Friday, November 18, 2016

पैसा सिर्फ़ पैसा है जिन्दगी थोड़ी है।



आर्मापुर से निकलते हुये नजर अपने-आप यूको बैंक के एटीएम के बाहर लगी लाइन पर जाती है। सुबह आठ बजे ही 25-30 आदमी लग लिये थे। सबसे आगे खड़े लोग चैनल से चिपककर ऐसे खड़े थे जैसे दीवार पर छिपकली। मन किया गाड़ी रोककर अपन भी लाइन में लग जायें। बैंक खुलते ही आधे घंटे में नम्बर तो आ ही जायेगा। लेकिन फ़िर लगे नहीं। एक दिन की छुट्टी लेकर 2000 रुपया निकालने लायक स्थिति अभी आई नहीं।
ओ एफ़ सी के पास मांगने वाली महिला अब फ़िर वापस आ गयी है। बीच में वह कहीं चली गयी थी शायद ! टाटमिल चौराहे पर गाड़ी रुकते ही साफ़ करने के लिये लपकने वाले लोग भी अब फ़िर दिखने लगे हैं। इसका नोटबंदी और छोटे नोट की उपलब्धता से कोई संबंध है कि नहीं -पता नहीं।
जरीब चौकी के आगे के तीन-चार एटीएम पूरी तसल्ली से गुलजार हैं। लोग धूप खाते, बतियाते, अखबार बांचते, इधर-उधर बेमतलब ताकते लाइन में लगे हुये हैं। लाइन सड़क तक आकर अपने-आप किसी न किसी आकार में मुड-तुड़कर फ़िर एटीएम की तरफ़ पलट जाती है। एटीएम की आकर्षण शक्ति जबरदस्त है। लोगों को अपनी तरफ़ खींच लेता है।
दफ़्तर पहुंचते ही नोटबंदी के अनगिनत किस्से सुनने को मिलते हैं। ज्यादातर सुने-सुनाये। लेकिन सहज लगते हैं। लोग कहते मिलते हैं:
1. पांच सौ का नोट चार सौ में और हजार का नोट आठ सौ में धड़ल्ले से चल रहा है।
2. उसने अपने सब मजदूरों को छह-छह महीने की तन्ख्वाह एडवांस में बांट दी। सब पांच सौ-हजार के नोट निकाल दिये।
3. नौ लाख की गाड़ी अभी कल लाये हैं हमारे पड़ोसी। सब हजार-पांच सौ के नोट। सब चल रहे हैं।
4. जनधन वाले सब खाते पर 500/1000 के नोट से भरे जा रहे हैं।
5. हफ़्ते भर में सब ठीक हो जायेगा।
6. अरे अभी महीनों लगेगा हाल ठीक होने में। दो-चार दिन ऐसे ही रहा तो बवाल होगा कहीं। अभी ही 40 आदमी मर चुके हैं लाइन में लगे-लगे।
7. अब देखना प्रेस में शादी के कार्ड छपवाने वाले भीड़ लगायेंगे। कार्ड दिखाकर ढाई लाख निकालकर शादी की तारीख आगे बढ़वा देंगे।
इसी तरह की और बातें दिन भर सुनते रहते हैं। जैसे कभी रामजी वन-वन भटकते हुये खग-मृग-मधुकर से सीता के बारे में पूछते फ़िरे थे वैसे ही पैसा निकालने वाला इंसान एटीएम-दर-एटीएम भटक रहे हैं। जिधर लाइन छोटी दिखी लग लिया। मिल गया पैसा तो ठीक नहीं तो अगली में लग लिया। जिसका पैसा नहीं निकला वह याद करता है--’असफ़लता बताती है कि सफ़लता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया’ इसके बाद फ़िर पुरे मन से दूसरी लाइन में लग जाता है।
जिसका पैसा निकल आता है उसके चेहरे पर वीरता के भाव अपने-आप लपक के बैठ जाता है। घर वाले बलैया लेते हैं। यार-दोस्त पार्टी की मांग करते हैं। एटीएम से पैसा निकालना सबसे बड़ा पुरुषार्थ हो गया हो गया।
काले धन की नकेल कसने के लिये उठाये गये कदम धड़ल्ले से नये तरह का काला धन बना रहे हैं। पांच सौ का कागज का टुकड़ा चार सौ रुपये में चल रहा है। कोई बताये कि इसमें काला धन सौ का हुआ कि पांच सौ का? बंद नोटों से खरीदी गयी नौ लाख की गाड़ी मोटरवाले के पास काले धन के रूप में मानी जायेगी कि सफ़ेद धन की।
लगता है काले धन से खुद को सफ़ेद करने के लिये जगह-जगह पार्लर लगा रखे हैं। सबमें धड़ल्ले से काम हो रहा है। काला धन मुस्करा रहा है। सफ़ेद धन कराह रहा है। उसका काम बढ गया है। कई बार इधर से उधर होते-होते उसका पोर-पोर दर्द कर रहा है। हड्डी-पसली एक हो रही है।
जिसका हजार का नोट आठ सौ में चल जाता है उसके चेहरे ख़ुशी देखकर उस बाप की याद आती है जिनका शर्तिया फेल होने वाला बच्चा 80% नम्बर पाकर सम्मान सहित उत्तीर्ण होता है।
इस सबसे बेखबर हमारे पंकज बाजपेयी जी हैं। वे अपनी जगह पर खड़े रोज मिलते हैं। कहते रहते हैं-’ कोहली को पकड़वाइये। वह रैकेट चला रहा है। गलत काम कर रहा है। कनाडा से लोग आये हुये हैं।’
हम चलते हैं दफ़्तर। तब तक आप मजे करिये। लाइन में लगें हों तो पानी की बोतल ले जाना मत भूलिये। धक्का मुक्का मत करिये। पैसा सिर्फ़ पैसा है जिन्दगी थोड़ी है। मिल जायेगा देर-सबेर। ठीक न !

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