Wednesday, January 31, 2018

दिल्ली में साहित्यकार साहित्य के अलावा सब कुछ रचते हैं-- यशवन्त कोठारी



1. दिल्ली में साहित्यकार साहित्य के अलावा सब कुछ रचते हैं। दिल्ली-वाद ने हिंदी रचनात्मक साहित्य का बड़ा नुकसान किया है।
2. आजकल के सम्पादक- लेखक तो बस.... बोसिज्म के मारे हैं।
3. किसी लेखक को नीचा दिखने का आसान उपाय ये है की उसकी रचना को नक़ल घोषित कर दो, करवा दो।
4. जिस तरह औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है ठीक उसी तरह लेखक ही लेखक का सबसे बड़ा दुश्मन होता है।
5. इधर फेसबुक पर गज़ब का धमाल है। हर व्यक्ति कवि है यह माध्यम मुझे भी रुचा, हिसाब चुकाने की सबसे सुरक्षित व आसान जगह। बड़े लेखक तक घबराते दिखे। कब कौन भाटा फेंक दे, बाल्टी भर के कीचड़ उछाल दे। लेकिन मज़ेदार जगह है। लगे रहो मुन्ना भाई व बहनों. कभी तो लहर आएगी।
6. नैतिकता और ईमानदारी का पाठ पढाने वाले हम सब कितने नीच और गिरे हुए हैं यह साहित्य ने ही दिखाया, सिखाया, सैकड़ों उदहारण दे सकता हूं।
7. एक शाल, अंगोछे, रूमाल, कागज के प्रमाण पात्र के लिए कैसे-कैसे हथ-कंडे हैं हम लोगों के पास? यदि नकद राशि भी है तो देने वाले का मंदिर बना देंगे या दाता चालीसा लिख देंगे, या नकद राशि को निर्णायकों को चढ़ा देंगे। दो पांच लाख का इनाम लेने बाद भी एक अंगोछे व इक्क्यावन रूपये के इनाम के लिए गिडगिड़ाते हैं, ये कैसे नाखुदा है, मेरे खुदा।
- यशवन्त कोठारी
रचनाकार द्वारा आयोजित संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन के लिये लिखे गये लेख के अंश। पूरा लेख यहां बांचिये http://www.rachanakar.org/2018/01/13.html


No comments:

Post a Comment