Monday, January 06, 2020

मोरा मन दर्पण कहलाये

 


सबेरे टहलने निकले। सामने ही रामलीला मैदान है। वर्षो से यहां रामलीला होती है। रामलीला के बाद कवि सम्मेलन और मुशायरा। आसपास के कई जिलों के लोग यहां मेला देखने आते हैं। अनगिनत किस्से जुड़े हैं उस मैदान से।

रामलीला मैदान के एक हिस्से में अम्बेडकर पार्क है। पार्क की बाउंड्री कई जगह से हिल गयी है। कहीं किसी ने मांगलिक कार्यक्रम में टेंट बांधा तो हिल गयी, किसी स्मैकिए ने लोहा चुराने की मंशा से धीरे-धीरे हिलाकर कमजोर कर दिया है। एक जगह तो कई मीटर तक दीवार हिल रही है। एक धक्का और , बस गयी दीवार। मरम्मत करानी होगी। नियमित टूटफूट की ज्यादा नियमित मरम्मत होती रहनी चाहिए।
सामने सूरज भाई पूरी शिद्दत से उगे हुए हैं। खूबसूरत लग रहे। चेहरे पर कोहरे और सर्दी को पछाड़ देने का विजय गर्व। मुस्कराते हुए गुडमार्निंग करते हुए बोले -'रोज निकला करो।'
रामलीला मंच पर कुछ बच्चे सिगरेट पी रहे हैं। क्या पता उनमें से कोई उस बिरादरी का हो जो बाउंड्री को हिलाकर तोड़ता हो। सुबह का समय , नागरिक बोध चैतन्य हुआ। छह सात बच्चे थे। हमने उनको टोंका -' यहां सिगरेट क्यों पी रहे?'
एकाध बच्चे तो चुपचाप उठकर चल दिये। एक ने सवाल किया -'यहां न पिएं तो कहां पियें? घर में तो पी नहीं सकते।'
हमने कहा -' तो जरूरी है सिगरेट पीना?'
बच्चा बोला -'तलब लग रही तो क्या करें? 22 साल के हो गए। हमारी मर्जी हम जो पियें। अपना पैसा कोई तुमसे थोड़ी मांग रहे।'
उनके ठोस तर्क से हमने डरते हुये उनसे वहां से चले जाने को कहा। बच्चे चले तो गए लेकिन उनमें से एक ने धमकाते हुए कहा -'देखते हैं अभी तुमको आकर।'

हमारे डर का कारण बच्चों की सिगरेट की तलब नहीं थी। हम यह सोचकर डर गए कि कल को इसी तर्ज पर कोई आकर हमको पीट जाएगा। पूछने पर कहेगा -'हमको तलब लगी है पीटने की इसलिए पीट रहे।' ये तलब का मामला बहुत भीषण है।
सामने सूरज भाई मुस्कराते हुए सब देख रहे हैं। देखते तो वो सब रहते हैं । कहीं किसी ने किसी को उड़ा दिया, कहीं किसी ने किसी को बचा लिया। कहीं कोई घुस गया, मारपीट करी और निकल गया। कोई घायल, कोई कराह रहा, कोई बयान दे रहा। सब चुपचाप देखते रहते हैं। लक्खों सालों से। लेकिन कुछ बोलते नहीं। भले आदमी की तरह अपने काम से काम।
सामने की सड़क से लोग फैक्ट्री आ रहे हैं। दूर सड़क पर सूरज की किरणें सड़क पर चमक रही हैं। मानो सड़क कोई शीशा हो जिसमें सूरज की किरणें अपना मुखड़ा देखकर चमकने के लिए निकल रहीं हों। काम पर निकलना है तो जरा बन-ठन कर निकलें। क्या पता गाना भी गाती जा रहीं हों -'मोरा मन दर्पण कहलाये।'
मंदिर के पास पुलिस जीप खड़ी है। कुछ सिपाही भी। दो महिला सिपाही भी हैं। सात बजे से आठ नौ तक रहते हैं यहां ये लोग। हमने रामलीला मंच की तरफ देखने की बात कही तो भाई जी ने कहा -'देख लेंगे जी उधर भी देख लेंगे। सब तरफ देखते हैं हम।' कई जगह के नाम गिना डाले उन्होंने।
पार्क के अलग-अलग कोनो पर अलग-अलग अधिकारियों के नामपट्ट लगे हैं। किसी के नाम कोई पेड़ लगाने का , किसी के नाम पार्क शुरू कराने में, किसी ने द्वार बनवाया। उनमें से कोई अब यहाँ नहीं है। कोई नौकरी से रिटायर हो गया, कोई दुनिया से। लेकिन उनके नाम चल रहे हैं। वह भी तब तक जब तक कोई बोर्ड नहीं बदलता। क्या पता कल को बोर्ड बदलकर बहुत पहले हुये काम का फिर से उदघाटन कर दिया जाए।
सूरज भाई को फिर से नमस्ते किया तो बोले -'जाओ अब काम-धाम करो।' कहते हुए वो और ऊंचे उचककर चमकने लगे।

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