Tuesday, October 08, 2019

मस्जिद की दीवार पर संस्कृत

कल बुरहानपुर टहलना हुआ। मध्यप्रदेश में खण्डवा और भुसावल के बीच बसा हुआ बुरहानपुर सूत और कपड़े की बड़ी मंडी है। 400-450 साल पहले यहां के सूती कपड़ों का जलवा ऐसा था कि इसके चलते इंग्लैंड में वहां का कपड़ा उद्योग खस्ताहाल हो गया। भारत से आने वाले कपड़े पर पाबंदी लगाई गई।
बुरहानपुर में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं। यहीं पर मुमताजमहल 39 साल की उमर में 13 बच्चे को जन्मते हुए 'शांत' हो गयी थी। आगरे के ताजमहल के बनने तक यहीं एक कब्रगाह में उनका शव रखा था। ताजमहल बनने के उनका शव आगरे ले जाकर दफनाया गया।
बुरहानपुर की प्रसिद्द इमारतों में से एक है काले पत्थर की बनी मस्जिद । इसे यहां जामा मस्जिद कहते हैं। मंदिर के मोअज्जिन मुस्ताक अहमद के अनुसार मस्जिद 450 साल पुरानी है। काले पत्थर की बनी इस मस्जिद की खासियत है कि इसमें कोई छत नहीं है। पूरी इमारत खम्भों पर टिकी है। नीचे से ऊपर जाते हुए खम्भे चौड़े होते गए और इन पर ही मस्जिद की इमारत टिकी हुई है।
मस्जिद की दूसरी खासियत इसमें मस्जिद बनवाने वाले शासक की संस्कृत में लिखी तारीफ है। फारुखी वंश के शासक को सूरज और चांद के समान बताते हुए तारीफ की गई है।
मस्जिद में संस्कृत में लिखी इबारत को देखकर कानपुर के प्रसिद्ध गीतकार अंसार कम्बरी Ansar Qumbri के गीत की पंक्तियां याद आ गईं:
शायर हूं कोई ताजा गजल सोच रहा हूं,
फुटपाथ पर बैठा हूं महल सोच रहा हूं।
मंदिर में नमाजी हो और मस्जिद में पुजारी,
हो किस तरह से ये फेरबदल सोच रहा हूं'।
मंदिर के अहाते में ही शाही कब्रें बनी हुई हैं। कभी रोब-दाब से जीने वाले शाही वंशजों की कब्रों पर एक कौआ बैठा अपने पंजों में दबे सामान का नाश्ता कर रहा था। एक कब्र पर बैठे ऊब गया तो उचककर दूसरी पर बैठ गया। शाही कब्रों के को धूप और बारिश से बचाने वाला मोमिया फटकर किसी झंडे की तरह फड़फड़ा रहा था।
मोअज्जिन साहब की उम्र 70 के करीब थी। हाथ-पैर जिस तरह से हिल रहे थे उससे लगा कि फालिज के झटके से उबरे हैं। 30 से मस्जिद में अजान दे रहे हैं। मस्जिद का ख़र्च यहां से लगी दुकानों के किराए से आता है। शायद कुछ चन्दा भी आता हो।
मस्जिद में घुसते हुए दोनों तरफ चबूतरे बने हुये हैं। कोई उनपर बैठकर आराम कर सकता है। मस्जिद के सामने दो तालाबों में पानी है। वजू करने के लिए पत्थर के पीढ़े बने हैं। वहीं एक मिट्टी के बर्तन में पानी रखा था। एक गिलहरी पानी पीते हुए गर्दन हिलाते हुए पानी को अंदर रखती जा रही थी। उसको देखते हुए दूसरी गिलहरी भी आ गयी। वह भी पानी पीने लगी।
मस्जिद के बाहर सड़क पूरी गुलजार थी। एक महिला सड़क को घर के आंगन की तरह आबाद किये बर्तन धो रही थी। अंगीठी पर रखी पतीली पर कुछ पक रहा था। पानी रखने के लिए ड्रम में का भी इंतजाम था।
मस्जिद को देखकर हम आगे बढ़ लिए। आगे ताप्ती नदी के किनारे बना किला हमारा इंतजार कर रहा था।

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