Thursday, February 27, 2020

चलाना पड़ता है





 सुबह का समय। कोहरे की दुकान अभी पूरी तरह सिमटी नहीं है। सूरज भाई अभी नमूदार नहीं हुए हैं। लगता है कोहरे को मौका दे रहे हैं -' फहरा लो थोड़ी देर और अपना झंडा।'

पार्क के बाहर पुलिस जीप में बैठा ड्रॉइवर मुस्तैदी से मुंह चला रहा है। मुंह में गिरफ्तार आइटम की हड्डी पसली एक कर दे रहा है। मुंह में साबुत घुसा आइटम चकनाचूर होकर लुगदी बनते हुए उसके पेट में घुसता जा रहा है। जैसे-जैसे मुंह का आइटम पेट की तरफ बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे उसके चेहरे पर संतुष्टि का परचम लहराता जा रहा है।
पार्क में लोग मुस्तैदी से कसरत कर रहे हैं। कोने में बैठा एक आदमी तेजी से सांसें अंदर करते हुए ढेर सारी हवा पेट में इकट्ठा करता जा रहा है। उसकी तेजी से लग रहा मानो उसको डर है कहीं हवाबंदी न हो जाये दुनिया में। क्या पता कल को हवाबन्दी के बाद पूरी दुनिया को हवासप्लाई का ठेका किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी को हो जाएगा। फिर तो यह भी मुमकिन है कि हर इंसान की सांस की जांच की जाए। जिसकी साँसों में उस कम्पनी की हवा न पाई जाए उसकी जिंदगी को सस्पेंड कर दिया जाए। जब तक वह पूरी हवा उस कंपनी से न भरवा ले तब तक वह दुनियबदर कर दिया जाए।
एक आदमी सीमेंट की फर्श पर बैठा बड़ी तेजी से अपने कंधे हिला रहा है। गोलगोल। उसकी तेजी देखकर हमको एकबारगी लगा कहीं उसके कंधे उखड़कर हाथ में न आ जाएं। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कंधे की एक्सरसाइज करके वह तेजी से उठा और पार्क में थूककर टहलते हुए बाहर की तरफ चल दिया। बगल से गुजरते हुए उस आदमी को टोकने का मन हुआ कि कहें पार्क में क्यों थूकते हो? लेकिन फिर यह सोचकर नहीं टोंका कि कहीं हमसे पूंछ न बैठे -'पार्क और होते किसलिए हैं? यहां भी न थूंके तो कहां थूंके?' टोंका इसलिए भी नहीं कि उसका चेहरा गुस्से में लग रहा था और उसके मुंह में बहुत कुछ इकट्ठा था।
एक आदमी एक कुत्ते को टहला रहा था। कुत्ता जंजीर घसीटते हुए आदमी को टहला रहा था। आदमी कुत्ते के मालिक का सेवक होगा। कुत्ता अपने मालिक के सेवक को अपना सेवक समझते हुए उससे चिपटकर मस्तिया रहा था। आदमी के कपड़े खराब हो रहे थे लेकिन वह कुछ कर नहीं रहा था। कुत्ता कमउम्र था। लेकिन बदमाशी में मैच्यर्ड लग रहा था। कुछ देर मस्तियाने के बाद वह आदमी के साथ जिस तरह की हरकतें करने लगा उसे देखकर लगा मानो अपनी पार्टनर के साथ डेटिंग का रियाज कर रहा हो।
कुत्ते को टहलाने के साथ वह आदमी दो बच्चों को झूला भी झूला रहा था। बच्चों और कुत्ते की देखभाल के लिए आदमी के बच्चों की देखभाल कौन करता होगा ? यह सोचने की फुरसत ही नहीं मिली मुझे।
एक लड़का पार्क में टहलते हुए चने बेंच रहा था। बताया कि मां-बहन की देखभाल करता है। पिता नहीं रहे। पिता के न रहने की बात कहते हुए आंसू आ गए उसकी आंख में। पहले किसी दुकान में नौकरी करता था। कुछ ऊंचाई से कूदने के चलते पांव लचक गया। लंगड़ाते हुए चलता है।
'कितनी कमाई हो जाती है चने बेंचकर? 'पूछने पर बताया 250/- तक हो जाती है। 50-60 बच जाते हैं।
' इतने में कैसे खर्च चल जाता है ?' पूछने पर कहा -'चलाना पड़ता है।
और बात होने पर पता चला कि बच्चे जैसा वह इंसान शादीशुदा है। पत्नी और बच्चा उसके साथ नहीं रहते। कारण पूछने पर बताया कि पत्नी को खर्च के लिए दो सौ रुपये रोज चाहिए। इतने कहां से लाये हम ?
हम कुछ सोचने लगे। हमको सोच में डूबा देखकर वह बच्चा धीमी चाल से आगे जमा लोगों के पास जाकर 'चने ले लो' का आह्वान करने लगा। हम वापस चल दिये।
वापस आते समय बच्ची मिली जिसने सी-सा पर गद्दी लगवाने को कहा था। पार्क में होती हुई सफाई देखकर उसके पिता-माता ने कहा -'इसने बताया कि इसके कहने पर सफाई करा रहे हैं अंकल। गद्दी भी लगवाएंगे।'
बच्ची मुस्कराती हुई खेलने लगी। हम तैयार होकर दफ्तर आ गए।

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