गाना बज रहा है। जब भी ये दिल उदास होता है, जाने कौन आसपास होता है।
गाने का मुखड़ा दो अनिश्चितताओं का गठबंधन है। 'जब भी ये दिल उदास होता है' से भनक नहीं मिलती किसका दिल उदास है। अपना की पराया। इनका कि उनका। मतलब न जाने किनका। दूसरा मुखड़ा तो पक्का अन्जाना है -'जाने कौन आसपास होता है।'
पता नहीं किसका दिल उदास है, कौन आसपास है लेकिन गाना हमको सुनाई दे रहा है। जो उदास है उसके दिल पर क्या बीत रही होगी इससे बेखबर हम गाने के सुरीलेपन का आनन्द उठा रहे हैं। 'आसपास' होने वाले की तो कोई खबर ही नहीं। क्या पता कहीं भीग रहा हो, क्या पता कहीं कोने में दुबका खड़ा हो। स्टेच्यू बना। उसको आसपास ही रहना है, सामने आने की मनाही है। सिर्फ उदास के आसपास रहना है। एकदम सुरक्षा गार्ड की तरह।
जब उदास और आसपास का तरन्नुम बिठा रहे थे तो सोच रहे थे कि 'उदास' के 'आसपास कोई' होने से उसकी उदासी दूर हो जाती होगी। मतलब ' किसी' को देखकर उदासी कहती होगी -'तुम्हारे आसपास वाले आ गए। अब हम चलें।'
लेकिन ये उदास के आसपास सुरक्षा गार्ड वाली बात से नया एंगल दिखा। मतलब यहां आसपास जो है वह उदासी भगाने के लिये नहीं बल्कि उदासी की रक्षा के लिए तैनात है। मतलब उसके आसपास रहते उदासी को कोई खरोंच न आये। मामला जनता की भलाई के लिए लगाए कुछ पुलिस वालों की तरह हो गया जिनके कारण जनता को पुलिस से डर लगता है।
लेकिन सोचने की बात यह कि कोई उदास क्यों होता है? अब इसका क्या बताया जाए। उदास होने के खिलाफ कोई कानून तो है नहीं। संविधान में भी उदासी की आजादी पर कोई रोक नहीं है। इसलिए लोगों को कुछ समझ नहीं आता तो उदास हो जाते हैं। उदास होना आजकल आम बात हो गयी है। लोग जब देखो तब उदास हो जाते हैं। उदासी भी फैशन टाइप हो गयी है। कई दोस्तों ने बताया -'उनका मन उदास हैं। कारण पता नहीं लेकिन उदास हैं।'
कुछ समझ में नहीं आया तो उदास हो लिए। खाये-पिये-मस्ती किये फिर उदास हो गए। कुछ लोग पहले उदास होते हैं , फिर खाते-पीते हैं। कुछ तो हर समय उदासी का झंडा उठाये रहते हैं। सर्वव्यापी टाइप हो गयी है उदासी।
कभी-कभी हमारा मन भी होता है उदास हो जाएं। लेकिन जैसे ही उदास होने की कोशिश करते हैं तो या तो नींद आ जाती या कोई काम। उदासी डिस्टर्ब हो जाती है। कई बार डिस्टर्ब होने के बाद वह भन्नाकर चली जाती है। पता चलता है किसी दोस्त के पास चली गयी। दोस्त से हमको बात करते देखती है तो वहां से भी फूट लेती है। बहुत गुस्सा है हमसे।
उदासी के साथ अकेलापन भी रहता है। लगता है उदासी और अकेलापन में चक्कर चल रहा है। बहुत दिनों से दोनों साथ देखे जा रहे हैं। क्या पता किसी दिन सगाई की घोषणा कर दें।
ये अकेलापन भी बड़ा बहुरूपिया है। न जाने किस-किस रूप में घुस जाता है मन में। बैठ गया तो फिर निकलता नहीं। लोग भीड़ में भी अकेले रहते हों। अकेले में तो अकेले हैं ही। लगता है गुरु, कोई हमारा है नहीं इस दुनिया में। 'इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ' टाइप।
अकेलेपन को आजकल लोग बुरी नजर से देखने लगे हैं। लगता है अकेलापन महसूस करने वाला निरीह होता है। लोगों को पता नहीं कि किसी जमाने में अकेलापन राजसी ठाढ वाले लोगों को ही नसीब होता था। नवाब लोग तखलिया बोलते थे तो उनके आसपास जमा लोग सर झुकाकर कमरा खाली कर देते थे। नवाब लोग अकेलेपन के मजे लूटते थे। आज वही अकेलापन बेचारा ख़राब माना जाता है। समय के साथ गुणों के भाव बदलते हैं। कभी के उद्दात माने जाने वाले गुण आज बेवकूफी माने जाते हैं।
हम भी गाना सुनते हुए कहाँ की कहां हाँकने लगे। गाना खत्म हो गया। अगला गाना बज रहा है -'मेरे पिया गए रंगून , किया है वहां से टेलीफोन, तुम्हारी याद सताती है।'
गाना सुनते ही हमारा मन हुड़कने लगा फोन करने का। हम जा रहे फोन करने। तब तक आप बताइए कि आपका दिल विल उदास तो नहीं होता। आपके आसपास तो कोई नहीं रहने आ जाता ? आजकल जमाना बड़ा खराब है। किसी का भरोसा नहीं। पता नहीं 'आसपास रहने' के बहाने कौन आ जाये। सम्भलकर रहने की जरूरत है। बता दिया हमने। अमल में लाना न लाना आपकी मर्जी।
लेकिन एक बात नोट कीजिये। बात 'दिल की उदासी' और 'किसी के आसपास' होने से शुरू हुई थी। लेकिन बीच में घुस गया अकेलापन। मुद्दे इसी तरह भटकाये जाते हैं आजकल दुनिया में। क्या पता इसीलिए दिल उदास होता हो। 

https://www.facebook.com/share/p/D87jaShiThM2dhi3/
No comments:
Post a Comment