Sunday, October 06, 2013

लंच बॉक्स, सिक्स सिग्मा और समाज

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लंच बॉक्स, सिक्स सिग्मा और समाज

लंच बॉक्सपिछले हफ़्ते ‘लंच बॉक्स’ देखी। जबलपुर के समदड़िया मॉल में। बुधवार का दिन। आमतौर पर अपन बुधवार को ही सनीमा देखने जाते हैं। हर टिकट 100 रुपये का। स्नैक्स का कूफ़न अलग से। इस बार बुधवार को गांधी जयन्ती थी। सोचा भीड़ ज्यादा होगी तो पहले से नेट से करा लिये। टिकट 150/- का पड़ा। अभी तक हमें ये नहीं पता है कि इस बुधवार को टिकट 100 का काहे नहीं मिला? क्या इसलिये कि गांधी जयन्ती थी या फ़िर नेटबाबा हमें मंहगे पड़े। कारण पता चलते ही हम अपने ज्यादा पैसे ठुकने का दोष उसपर डालकर दो मिनट उसको मन लगाकर कोसेंगे। लेकिन वह बाद में अभी तो पिक्चर के बारे में बात करते हैं।
एक घंटे पचास मिनट की पिक्चर जब खतम हुयी तो यही मन किया कि अभी और चलनी चाहिये। यही पिक्चर की अच्छी होने का शायद सबसे बड़ा प्रमाण है। कहानी मुम्बई के आपाधापी वाले जीवन के एक परिवार की। पत्नी इला (निरमत कौर) अपने पति को रिझाने के लिये तरह-तरह के जनत करती है लेकिन पति अपने काम में डूबा है। पत्नी अपनी आंटी से पूछकर एक दिन खास खाना तैयार करती है। लंचबॉक्स में रखकर भेजती है। उस दिन डिब्बा पूरा खाली आता है। पत्नी खुश होती है कि खाना बहुत मन से खाया है तो आकर तारीफ़ करेगा। लेकिन पति का व्यवहार वैसा ही रूखा, उदासीन। पत्नी पूछती है तो बताता है कि खाना रोज जैसा ही था। उदास पत्नी इला अगले दिन भी खास खाना लंचबॉक्स में भेजती है। वह भी पति के पास न पहुंचकर किसी दूसरे के पास पहुंचता है। पति की प्रतिक्रिया वही उदासीन। पत्नी इला और अनजान व्यक्ति , साजन फर्नांडिस,(इरफान ) जिसके पास गलती से डिब्बा पहुंचता है, में संदेशों का आदान-प्रदान होता है। दोनों तरफ़ खाने से ज्यादा उत्सुकता संदेशों की होती है। इस बीच पत्नी को अपने पति के किसी और से चक्कर की सुंगंध भी मिलती है। वह अनजान लंच बॉक्स पाने वाले अनजान व्यक्ति से मिलने का मन बनाती है। बुलाती है। उत्कंठित नायिका को नायक देखता है लेकिन न मिलने का तय करता है। दोनों के बीच उमर के अंतर को न मिलने का कारण बताता है। कहानी और आगे बढ़ती है। एक और पात्र असलम मियां ( नवाज़ुद्दीन ) की मजेदार प्रेमकहानी भी बीच में दखल देती है जिसकी प्रेमिका उसके साथ भाग के तो आ गयी निकाह अब्बा की मर्जी से करने की जिद है। आखीर में साजन फ़र्नांडीज को इला से मिलने के लिये उसके घर की तरफ़ जाते हुये दिखाये जाता है। मिलन के खूबसूरत मोड़ के पहले ही पिक्चर का ‘द एंड’ हो जाता है- ऐसे समय जब लगता है कि यार कम से कम मिला तो देते दोनों को। एक बार से डायलाग बुलवा देते -कभी-कभी गलत ट्रेन में बैठने से भी सही मंजिल मिल जाती है।
6 sigmaपिक्चर की सारी बुनावट लंच बॉक्स के गलत जगह पहुंचने की थीम पर है। बड़ा रोचक है यह देखना कि यह गलती नियमितता के साथ होती है। माने कि सुव्यवस्थित अव्यवस्था। मुंबई के डब्बे वाले इस काम में सौ साल से भी ज्यादा समय से लगे हुये हैं। करीब पांच हजार लोग, जो कि बहुत कम पढ़े-लिखे हैं, इस काम को ऐसे सलीके से अंजाम देते हैं कि दिन में करीब दो लाख लोगों तक टिफ़िन तीन घंटे के भीतर पहुंचा देते हैं। काम करने का तरीका ऐसा कि इनके व्यवसाय को 6 सिग्मा प्रमाणपत्र हासिल है। 6 सिग्मा प्रमाणपत्र मिलने का मतलब दस लाख बार कोई काम किया जाये तो गलती की सम्भावना अधिकतम 3.4 हो सकती है। अपने काम में ईमानदारी और अनुशासन का आत्मविश्वास के चलते ही डिब्बावाले यह मानने को तैयार ही नहीं होते कि उनसे डब्बा डिलीवरी में गड़बड़ भी हो सकती है। इसीलिये जब नायिका इला डिब्बा वाले से अपना डिब्बा गलत जगह पहुंचने की बात कहती है तो वह मानने से फ़ौरन इंकार कर देता है यह कहते हुये कि लंदन से राजकुमार भी देख चुके हैं इस हमारे काम को। उन्होंने भी काम की तारीफ़ की है (4 नवंबर 2003 को प्रिंस चार्ल्स ने मुंबई स्टेशन पर 20 मिनट तक सिस्टम को समझा और फिर उन्हें इंग्लैंड में शाही शादी में आमंत्रित किया था)। डब्बे वालों पर श्रीनिवास पंडित ने एक किताब भी लिखी गयी है।
डिब्बे बालेएक सिक्स सिग्मा प्रमाणपत्र पाये संस्थान द्वारा वितरण में हुई नियमित गड़बड़ी की थीम पर बनी इस खूबसूरत फ़िल्म पर लिखते समय टेलीविजन पर समाचार सुनते जा रहे हैं। चारा घोटाले मामले में सुनायी गयी सजा और आशाराम के कुकर्मों के किस्सों पर चर्चा हो रही है। लाखों लोग इस तरह के अपराधों में संलग्न हैं। धड़ल्ले से करप्शन और कुकर्म करने में लगे हैं। लाखों अपराधियों में सजा चंद लोगों को ही मिलती है। लगता है समाज में अपराध और न्याय व्यवस्था में भी सिक्स सिग्मा लागू है। यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि लाखों अपराधियों में 3-4 से अधिक को सजा देने की गलती न हो जाये। समाज के सबसे जहीन लोग इस व्यवस्था को बनाये रखने में अपने हुनर का योगदान करते हैं। उनकी रोजी, रोटी और रुतबा समाज के इस आपराधिक सिक्स सिग्मा प्रमाणपत्र को बचाये रखने में ही है। उनके अथक प्रयासों की बदौलत ही अपराध और भ्रष्टाचार व्यवस्था का सिक्स सिग्मा बचा हुआ है। लाखों अपराधियों में से गिने-चुने लोगों को ही सजा का मुंह देखना पड़ता है।
इस अपराध और न्याय व्यवस्था का अपराधियों को बचाने का सिक्स सिग्मा प्रमाणपत्र न जाने कब छिनेगा? यह सोचते हुये हम यह भी सोच रहे हैं कि लंच बॉक्स सरीखी खूबसूरत कोई और फ़िल्म कब देखने को मिलेगी?

