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'सूरज की मिस्ड कॉल' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का सम्मान आज 20 अगस्त है। आज से 21 साल पहले ब्लॉगिंग की शुरुआत हुई थी। ऑन लाइन पत्रिका अभिव्यक्ति में रवि रतलामी जी का लेख पढ़कर ब्लॉग बनाने की सोची थी। कई दिन की बोर्ड खोजते रहे। हिंदी लिखने का जुगाड़। फिर मिला लिखने का जुगाड़ 'जय हनुमान' , तख्ती की बोर्ड। विंडोज़-98 के जमाने में किरकिराते हुए नेट कनेक्शन जुड़ता था। |
हमारे ब्लॉगिंग शुरू करने के समय लगभग 25-30 ब्लॉगर हिंदी में ब्लॉगिंग करते थे। उनमें से मेरे अलावा और लोगों का लिखना बंद हो गया है। Debashish, Atul Arora Jitendra , रवि रतलामी वगैरह पंकज नरूला शुरुआती दिनों के साथी थे।
बाद में लोग आते गए। ब्लॉगिंग से जुड़ते गए। ब्लॉगरों की संख्या हजारों तक पहुंची। हिंदी ब्लॉगिंग के शुरुआती दिनों में अनेक प्लेटफार्म थे अक्षरग्राम, नारद, ब्लागभारती, चिट्ठाचर्चा, बुनोकहानी, ब्लॉगर मीट और न जाने कितने प्रयोग। ब्लॉगिंग के समय से बने संबंध अभी भी बने हुए हैं।
ब्लॉगिंग के दिनों में आपस में बने संबंध भरोसे के थे। लोगों के ईमेल, पासवर्ड सहयोग करने वाले लोगों के पास रहते थे। लोग दूसरों के ब्लॉग खुलवाते थे, मेंटेंन करते थे। उस समय के आपस के सहज संबंधों की आज कल्पना मुश्किल है। बड़ी-बड़ी पोस्ट लिखी जातीं थीं। लंबी-लंबी टिप्पणियाँ लिखी जाती थीं। बहसा-बहसी होती थी। लड़ाई-झगड़ा, मेल-मिलाप होता था।
शुरुआत ब्लॉगस्पॉट से करने के बाद E Swami के बनाए हिन्दिनी पोर्टल पर बहुत दिन चला फ़ुरसतिया ब्लॉग। बाद में बाक़ी अमरीकी हिन्दुतनियों की तरह स्वामी जी का मन भी इधर-उधर हुआ और हिन्दिनी की दुकान बंद हुई। अपन वापस लौट आए ब्लॉगस्पॉट पर।
ब्लॉगिंग से जुड़े लोगों में से कई बाद में लेखक बने। उनकी किताबें आईं। कुछ लोग न्यूज़ चैनल से जुड़े। मेरी भी अभी तक कुल नौ किताबें आ चुकी हैं। जो भी लिखा ब्लॉगिंग के दौरान उसमें से कुछ छाँटकर किताबों में डाल दिया। आगे भी जो किताबें आयेंगी वो सब ब्लॉग से शुरू हुए लेखन से ही आयेगा।
ब्लॉगिंग से जुड़े लोगों में से कुछ प्रकाशक भी बने। Shailesh Bharatwasi हिन्द युग्म प्रकाशन से पहले अपने नाम से ब्लॉग चलाते थे।
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'घुमक्कड़ी की दिहाड़ी' का विमोचन पंकज बाजपेयी के द्वारा |
