Monday, February 01, 2021

इतवारी निठल्लाबाजी के बहाने

 

समय बिताने/बर्बाद करने के लिए हर समाज अपने तरीके अपनाता है। बचपन में अपन समय बिताने के लिए अंत्याक्षरी खेलते थे। थोड़े बड़े हुए तो क्रिकेट खेला काफी दिन। अब बारी है सोशल मीडिया की।
सोशल मीडिया ने संसार के तमाम निठल्लों को तसल्ली से समय बर्बाद करना सिखाया है। जितने निठल्लों को समय बर्बाद करना सिखाया उससे ज्यादा लोगों को निठल्ला बनाया है इस सामाजिक मीडिया ने। सामाजिक मीडिया ने लोगों को बहुत तेजी से असामाजिक बनाया है।
बहरहाल बात क्रिकेट की। अंग्रेजों ने ईजाद की क्रिकेट। उनके पास समय इफरात था। खाली समय को बिताने की गरज से उन्होंने क्रिकेट का जुगाड़ किया। खुद तो निठल्ले थे इसलिए क्रिकेट जैसे समय खपाऊ खेल का इंतजाम किया। खुद निठल्ले होने के अलावा उन तमाम लोगों को भी निठल्ला बनाया जहां उनकी हुकूमत थी।
अंगरेज लोगों ने मैदान में खेले जाने वाली क्रिकेट का ही इंतजाम किया इससे लगता है कि उनके घरेलू ताल्लुकात गड़बड़ाए रहते होंगे। मियां-बीबी में पटती नहीं होगी। लिहाजा इज्जत और सुकून को तलाश में क्रिकेट में पूरी हुई।
कल हम भी क्रिकेट खेले। बहुत दिन बाद। मौसम सुबह गड़बड़ था। लेकिन दोपहर के पहले पूरा क्रिकेटियाना हो गया। धूप खिल गयी। लगता है सूरज भाई को खबर मिल गई थी कि अपन भी खेलेंगे इसलिए जाड़े के लिहाज सबसे बेहतरीन क्वालिटी की एकदम साफ, धुली-पूछी धूप का इंतजाम कर दिया मैच के पहले।
मैच में टॉस जीतकर हमारी टीम ने बैटिंग चुनी। हमारे ओपनर बल्ले घुमाते रहे लेकिन गेंद बल्ले से रूठी-रूठी एकदम पास से निकलकर विकेटकीपर के पास चली जाती रही। गेंद को भी बुरा लगता होगा कि वो जब खुद आ रही है बल्ले से मिलने तो बल्ला लालचियों की तरह उसकी तरफ क्यों लपक रहा है।
हाल यह रहा कि बहुत देर तक गेंद और बल्ले में बातचीत तक नहीं हुई। कुछ देर बाद जब हुई भी गेंद जरा दूर जाकर बैठ गयी। रन अलबत्ता बनते रहे। बल्ले से ज्यादा अतिरिक्त रन बने शुरू में। हमारे एक खिलाड़ी कैच हुए, दूसरे रन आउट। इसके बाद अपन आये मैदान में।
बहुत दिन बाद खेलने उतरे तो लग रहा था पहली गेंद खेल जाएं, बहुत है। फिर लगा एक रन बन जाये तो समझो इज्जत बच गयी। बहरहाल गेंद भी खेली गई, रन भी बने। दो बार बल्ला जरा तेजी से घूमा, गलती से गेंद पर लग गया। गेंद भन्नाती हुई बाउंड्री की तरफ भागती चली गईं। दोनों बार चार रन मिले।
खेलते समय हवा के कारण जुल्फें बार बार माथे के छज्जे के कपड़े की तरह लटक जातीं फिर आंखों के सामने आ जातीं। जितनी बार बाल आंख के सामने आते हमको उतनी बार श्रीमती जी की याद मय उनके उलाहने के याद आती -'माथे पर बाल इत्ते बड़े क्यों रखवाए?'
सच जो है वो मैंने बयान किया। अब लिखने के लिए यह भी सच है कि मैदान में जहां रन बनाने में जहां कठिनाई हो रही थी वहां हमको श्रीमती जी की याद आ रही थी। मतलब कठिन समय में साथ।
इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि शरीक-ए-हयात की यादें, उलाहने इंसान का किस कदर पीछा करते हैं। शाहिद रजा Shahid Raza ऐसे ही थोड़ी कहते हैं:
