कई दिन से हम श्रीमती जी के प्रिपेड फ़ोन में बैलेन्स डलवाने की कोशिश कर रहे थे। कई आनलाइन साइट में भुगतान किया। हर साइट ने कुछ ही देर में माफ़ी मांगकर पैसा वापस कर दिया। मतलब मोबाइल चार्ज नहीं हुआ। हमें लगा कुछ मोबाइल गड़बड़ा गया है शायद।
आज शाम को घर आते ही फ़िर किस्सा-ए-मोबाइल शुरु हुआ। हम उसको जेब में डालकर बाजार की तरफ़ निकल लिये। मोबाइल चार्ज करने वाले को नंबर बताया। उसने सेवाप्रदाता पूछा। हमने बता दिया- बीएसएनएल। उसने पैसे लिये और मोबाइल चार्ज कर दिया।
मोबाइल का सेवाप्रदाता बीएसएनएल बताते ही हमको पता चल गया कि हमसे मोबाइल चार्ज क्यों नहीं हो पा रहा था। असल में मोबाइल का सेवा प्रदाता बहुत दिनों तक ’वोडाफ़ोन’ रहा। इसी साल बीएसएनएल में पोर्ट कराया था। लेकिन अवचेतन मन में वोडाफ़ोन ही जमा रहा। सो लगातार तीन दिन तक वोडाफ़ोन में ही चार्ज करते रहे। वो तो भला हो आज मोबाइल की दुकान चले गये। मोबाइल तो चार्ज हुआ ही। साथ ही यह घर वालों को हमारे भुलक्कड़पन पर कुछ दिन हंसने का बहाना भी मिला।
हमको भी यह फिर यह सीख मिलीे कि जब कोई गड़बड़ हो रही हो तो उसको अलग तरह से करके देखना चाहिये। हो सकता है मसला सुलट जाए। 
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मोबाइल की दुकान पर ही एक भाईसाहब मिले। लगातार मोबाइल चार्ज करवाने की कोशिश कर रहे थे। हुआ नहीं। चार्जिंग बार-बार फ़ेलियर बताता रहा। वे निराश होकर वापस चल दिये।
हमने बतियाने की गरज से उनसे पूछा - ’कहां फ़ोन करना है?’ उन्होंने बताया ’झांसी।’ हमने अपने मोबाइल से उनके घर बात करा दी। उन्होंने अपनी बिटिया को बताया कि - ’सुबह फ़ोन करेंगे अभी बैलेंस नहीं है मोबाइल में। अभी किसी दूसरे के फ़ोन से बात कर रहे हैं।’
फ़ोन के बाद और बतियाये। पता चला कि भाईसाहब ट्रक चलाते हैं। मुंबई से आये हैं। यहां आकर ट्रक छोड़ दिया। दूसरा ड्राइवर ले गया है। हमने मजे लिये-
’मुंबई से आये हो। मोबाइल में बैलेंन्स गोल।’
’मुंबई से आये हो। मोबाइल में बैलेंन्स गोल।’
भाईसाहब अपना भौकाल दिखाने लगे। मोबाइल में ’योगीजी’ का नम्बर दिखाया। बोले-’राजनाथ सिंह से परिचय है। श्रीप्रकाश जायसवाल के रिश्तेदार का ट्रक चलाते हैं।’
हमने कहा- ’ आप तो जलवेदार आदमी हो। कोई काम धाम पड़ेगा तो पकडेंगा आपको।’’
इस पर उन्होंने और जलवेदार अंदाज में कहा-’आप जब कहो मिलवा दें। चलो लखनऊ भेंट करा दें।’
हमने कहा -’छोड़ो अभी नहीं। जब कभी काम पड़ेगा बतायेंगे।’
फ़िर हमने कहा-’ और बात करनी हो तो कर लो।’
इस पर भाईसाहब भावविभोर हो गये। बोले-’ अरे नहीं अंकलजी। अब सुबह कहीं न कहीं से चार्ज करवाकर फ़ोन कर लेंगे।’
अंकलजी सुनकर हमको और हंसी आ गयी। मैंने कहा- ’ अच्छा हम घर से कुछ पैसे का चार्ज कर देंगे।’
यह सुनते ही हम और गहरे अंकलजी हो गये। और तमाम बातें हुईं। हम फ़िर भाईसाहब को विदाकरके घर चले आये।
घर आकर दोनों फ़ोन चार्ज कराये । फ़ौरन हो गये। भाईसाहब के लिये 50 रुपये कुर्बान करने के बाद फ़ोन करके बताया तो खुश हो गये। हम भी खुश। बोले- ’खाकर बात करेंगे ।’
फ़ोन चार्ज करते हुये हम सोच रहे थे कि मान लो भाईसाहब कोई गड़बड़ आदमी निकलते हैं तब क्या होगा। प्रमाण होगा कि एक गड़बड़ आदमी का फ़ोन हमने रिचार्ज कराया। हम भी गड़बड़ी में शामिल हैं। ऐसा हुआ तो क्या होगा?
आजकल आये दिन होते लफ़ड़ों का यह सहज साइज इफ़ेक्ट हुआ है कि समझदार माने जाने वाले लोग सहज सहयोग/भलाई के कामों से हाथ खींचने शुरु कर दिये हैं। हवन करते हुये कहीं हाथ न जल जायें।
बहरहाल हमने अपने घरवालों और दोस्तों के लिये अपने ऊपर हंसने का एक मौके का इंतजाम कर दिया कि तीन दिन तक हम फ़ोन बीएसएनएल का फ़ोन वोडाफ़ोन के पते पर चार्ज करने की कोशिश करते रहे। लेकिन हुआ नहीं। यह है सहज बेवकूफ़ी का सौंदर्य। 
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