8 responses to “लंच बॉक्स, सिक्स सिग्मा और समाज”

  1. रचना त्रिपाठी
    अब तो लंच बॉक्स देखने का मन हो गया है।
    आप मेरा भी कुछ खर्च कराएंगे।
    रचना त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..बंदर के हाथ में बंदूक..
  2. प्रवीण पाण्डेय
    हम भी लंचबॉक्स दे आये, बड़ी अच्छी लगी। वैसे तो जिस प्रकार की कोडिंग की जाती है, भूल की संभावना ही नहीं। यदि ६ सिग्मा से भी चलें तो एक या दो दिन भूल हो भी सकती है, पर एक ही भूल नियमित नहीं हो सकती है। पहली बार कैसे पात्र के पास नहीं पहुँचा, यह भी विवेचन का विषय है।
    ईश्वर को मूढ़ पति और गुणी पत्नी को न्याय देना था, इसीलिये भूल हुयी नहीं वरन करवायी गयी।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बंगलोर से वर्धा
  3. विवेक रस्तोगी
    फिल्म का अंत करने में जल्दी कर दी गई ..
    विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..बस तुम्हें… अच्छा लगता है.. मेरी कविता
  4. Mukesh Kumar Sinha
    मुझमे भी देखने की उत्कंठा जग उठी ………
  5. arvind mishra
    मुझे तो अभी लम्बे समय तक आप लोगों की समीक्षा पर ही निर्भर रहना है !
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..और ज़िंदगी चल पडी …..(नौकरी के तीस वर्ष-श्रृंखला )
  6. Abhishek
    :)
    देखा हमने भी ये फिल्म.. सिग्मा का ख्याल नहीं आया. डिब्बा वाला हार्वर्ड का नाम भी लेता है :)
    सिग्मा इधर भी था –
    http://baatein.aojha.in/2012/07/blog-post.html
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..संयोग
  7. पंछी
    Nice Read
    पंछी की हालिया प्रविष्टी..Poem on Discipline in Hindi
  8. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] लंच बॉक्स, सिक्स सिग्मा और समाज [...]

1 comment:

  1. :) Maza aa gaya... Movie bhi awesome hai.. aapki post bhi.. aur apradhiyo ko bachane ka six sigma wala comment to zabardast!

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