Sunday, January 05, 2020

ईंट के सिंहासन पर बैठा पीपल का पेड़

 


सुबह इस्टेट देखने निकले। बगल में ही बरगद का पेड़ दिखा। तमाम ईंटे बरगद की गोद मे छिपी थीं। जैसे सर्दी से छुपन-छुपाई खेल रहीं हों। शायद कभी गुमटी रही हो ईंट की। बढ़ते पेड़ के साथ उसी में दुबकती चलीं गई।
पास ही एक पीपल का पेड़ देखा। ईंटो के सिंहासन पर बैठकर धूप तापते। पेड़ की जगह पहले ईंट की पानी की टँकी रही होगी। होगी क्या थी। वहीं किसी चिड़िया की बीट से पीपल के बीज पड़े होगें। पहले छोटा पौधा रहा होगा। फिर बढ़ते हुए पेड़ बन गया होगा। समय के साथ पानी की टँकी कहीं और शिफ्ट हो गयी होगी। जिस जगह पानी की टँकी रही होगी उस पर पीपल के जवान होते पेड़ ने कब्जा कर लिया होगा।
आज तो कोई देखेगा तो यही कहेगा -' ये ईंट का चबूतरा तो पेड़ के लिए ही बना होगा। यह पेड़ का सिंहासन है।'
मामूली सी दिखने वाली खराबी और बुराई को अनदेखा करने पर वह कैसे बढ़कर पूरी माहौल में पसर जाती है इसका मुजाहिरा करते दिखा मुझे ईंट के चबूतरे पर सवार पीपल का पेड़। आपके अगल-बगल भी ऐसे तमाम मंजर दिखते होंगे। सब तरफ दिख जाते हैं आजकल। हम भी उनको नजरअंदाज करते हुए मजे कर रहे हैं।
इसके अलावा और कर भी क्या सकते हैं। आजकल माहौल में गर्मी बहुत है। जाड़ा भी भयंकर वाला पड़ रहा है। चुपचाप दुबक के बैठे हैं रजाई के भीतर जैसे बरगद की गोद में ईंटे दुबकी हैं।

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