Wednesday, December 17, 2014

रामफ़ल की कान मशीन

अपने मित्र Alok Prasad की सलाह पर आज रामफल को कान के विशेषज्ञ डाक्टर को दिखाना तय हुआ था। दोपहर बाद लेने गए तो पता चला रामफल अपने जिस भाई को ठेलिया पर छोड़कर जाने की सोचे थे वो नागपुर चले गए। मतलब जाने में अड़चन। लेकिन फिर हमारे कहने पर रामफल पास के पंक्चर बनाने वाले के पास अपनी ठेलिया खड़ी की।उसको फल के दाम बताये और हमारे साथ चल दिये।

डॉक्टर ने कान देखा और बताया कि कान चेक कराने होंगे। वाणी हियरिंग एड में। तय हुआ कि रामफल और हम दोनों अपनी अपनी दूकान बन्द करके शाम को कान की जांच कराने जायेंगे। साढ़े छह बजे जाना तय हुआ।

दोपहर को तो रामफल जैसे थे वैसे साथ चले गये। लेकिन शाम को अपने बेटे का साफ स्वेटर पहनकर आये थे। हमनें कहा -जँच रहे हो तो मुस्कराते हुए बोले-लड़का बोला- ' साहब के साथ जा रहे हो। ये पहनकर जाओ।'
जाँच में पता चला कि रामफल के कान 60% ख़राब हैं।सुनने की मशीन लगवानी होगी। हमने कहा - लगा दो।सुनने की मशीन लगते ही रामफल यादव के कान ठीक काम करने लगे। वो खुश हो गए। एकाध दिन में शायद मशीन के साथ सहज हो जाये।

जब कान के डॉक्टर को दिखाने ले गए थे दोपहर को तो रामफल बोले- "सांस की तकलीफ भी है।" डाक्टर ने देखा। बीपी बहुत था। डाक्टर ने ईसीजी कराने की सलाह दी थी। एक दो बार और बीपी देखकर ब्लड प्रेसर की दवा नियमित लेने की सलाह दी।

कान की मशीन लगवाकर अपने अस्पताल गए। रामफल का बीपी चेक कराया। ईसीजी कराया।बीपी दोपहर से भी ज्यादा था। इतने बीपी पर भी रामफल चल फिर रहे थे तो इसलिए कि शायद इसके साथ जीने की उनको आदत सी हो गयी है।

हाई बीपी कम करने की दवा देकर कुछ देर बाद बीपी देखा गया तो कुछ कम हुआ लेकिन फिर भी काफी हाई था। रात और सुबह की दवा दिलाकर रामफल को घर भेज दिया।मतलब छोड़कर आये।


रामफल से मुलाकात पुलिया पर हुई।किताब 'पुलिया पर दुनिया' के वो प्रमुख किरदार हैं।पुलिया के स्टेटस बांचने वाले मित्र आलोक प्रसाद के सुझाने पर रामफल के कान दिखाने ले गए।उनकी सुनने की समस्या तो हल हो गयी। दिल और सांस की तकलीफ भी शायद नियमित दवा से ठीक हो जाए।

रामफल के कान इलाज की फ़ीस डाक्टर ने ली नहीं। मशीन के भी पैसे कम किये। 2000/- की पड़ी मशीन। उसके 70%करीब 'पुलिया की दुनिया ' किताब की रॉयल्टी से मिल गए। मलतब किताब की कमाई किताब के प्रमुख किरदार के इलाज ने इस्तेमाल हुई।इससे बढ़िया क्या हो सकता है भला।

नीचे फ़ोटो ने वह जगह जहां रामफल दोपहर को ठेलिया लगाते हैं। दूसरी तस्वीर में अपने कान की जांच कराते रामफल यादव।
(साथियों की टिप्पणियों से ऐसा लग रहा है जैसे हमने कोई बड़ा नेक काम किया।हमको आलोक पुराणिक की किताब का शीर्षक याद आ गया - "नेकी कर अख़बार में डाल।" आज सोशल मिडिया का जमाना है तो कहा जाएगा- "नेकी कर फेसबुक पर डाल।" smile इमोटिकॉन )

No comments:

Post a Comment