सबेरे वाली धुन बज रही थी। पानी और आइसक्रीम के ठेले लगे हुये थे। चाय का जुगाड़ कहीं नहीं दिखा। पता लगा टहलकर बेचने वाले आते हैं चाय वाले। हम लौट लिये।
लौटते हुये सूरज भाई हमको चारो तरफ़ से लपेटकर रोशनी से पूरा नहला दिये। हम खुश। पूरे शरीर से पसीने की बूंदे किरणों से मिलने के लिये बाहर निकल आई। दोनों के मिलते ही हवा भी चलने लगी। मजेदार मामला हो गया।
चौराहे पर देखा एक मोटरसाइकिल पर एक महिला बड़ा सा डंडा थामे चली बैठी थी। हमें लगा -’कहां लट्ठ चलाने जा रही हैं ताई।’ लेकिन फ़िर देखा कि डंडे के नीचे झाड़ू भी बंधी थी। मोटर साइकिल वाला उनको ड्यूटी की जगह पर छोड़ने जा रहा था।
सड़क के दोनों तरफ़ झाड़ू लगा रहे थे लोग। आहिस्ते-आहिस्ते। एक लड़का ठेले पर सब्जी बेचने निकला था। जिस ठेले में कूड़ा उठता है उसी तरह के ठेले में सब्जी बिकती देखकर थोड़ा अटपटा लगा। लेकिन फ़िर सोचा- ’यह दिल्ली है मेरी जान।’
जंतर-मंतर के पास फ़ुटपाथ पर एक चाय की दुकान दिखी। वहीं चाय पीते हुये बतियाये। सतीश मित्तल नाम है दुकान मालिक का। 37 साल बाद फ़ुटपाथ पर चाय की दुकान जुगाड़ पाये हैं। पर्ची कटती है। जब मन आये भगा दिये जाते हैं।
पास में ही धरना देने वाले लोग बैठे थे। पता चला कि रामपाल के समर्थक हैं। महीनों से रामपाल की गिरफ़्तारी का विरोध कर रहे हैं। उनको छुड़वाने के लिये धरना दे रहे हैं।
चाय की दुकान पर एक आदमी चाय पीने आया। बोला-’ चाय पिलाओ यार, आज अभी तक रामपाल की चाय आई नहीं।’ पता चला कि रामपाल के धरने में शामिल लोगों के लिये चाय-पानी का इंतजाम होता है। उनके लिये चाय आती है तो बाकी लोग भी पी लेते हैं।
हम रामपाल के धरने का जायजा लेने के पहले वहीं पर अकेले धरने पर एक और भाई जी से बतियाने लगे। अपनी बुजुर्ग मां के साथ धरना दे रहे भाई जी का कहना है कि उनके पास ऐसी स्कीम है जिससे देश के लोगों के हाल सुधर जायेंगे। गरीबों का भला होगा। अपनी बात कहने के लिये महीनों से धरने पर बैठे हैं लेकिन सरकार सुनती ही नहीं। हर जगह चिट्ठी लिख रखी है। कोई जबाब ही नहीं देता।
बुजुर्ग महिला अस्सी के करीब की उमर की होंगी। सांस की तकलीफ़ भी लगी। मेहरौली से उनका बेटा देश के सुधार के लिये जबरियन धरने पर लाकर बैठा दिया। हमने माता जी के हाथ सहलाये और तबियत पूछी तो वे भावुक होकर अपने बेटे से कहने लगीं -’ये क्या कह रहे हैं?’ धरना -भाई ने हमसे चाय पानी करके जाने का आग्रह किया लेकिन हम निकल लिये। शुभकामनायें देकर।
आगे रामपाल की रिहाई के लिये तमाम लोग धरने पर बैठे थे। हमने पूछा तो लोग रामपाल की महिमा ऐसे बताने लगे जिससे हमें लगा कि अगर हमने थोड़ी देर और सुनी महिमा तो हम भी अपना काम-धाम छोड़कर यहीं धरने पर बैठ जायेंगे। मजे की बात लोग आते जा रहे थे। हमारे साथ में दस-बारह महिला-पुरुषों का समूह आया और राम-राम कहता हुआ धरने पर बैठ गया।
एक धरनावीर ने मुझे बताया कि उनको कैंसर था। बाबा जी ने ठीक कर दिया। इसीलिये वह धरने पर है। उनकी रिहाई के लिये। बाद में एक कार्ड भी दिखाया उसने जिसके हिसाब से वह राजस्थान पुलिस की नौकरी में है। रामपाल भक्तों का कहना है - ’जिस तरह राम, कृष्ण, मीरा को पहले लोग मानते नहीं थे। बाद में उनका महत्व समझा गया उसी तरह रामपाल की अहमियत अभी लोग समझते नहीं हैं।’
एक ने बताया - ’रामपाल आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। पुलिस से आजादी की लड़ाई, अदालत से आजादी की लड़ाई, नेताओं से आजादी की लड़ाई।’
हमने पूछा -’ इस लड़ाई के लिये पैसा कहां से आता है।’
वह बोला -’ लोग सहयोग करते हैं।’
हमको चाय की दुकान पर बैठे आदमी की बात याद आई। वह कह रहा था -’इन लोगों को विदेश से पैसा मिलता है। सरकार के खिलाफ़ हल्ला मचाने के लिये।’ हमको समझ नहीं आया कि किसकी बात सच मानें। इसलिये हम आगे बढ लिये।
आगे और तरह-तरह के लोग धरने पर बैठे थे। एक भाई अररिया, बिहार से आये थे धरना देने। वे कश्मीर को भारत का अंग मानने के लिये, पाकिस्तान का विरोध करने के लिये धरने पर बैठे थे। हमने फ़ोटो खींचने के लिये कैमरा ताना तो वे अपना तख्ती जिसमें नारे लिखे थे एक हाथ में लेकर दूसरे से मुट्ठी तानकर पोज देने लगे। हमने उसी पोज में उनका फ़ोटो लिया।
अब्दुल गफ़ूर तूफ़ानी का कहना है कि इस्लाम में हिंसा हराम है। वे यह भी बोले कि हम नकली धरना देने वाले नहीं हैं कि सुबह बैठें दोपहर को फ़ूट लें।
हमको वापस लौटने की जल्दी थी इसलिये हम फ़ूट लिये। लेकिन लौटते हुये एक आइडिय़ा हमारे दिमाग में आया कि व्यंग्य की हालिया स्थिति से हलकान लोगों को भी दिल्ली के जंतर-मंतर में धरना पर बैठ जाना चाहिये। क्या सीन बनेगा जब कोई तख्ती लिये दिखेगा। हमारी मांगे हैं।
1. व्यंग्य को मठाधीशी से मुक्त कराना।
2. व्यंग्य को सपाटबयानी से मुक्त कराना।
3. व्यंग्य से गाली-गलौज को बाहर करना।
4. व्यंग्य में 'कदम ताल' को बैन किया जाना।
5. व्यंग्य में बाजारू लेखन बैन करना।
और मांगे धरना देने वाले अपने हिसाब से सोच सकते हैं। होटल में आये और चाय चुस्कियाते हुये पोस्ट ठेल दी।
आपको कैसी लगी। बताइयेगा।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10211352307496886

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