Kush Vaishnav ने रुझान प्रकाशन की शुरुआत मेरी और Pallavi की किताबों से Rujhaan प्रकाशन शुरू किया था। मुझे अभी भी याद है कुश ने हम लोगों की किताब से प्रकाशन शुरू करने की बात बताते हुए सुबह के समय जब फ़ोन किया था तो हमारी चित्रकूट एक्सप्रेस कटनी पहुँचने वाली थी। 'बेवक़ूफ़ी का सौंदर्य' और 'अंजाम-ए-गुलिश्ताँ क्या होगा' का विज्ञापन 'हेलो जिंदगी' में छपाया था। किताबों का विमोचन लखनऊ के शिराज कैफे में हुआ था। अगली किताब Anurag Arya की आने वाली थी। लेकिन डाक्टर साहब के आलस और झिझक के चलते देर हुई और उनकी किताब 'बुरे लड़कों की हास्टल डायरी' आने में कई साल लगे। रुझान प्रकाशन से आई किताबों में कई संस्थानों से इनाम-सम्मान भी मिले। मेरी 'सूरज की मिस्ड कॉल' , 'घुमक्कड़ी की दिहाड़ी' के अलावा Indrajeet Kaur Indo की किताब 'पंचरतन्तर की कथायें' भी शामिल है। यह अलग बात है कि 'रुझान प्रकाशन' शानदार शुरुआत के बावजूद ठहर सा गया।
ब्लॉगिंग और अब फेसबुक में लेखन में भी अपन लंबी पोस्ट्स लिखने के लिए कुख्यात हैं। यह विश्वास करना मुश्किल होगा कि लंबी पोस्ट्स के लिए बदनाम मेरी पहली पोस्ट्स में कुल जमा नौ शब्द थे - "अब कबतक ई होगा ई कौन जानता है।"
"हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै" लिखाई का नारा रहा।
लिखाई के दौरान किए कई प्रयोगों में ब्लॉगिंग के दिनों में 'चिट्ठाचर्चा' और फेसबुक में दौरान 'व्यंग्य की जुगलबंदी' सबसे यादगार प्रयोग रहे। इनके यादगार होने का कारण इनमें मित्रों की भागेदारी रही। सामूहिकता का सौन्दर्य थे ये प्रयोग। इनको फिर से शुरू करने का मन है। देखिए कब होता है।
'व्यंग्य की जुगलबंदी' के दौरान मित्रों द्वारा लिखे कम से कम सौ व्यंग्य लेख ऐसे होंगे जिनका संकलन करके 'व्यंग्य संग्रह' लाने का मन है। देखिए कब होता है।
मेरी ब्लॉगिंग की शुरुआत रवि रतलामी जी के लेख को पढ़कर हुई। आज के दिन मैं उनको प्यार के साथ याद करता हूँ। आज वे होते तो इस पर जरूर कोई मजेदार टिप्पणी करते। लेकिन वे जहाँ भी होंगे मुस्कराते हुए मेरी पोस्ट देख रहे होंगे और कोई चुटीली टिप्पणी कर रहे होंगे।
आज ब्लॉगिंग की शुरुआत के 21 साल पूरे होने पर मैं अपने तमाम-तमाम पाठक मित्रों को धन्यवाद देता हूँ जिनके पढ़ने, टिप्पणी करने और सुझाव देते रहने के कारण मेरा लिखना जारी रहा। मेरे लेखन से जुड़े किसी भी सुझाव के लिए आपका आभारी रहूँगा।
नोट : (1) मेरी पहली पोस्ट और चिट्ठाचर्चा का लिंक टिप्पणी में दिया है।
(2) मेरी अब तक प्रकाशित किताबों की सूची
-पुलिया पर दुनिया (स्व प्रकाशित, ई बुक और प्रिंट में)
-बेवक़ूफ़ी का सौंदर्य (रुझान प्रकाशन)
-सूरज की मिस्ड कॉल (रुझान प्रकाशन, उप्र हिंदी संस्थान से पुरस्कृत)
-झाड़े रहो कलट्टरगंज (रुझान प्रकाशन)
-घुमक्कड़ी की दिहाड़ी (रुझान प्रकाशन, उप्र हिंदी संस्थान से पुरस्कृत)
-आलोक पुराणिक -व्यंग्य का एटीएम (रुझान प्रकाशन)
-अनूप शुक्ल -चयनित व्यंग्य (न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन)
-बेवक़ूफ़ी का सफ़र (स्व प्रकाशित, ई बुक और प्रिंट में)
-पुलिया पर जिंदगी (स्व प्रकाशित, ई बुक और प्रिंट में)
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