Thursday, October 06, 2011

तेरी झील सी आंखों में डूब जाऊं

हमारी बेवकूफ़ियों को लोगों ने जोखिम समझा,
लगता है लोग हमें वीर चक्र दिला के ही मानेंगे।

तू कहती है कि तू कल मेले में गयी ही नहीं,
फ़िर वो कौन था जिसका हाथ थामे हम मेला घूमे?

जी करता है तेरी झील सी आंखों में डूब जाऊं,
पर डर लगता है मुझे तैरना आता ही नहीं ।

वो पीने लगा, नौकरी छोड़ दी औ अब तो शायर भी हो लिया,
उसे भरोसा है कि उसे किसी न किसी से इश्क हो के रहेगा। 

इश्क फ़रमाने के लिये अब सिर्फ़ शायरी ही काफ़ी नहीं,
अब तो डाक्टर से पागलपन का सर्टिफ़िकेट भी चाहिये।

सनद न हुई तो इश्क का खिताब तो मिलने से रहा,
बहुत जिद की तो अफ़ेयर की सनद मिल जायेगी।

इश्क आग का दरिया है औ इसे तैर के जाना है,
इसे पढ़कर नये मजनू ने फ़ायर ब्रिगेड बुलाई है।

-कट्टा कानपुरी

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