Tuesday, October 08, 2013

भारतीय ’लेट लतीफ़’ क्यों होता है

http://web.archive.org/web/20140420082430/http://hindini.com/fursatiya/archives/4909

भारतीय ’लेट लतीफ़’ क्यों होता है

परसाई-जी’पूछो परसाई से’ में पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तरों में परसाई जी की तार्किकता, सरलता, सहजता और आत्मीयता के दर्शन होते थे। जाने कितने उकसाने वाले प्रश्नों के उत्तर भी उन्होंने पूरी सहजता से दिये हैं। उदाहरणार्थ, एक प्रश्न है- ’आपके पास हर प्रश्न का जबाब है। क्या आप अक्ल के जहाज हैं?’ परसाई का उत्तर है- ’मेरे पास हर प्रश्न का जबाब नहीं है। जबाब सही हो, यह भी जरूरी नहीं है। मैं लगातार सीखता जाता हूं। मामूली आदमी हूं।’
ऐसे ही दो प्रश्न और उनके जबाब यहां पेश कर रहा हूं:
प्रश्न: भूतपूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री जेम्स कैलोहम को एक बार एक महिला ने अपनी चोली पेश करते हुये कहा था कि सरकार की बजाय यह मुझे ज्यादा सहारा देती है, क्या शोषित भारतीय महिलायें भी ऐसा ही नहीं सोचती होंगी? (भिलाई से छोटेलाल दुबे)
उत्तर: यह सवाल तो आप महिलाओं से पूछिये वे क्या अनुभव करती हैं। भारत में ऐसी ही असुरक्षा के लिये सरकार कुछ हद तक जिम्मेदार है। पर ज्यादा जिम्मेदारी हमारी पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था की है। परिवार में बहुओं को यातना हम लोग ही तो देते हैं। परिवार और समाज में ही अमानवीयता है। जब सड़क पर स्त्री को कोई मनचला छेड़ता है तो आसपास के पुरुष नपुंसक हो जाते हैं? वे क्यों पीठ फ़ेरकर चल देते हैं? वे क्यों नहीं उस मनचले पर झपटकर उसकी पिटाई करते? वे क्यों नहीं स्त्री की रक्षा करते?
(देशबंधु, 23 अक्टूबर, 1983)
आलस्यप्रश्न: फ़्रांस के लोग भावुक, नजाकत वाले, अमेरिकी लोग जांबाज, ब्रिटिश लोग औपचारिकता वाले , भारतीय लेट लतीफ़ होते हैं। यह विभिन्नता क्यों पाई जाती है? -रायपुर से अंजलि गोडबोले।
उत्तर: फ़्रांस के लोग भावुक, सुरुचि संपन्न तथा कला प्रेमी माने जाते हैं- जैसे भारत के बंगाली। इसका कारण दीर्घकालीन जीवन परिस्थितियां , ऐतिहासिक अनुभव और सांस्कृतिक परम्परा है। पर अमेरिकी लोग जांबांज नहीं होते। उन्हें लड़ना नहीं आता। उनके पास अच्छे से अच्छे हथियार होते हैं पर उन्हें न रणनीति आती है और न ही वे बहादुर होते हैं। कारण यह कि गृहयुद्ध के बाद वे कभी लड़े नहीं। वे सारी दुनिया से अलग रहे। दूसरे महायुद्ध से उन्होंने लड़ना शुरु किया। पर इसके बाद वे जहां लड़े बुरी तरह हारकर भागे। वे कोरिया में चीनियों से पिटे जिनके पास पुरानी बन्दूकें थीं फ़िर भी उनकी दुर्गति हुयी। वियतनाम में अमेरिकी कई साल हमला करते रहे। पर वियतनामियों ने उन्हें इतनी बुरी तरह पीटा कि उन्हें भागना पड़ा। भागने के लिये हो ची मिन्ह से चौबीस घंटे का समय मांगा। फ़िर ईरान में उनकी दुर्गति हुई। अभी बेरुत से पिटकर भागे। सच्चे जाबांज वियतनामी हैं, जिन्होंने फ़्रांस और अमेरिका को मार भगाया। अंग्रेज ’रिजर्व्ड’ और औपचारिक होते हैं। कारण हैं इसके- एक तो यह बनिया कौम है। बनिया कभी दिल नहीं खोलता। दूसरे,यांत्रिक हैं। तीसरे सबसे बड़े साम्राज्यवादी रहे हैं, उसका अहंकार है। चौथे, इंग्लैंड द्वीप समूह है। मुख्य भूमि यूरोप में नहीं है। फ़्रांसीसी और जर्मन अंग्रेंजो को गंवार और जंगली मानते रहे हैं। इसलिये भी अंग्रेज मुश्किल से मुंह खोलता है। बिना परिचय के बात नहीं करता और आत्मक्रेंदित रहता है। उसने अपनी विशिष्टता के लिये ’मैनर्स’ बना लिये हैं।
भारतीय ’लेट लतीफ़’ क्यों होता है। दार्शनिक रूप से भारतीय कालातीत है। वह काम में नहीं जीता, आत्मा अमर है, बार-बार जन्म लेना है उसे तो जल्दी किस बात की। वास्तव में कई सदी पहले भारतीयों ने कोई दायित्व लेना छोड़ दिया था। इसलिये उसने समय की पाबन्दी छोड़ दी। पाबन्दी धार्मिक कर्मकांड में रही। या नियम से सूर्योदय से पहले कान में जनेऊ लपेटकर शौच के लिये नदी जाने में। हमारी अनियमितता का कारण जलवायु भी है। फ़िर हमारी भोजन की आदत है। हम दोपहर में भरपेट भोजन करते हैं और दो घंटे ऊंघते हैं। वास्तव में भारी नास्ता करना चाहिये और हलका दोपहर का भोजन। पर गरीबी या परम्परा के कारण अधिकांश लोग नाश्ता नहीं करते। दोपहर को पेट को चावल से भरते हैं और ऊंघते हैं।
(देशबन्धु 6 मई,1984 )

3 responses to “भारतीय ’लेट लतीफ़’ क्यों होता है”

  1. विवेक रस्तोगी
    ना हमसे नाश्ता भारी होता है, और ना ही खाना.. पर खाने के बाद ऊँघने का क्रम टूटता नहीं है..
    विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..बस तुम्हें… अच्छा लगता है.. मेरी कविता
  2. प्रवीण पाण्डेय
    व्याख्या सच में प्रभावित कर गयी, सच में ऐसा ही होता है।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..वर्धा से कानपुर
  3. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] भारतीय ’लेट लतीफ़’ क्यों होता है [...]

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