हरेक बहाने तुम्हें याद करते हैं
हमारे दम से तुम्हारी दास्तान बाकी है।
बहरहाल हमने ज्यादा लालच न करते हुए खरामा-खरामा गेंदे खेली। गेंदों को पूरी इज्जत दी। रन बनाने का जिम्मा अपने साथी कर्नल जिवेंद्र को सौंपा। उन्होंने धुंआधार बल्लेबाजी करते हुए 49 रन बनाए और अंत तक आउट नहीं हुए
हमने फाइनली भी आउट होने के पहले दो बार आउट होने की कोशिश की। रन आउट होते-होते बचे। ऐन समय पर भागकर विकेट पर पहुंचने की कोशिश में दो बार लद्द से मैदान में गिरे। गिरे तो अपनी गलती से। मन जितनी तेजी से विकेट पर पहुंच जाता, तन उतनी फुर्ती नहीं दिखा पाता। तन और मन के तालमेल के अभाव में जमीन से जुड़ना हुआ। गनीमत यह रही कि कहीं चोट नहीं लगी। नाराज होकर किसी हड्डी ने समर्थन वापस नहीं लिया। वैसे भी शरीर में कोई चुनाव थोड़ी चल रहे थे जो कोई अंग किसी पार्टी से इस्तीफा देकर दूसरी पार्टी को ज्वाइन करे।
आखिर में हम आउट हुए अपनी ही मर्जी से। रन आउट। विकेटकीपर के हाथ में गेंद पहले पहुंच गई। हम नहीं पहुंच पाए क्योंकि इस बार हम गिरे नहीं। बहरहाल 20 बाल पर 18 रन का स्कोर रहा अपना। यह स्कोर गावस्कर के उस स्कोर से स्ट्राइक रेट से तो बढ़िया ही था जब उन्होंने नॉटआउट रहते हुए 36 रन बनाए थे, 60 ओवर में।
हमारी टीम ने 4 विकेट पर 135 रन बनाए। 4 में 3 लोग रन आउट हुए।
जबाब में दूसरी टीम ने 3 रन पहले 20 ओवर खर्च कर डाले। लिहाजा हम 3 रन से जीत गए। जीतने के पहले कई बार हारते हुए लगे। हार भी जाते अगर दूसरी टीम के शुरुआती बल्लेबाज मैच को दस ओवर में ही खत्म करने वाले अंदाज में न खेलते। हमारी तरफ से अनुराग, ऋषि और डॉक्टर सिंह ने नाजुक मौकों पर बेहतरीन कैच पकड़े। पैट्रिक दास, अरविंद श्रीवास्तव और पंकज ने बढ़िया गेंदबाजी की।
मैच के सबसे सफल बल्लेबाज अमन रहे। दो छक्के और कई चौके लगाए। लेकिन साथ न मिलने के कारण जिता नहीं पाए। हमारी तरफ से बाद के ओवर में बढ़िया गेंदबाजी और फील्डिंग के कारण हमारी टीम जीत गयी।
मैच को रोमांचक बनाने में अच्छा खेलने वाले बल्लेबाजों, विकेट लेने वाले गेंदबाजों, फील्डरों से भी अधिक योगदान दूसरी टीम के कप्तान दिनेश सिंह का रहा। 30 साल बाद बल्ला पकड़ने वाले दिनेश ज्याफ बायकॉट की तरह मजबूत बल्लेबाजी कर रहे थे। हम लोगों की स्ट्रेटेजी थी कि दिनेश सिंह को आउट नहीं होने देना है। रन नहीं बनने देना है। लेकिन दिनेश सिंह ने हमारी इस योजना को फ्लॉप करते हुए खुद रिटायर्ड हर्ट हो गए। टीम के और लोगों को मौका दिया। इससे उनकी टीम फिर संघर्ष में लौट आई और जीतते-जीतते बची।
कल के खेल से दो सीख मिली:
1. शरीर स्वस्थ रखने के लिए नियमित वर्जिश जरूरी है।
2. क्रिकेट और जिंदगी में बहुत फर्क नहीं है। दोनों जगह आखिरी दम तक जूझने से सफलता मिल ही जाती है।
एक दिन के खेल में दो सीख मिलना कम थोड़ी होता है।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10221661326535919

No comments:

Post a Comment