Friday, February 09, 2018

सूरज भाई अपनी 'किरण टार्च'

चित्र में ये शामिल हो सकता है: आकाश, बादल, ट्विलाइट, बाहर और प्रकृति
आसमां में धूप का अलाव सुलगाये सूरज भाई

बहुत दिन बाद कल सूरज भाई से मुलाकात हुई। आसमान में धूप का अलाव जैसा जलाए ताप रहे थे। उनको कौन पैसा पड़ना है। जहां मन किया लाख - दो लाख फोटान जलाकर ताप लिए। कोई पूछने वाला थोड़ी है। अरबों-खरबों के फोटॉन में लाख-दो लाख की क्या गिनती?

मामला ऐसे समझिए कि कोई हलवाई मिठाई बनाते-बनाते खुद कुछ मिठाई चखने लगे। या फिर ऐसा जैसे करोड़ों - अरबों के ठेकों का निपटारा करता कोई मंत्री लाखों के ठेके अपने चेलों, चमचों, कुनबों, समर्थकों में प्रसाद की तरह बांट दे।
गाड़ी स्टेशन पर खड़ी है। सूरज भाई ने किरणों का बोरा ऊपर से खोल दिया। किरणें अदबदा के पेड़ पर धप्प से गिरीं आकर। पत्ती-पत्ती हिल गयी। चिड़ियां थोड़ा चहचहा के ऊपर उड़ीं फिर वापस आ गईं। रोज का किस्सा है यह। लेकिन जब झटके से कोई पेड़ पर आकर बैठता तो चिड़िया सहम सी जाती हैं। इस मामले में शायद उनके मन भी महिलाओं जैसे ही होते हैं। हर आहट पर चौंक जाती हैं।
किरणें पेड़ पर टहलती हुई आपस मे आईस-पाइस खेल रही हैं। छिपती हैं। हवा के झोंके से बाहर आ जाती हैं। एक दूसरे को देखकर हंसने लगती हैं। कभी-कभी तो ठहाका तक लगाने लगती हैं। लेकिन कोई उनको टोंकता नहीं है। लगता है कायनात ने कोई रामायण नहीं पढ़ी है।
पेड़ पर न जाने कितने दिनों की धूल है। सूरज भाई अपनी 'किरण टार्च' मार-मार कर धूल सबको दिखा रहे हैं। हवा पेड़ को हिला-हिलाकर उसकी धूल हटाने की कोशिश कर रही है। पेंड की पत्तियों के बीच से सीटी बजाते हुए रोज गुजरती है। कभी आराम फरमा भी हो जाती है। पेड़ की बेईज्जती उसको बर्दाश्त नहीं होती इसलिए तेज हिलाती है उसको। लेकिन पेड़ घामड़ की तरह थोड़ा हिलडुल कर फिर वैसे ही रहता है। बौरा गया है शायद। वसंत अभी तक सवार है उस पर। पत्तियां धूल की गलबहियां होते हुये शायद गाना गा रही हों:
ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे
तोड़ेंगे दम मगर, तेरा साथ न छोड़ेंगे।
सूरज भाई पूरी कायनात पर अपना कब्जा जमाए हुए हैं। सरपट धूप की किरणों का छिड़काव कर रहे हैं। कोई-कोई पेड़ उनको रोकता है तो उसके बगल में छाया कर देते हैं। बगल की जमीन पर धूप से वंचित कर देते हैं। मतलब पेड़ का बदला जमीन से। वही बात धोबी से जीते न पावें तो गदहा के कान उमेठे।
सूरज भाई हमारे मोबाइल में झांककर देखते हैं तो मुस्कराकर दायें-बायें होते हुए किरणों से कहते हैं -'ये चलो, लिखने तो इनको नहीं तो तोहमत हमारे ऊपर लगाएंगे।'
उनके इस तरह बरजने पर तमाम किरने ठठाकर हंसने लगीं। कुछ मुस्कराने भी लगीं। उनकी हंसी और मुस्कान देखकर हमको हंसी पर लिखी यह बात याद आई:
हंसी की एक बच्ची है,
जिसका नाम मुस्कान है
यह बात अलग है कि
उसमें हंसी से कहीं ज्यादा जान है।
अब अभी सूरज भाई के साथ चाय चल रही है। आपका भी मन करे तो चले आईये। चाय पीजिये साथ में और बल भर मुस्कराइए।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10213658166701925

No comments:

Post a Comment