Tuesday, January 19, 2021

जहां तक हो सके

 

और यदि तुम अपना जीवन
वैसा नहीं बना सकते जैसा चाहो,
तो इतना करो कम से कम:
उसे सस्ता मत बना दो।
दुनिया के बहुत साथ रह के
बहुत बातें करके।
दर-दर मारे-मारे फिर कर
लोगों की दैनिक मूर्खताओं से घिरकर,
जगह-जगह बार-बार दिखकर,
कभी मत बनने दो अपना जीवन
किसी के लिए भी इतना आसान
कि वह भार बनने लगे-
जैसे एक अनचाहा मेहमान।
कान्सटैन्टीन कवाफ़ी
यूनानी कवि
29.04.1883- 29.04.1933
अनुवाद - कुँवर नारायण
विश्व कविता संकलन -'प्यास से मरती एक नदी'से

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10221549126690993

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