सबेरे नींद जल्दी खुल गयी। लेकिन लेटे रहे। कल की थकान शरीर पर कर्ज की तरह लदी थी। बिस्तर पर आराम की मेहनत से शरीर 'थकान का कर्ज' देर तक उतारता रहा। कई बार सोचा निकलें घूमने लेकिन शरीर कहता रहा पड़े रहो।
होटल का चैनल बन्द था। काउंटर पर लिखा रखा था -'किसी जरूरत के लिए इस नम्बर पर फोन करें।'
नम्बर वाले सन्देश की फोटो हम ले लिए लेकिन साझा नहीं कर रहे। पता चला कानपुर या बरेली या झुमरीतलैया में कोई इमरजेंसी हुई और कोई फोन कर दिया श्रीनगर। हमको कोसेगा दुकान वाला।
खैर , फोन किये तो उनींदे ही आकर चैनल खोल दिया होटल वाले ने। हम निकल लिये बाहर। निकलने के पहले जबरदस्त अंगड़ाई भी ले लिए। शरीर के सारे अंगों की हाजिरी लग गयी। सब कसमसा के साथ हो लिए।
होटल से निकलकर दाएं मुड़ लिए। आजकल पूरी दुनिया में दाईं तरफ चलने वालों का जलवा है। उसी तरफ चलने में बरक्कत है। क्या पता कल को पूरी दुनिया में कानून बन जाये -'कृपया दाएं चलिए।'
सड़क पर जगह-जगह टूरिस्ट बसें खड़ी थीं। कुछ में लोग भी थे। कुछ आ रहे थे। कुछ जा रहे थे।
दुकानें बन्द थीं। अलबत्ता होटल टाइप दुकान खुलने लगीं थीं। एक दुकान वाला दुकान खोलकर दूध के पैकेट अंदर कर रहा था।
मोड़ पर ऑटो था। बगल में सीआरपीएफ के जवान पहरा दे रहे थे। बख्तरबंद वाहन के बगल में खड़े जवान राम जी राय बिहार के वैशाली से थे। चुस्त। हाथ में राइफल। निगाह चौकन्नी।
बख्तरबंद वाहन पर वीएफजे लिखा था। हमारी जबलपुर वाली फैक्ट्री में बना था। बताया कि पुराने माडल का है। छत्तीसगढ़ से यहाँ आया है। सैकड़ों वाहन हैं यहां इस तरह के। कहीं कोई लफड़ा होता है तो इस एमपीवी पर बैठकर पहुंच जाते हैं घटनास्थल।
रामजी राय बताने लगे अपने बारे में। दो बेटे हैं । बड़ा बेटा इंजीनियरिंग करके नौकरीं कर रहा। 12 लाख का पैकेज है। छोटा एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर रही। बेटी भी ग्रेजुएशन कर रही।
'घर वाले साथ रहते हैं ?' पूछने पर रामजी राय जोर से हंसने लगे। बोले -'फोन पर बात हो जाता है, यही बहुत है। नेटवर्क ही नहीं मिलता। पहले तो टावर ही नहीं था। 370 हटने के बाद कनेक्शन ठीक हुआ है।
कानून व्यवस्था बनाये रखने में सीआरपीएफ का बहुत हाथ है। '370 हटने के बाद कंट्रोल बढिया हुआ है'- ऐसा बताया राम जी रॉय ने।
फोटो खींचने के लिए पूछने पर मना कर दिया रॉय जी ने। बोले-'सेफ्टी के चलते ऐसा है। आप तो भले आदमी हैं। लेकिन कोई दूसरा इसका मिसयूज कर सकता है।'
सुबह-सुबह अपने लिए भले आदमी संबोधन सुनकर अच्छा लगा। इस आनन्द को सेलिब्रेट करने के लिए बगल के चाय के ठेले पर पहुंच गए।
चाय की ठेलिया के बगल में बैठकर चाय बोली। अकलीम नाम है। अकलीम माने अक्लमंद। 16 साल पहले आये थे बिजनौर से । बाबा जी आये थे। अब परिवार के कई लोग हैं। दो होटल, दो बेकरी और तीन चाय की ठेलिया। दो बच्चियां हैं। सब खुशहाल। घर अभी खरीदा नहीं।
हमने पूछा -'अब तो खरीद पर पाबंदी हट गई।'
बोले-'वो सब पैसे वालों के लिए है। आम इंसान के लिए अभी भी सब मुश्किल।'
'चाय में चीनी कम कि ज्यादा?' के जबाब में हमने बिल्कुल कम कहा।
चाय में चीनी कम क्या अब तो बन्द ही हो गयी है। इस चक्कर में चाय भी कम हुई। कभी दस-बारह कप से मामला दो-तीन कप पर आ गया है। कभी कुछ समझ न आने पर चाय के लिए बोल देते थे। अब मीटिंग में सामने रखी चाय भी अधपियी रह जाती है। पीना भले कम हुआ हो लेकिन चाय के लिए मोह्हबत जस की तस बनी हुई है।
चाय पीते हुए बतियाये अकलीम से। वो ब्रेड पकौड़ा बना रहे थे। ब्रेड के दुकड़े अपने पेट में आलू दबा के बेशन के घोल में नहाकर खौलते तेल में कूदते तो बिलबिलाने लगते। कुछ देर में शांत हो जाता। गीला बेसन अकड़कर चमकने लगता ऐसे जैसे कोई कुर्बानी देकर आये इंसान का चेहरा चमकता है। पकौड़े तले जाते देखकर पुरानी कविता याद आई (लिंक कमेंट बॉक्स में):
'पुड़िया तेल में गदर नहाई हुई हैं।'
इसी पर सोचा-
'पकौड़े तेल में गदर नहाए हुए हैं,
पूरी कढ़ाही में बमचक मचाये हुए हैं,
पेट में बांधकर आलू कूदे गरम तेल में,
निकले तो पूरा बदन चमकाए हुए हैं।'
कश्मीर में बदलाव क्या आये पूछने पर बोले अकलीम-'बहुत कुछ बदला बदला नहीं है। पहले भी लोग रहते थे, अब भी रहते हैं। कोई नया नियम आता है तो आवाम पर उसके असर के हिसाब से रिएक्शन होता है। बाकी सब खुशहाल हैं।
इतने में मोटरसाइकिल पर कपड़े बेंचने वाला दिखा। मोटर पर भी सामने दिखा। लोग साइकिल पर भी लादकर गर्म कपड़े बेंचते है।
वहीं बरेली के एक सज्जन मिले। बाबा बर्फानी के दर्शन करके आये हैं। बोले -'बहुत मजेदार अनुभव है। सर्दी है लेकिन महसूस नहीं होती। चलते रहना है, कोई फर्क नहीं।'
हमारे अकेले घूमने आने पर आश्चर्य जाहिर किया। बोले -'फेमिली के साथ आना चाहिए था।' हमने कहा -'हां आना तो चाहिए था लेकिन बना नहीं हिसाब। इसी लिए अकेले चले आये। लेकिन क्या अकेले घूमना मना है?
'
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बोले मना तो नहीं लेकिन साथ में लोग हों तो अच्छा रहता है। कोई कहेगा यहां चलो, वहां चलो। सबके साथ घूमने का मजा ही अलग है।
हम कह रहे -'अकेले हो या साथ में -घूमने का मजा ही अलग है।'
चाय पीकर वापस लौट आये। चाय के दाम दस रुपये। आप भी आ जाओ। चाय पिलाते हैं कश्मीर में।
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