Monday, November 07, 2016

छठ पूजा का आयोजन

आज सबेरे जरा टहलने निकले। बाहर देखा सूरज भाई अभी तक हाजिर नहीं हुये थे। मन किया अब्सेंट लगा दें लेकिन फ़िर नहीं लगाई। उजाला उनके पायलट के रूप में कायनात में पसरा था। मतलब आयेंगे, भले ही थोड़ी देर से।
एक कुत्ता अपनी पूंछ को झंडे की तरह फ़हराता हुआ सड़क पर खड़ा था। हमारी तरफ़ ही देख रहा था मानो हमको सलामी दे रहा हो। हमको अपनी तरफ़ देखकर पूछ ’टाटा, बॉय-बॉय मुद्रा’ में हिलाई और निकल लिया।
आगे तीन मोर सड़क पार करते हुये दिखे। एक के पीछे एक ठुमकते हुये मोर ”तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर" वाले पोज में चले जा रहे थे। सड़क की इस तरफ़ के कूड़े के ढेर को छोड़कर उस तरह के कूड़े की तरफ़ लपकते हुये मोर अपनी फ़ोटो अगर फ़ेसबुक पर लगाते तो ’हाऊ क्यूट, हाऊ स्वीट’ घराने की तमाम टिप्पणियां मिलतीं।
नहर के किनारे छठ पूजा का आयोजन हो रहा था। लोगों की भीड़ पूजा के लिये उमड़ी हुई थी। सामने से लोग डलिया में फ़ल, पूजा सामग्री लिये चले आ रहे थे। कुछ सर पर धरे थे। पूजा करके लौटती महिलाओं के माथे से नाक तक सिंदूर चमक रहा था।
पूजा स्थल के पहले ही दोनों तरफ़ गाडियों की कतार लगी थी। पूजा का द्वार सजा हुआ था। लाउड स्पीकर व्यवस्था बनाये रखने का अनुरोध हो रहा था। अन्य उद्घोषणायें भी हो रहीं थीं। गेट के पास ही मांगने वाले भी हथेली फ़ैलाये बैठे थे।
नहर के किनारे लोगों की भीड़ जमा थी। पूजा कर थी। प्रसाद पा रही थी। हंस रही थी। खिलखिला रही थी। दोने में प्रसाद ग्रहणकरके दोना वहीं सड़क पर फ़ेंककर आगे बढ़ रही थी। जगह-जगह पूजा पण्डाल में प्रसाद बंट रहा था। लोग ज्यादा हो गये थे इसलिये पंचामृत प्लास्टिक की ग्लास में तली में चिपका हुआ बंट रहा था। लोग ग्लास टेढ़ा करके पंचामृत ग्रहण कर रहे थे। इसके बाद ग्लास को सड़क को समर्पित करके चले जा रहे थे।
लोगों को मेले में गन्दगी फ़ैलाते देखकर भारतेन्दु का वाक्य याद आया-”त्योहार हमारी मुनिसपैलिटी हैं।" भारतेन्दु जी के समय मुनिसपैलिटी अपना सफ़ाई का मुस्तैदी से करती होंगी शायद इसलिये उन्होंने ऐसा कहा। आज होते तो शायद ऐसा कहने में हिचकते।
एक जोड़ा नहर के पानी में खड़ा पूजा कर रहा था। आदमी फ़ुल पैंट पहने , औरत साड़ी में। पूजा के बाद फ़ोटो। उसके बाद आदमी उचककर पानी के बाहर आ गया। महिला को आने में दिक्कत हो रही थी। किनारे गीली मिट्टी के चलते फ़िसल-फ़िसल जा रही थी महिला। फ़िर ऊपर एक आदमी ने उसका हाथ पकड़ा । दूसरे हाथ को किनारे जमाकर वह बाहर आई। बाहर आकर मुस्कराई। फ़िर फ़ेमिली के लोगों के साथ फ़ोटो खिंचाई।
एक महिला थकी-थकी सी पूजा कर रही थी।थकी महिला को उसके साथ की बच्ची कागज के पैकेट वाला घोल पिला रही थी, प्लास्टिक के पाइप के सहारे। बगल में एक बुजुर्ग महिला कपड़े बदल रही थी। वहीं सड़क पर जाती एक महिला ने अपनी ही उमर की एक महिला के बीच सड़क पर पांव छुये। कई बार छुये। बीच सड़क पर पांव छुआई से ’जन-जाम’ हो गया थोड़ी देर को। जब पांव-छुआई खतम हुई तब ’जन-जाम’ खुला। एक और बुजुर्ग महिला ने अपने पांव छूने वाली महिला की पीठ पर देर तक आशीष मालिश की।
पांव छुआने वालों में एक बुजुर्ग आदमी भी थे। एक नवविवाहिता ने उनकी पत्नी के पांव छुये। इसके बाद उनके छुय़े। उनकी मूंछे तनी हुई थीं। पांव छुआते हुये उनका चेहरा भी तन गया। शायद बहू को तनकर ही आशीष देना चाह रहे हों।
इस बीच घोषणा हुई कि एक बच्ची खो गयी है। नीली फ़्राक पहने है। जिसको दिखे मंच के पास पहुंचा दे।
नहर किनारे मंच भी बना था। वहां ’एक दिया शहीदों के नाम’ का पोस्टर लगा था। तमाम दिये रखे थे सामने। कुछ जल रहे थे, ज्यादातर बुझ गये थे।
जगह-जगह ठेलों पर चाय की दुकानें लगी थीं। एक ठेले पर मियां-बीबी चाय बेंच रहे थे। बच्चे वहीं प्रसाद खाते हुये खेल रहे थे।
मेले में गुब्बारे और खिलौने वाले भी थे। एक गुब्बारे वाला साइकिल पर सिलिंडर धरे एक गुब्बारा लटकाये खड़ा था। वहीं बाहर पचीसों गुब्बारे फ़ुलाये दूसरा बच्चा खड़ा था। उसके गुब्बारे धड़ाधड़ बिक रहे थे। दस रुपये का एक गुब्बारा। पता चला शुक्लागंज घर है उसका। कम से कम 15 किमी दूर। वहां से गुब्बारा बेंचने आया है। पांच बजे आ गया था मतलब चार बजे चला होगा। उठा और पहले होगा। कमर में बांधे गुब्बारे ग्राहकों को देता जा रहा था। साथ में फ़ुलाता भी जा रहा था।
एक गाड़ी की डिग्गी में बच्चे तसल्ली से बैठे हुये थे। एक मोटरसाइकिल में तीन लोग बैठे हुये थे। बीच वाली महिला किनारे वाली महिला को कपड़ों से पकड़े हुये थी कि अगर गिरे तो उसे बचा ले।
नहर की दूसरी तरफ़ भी लोग पूजा करने वाले थे। लेकिन कम थे। इस बीच देखा सूरज भाई आसमान में अपनी सेना के साथ हाजिर थे। पुराने आसमान पर जलवा फ़ैला हुआ था उनका। मल्लब सुबह हो गयी थी।
यह छठ पर्व की खास सुबह थी।

No comments:

Post a Comment