Friday, April 01, 2005

रंज लीडर को बहुत है,मगर आराम के साथ



कल रात देर तक जगा.फिर सो नहीं पाया.घर के बाहर पक्षी आवाज कर रहे थे.कोलाहल से नींद टूट गयी.इस कोलाहल को पता नहीं क्यों कविगण कलरव कहते रहे ?बाहर निकल कर मैंने देखा तो मोर हल्ला मचा रहे थे.मैंने कहा:-तुम क्यों चिल्ला रहे हो? सोने क्यों नहीं देते.एक स्मार्ट से दिखने वाले मोर ने इठलाते हुये कहा:-साहब ,अब तो भोर हो गयी.उठ जाइये.रात तो कब की बीत गई.आप उठते क्यों नहीं?मैंने उसे ,दिस इज नन आफ योर बिजनेस,कहकर हड़काने के लिये मुंह खोला कि मेरे मुंह से सवाल चू पड़ा-पर बांग देकर जगाने का काम तो मुर्गे करते थे.तुम लोग क्यों जुटे हो इस काम में?वह बोला-साहब यह काम मुर्गों ने मोरों को आउटसोर्स कर दिया है.वे खुद तो सो रहे होंगे कहीं .हम जुटे हैं पेट की खातिर.

मैं वापस लौट रहा था कि एक मोर गर्दन उचकाते हुये बोला:-साहब ,आप तो मुझे पहचानते होंगे.मैं हिंदिनी की छत पर रहता हूं.मेरे स्वामी ने मुझे आपका लेख लेने के लिये भेजा है.हिंदिनी में छापेंगे.मैं बोला:- क्या हाल हैं तुम्हारे साहब के?मूड ठीक है.वह बोला :-हां ,हवाखोरी के बाद कुछ ठीक लग रहे हैं.देखो कब तक ठीक रहते हैं.मैंने कहा:-ठीक है ,तुम चलो मैं लेख भेजता हूं.
सबेरे आफिस पहुंचा तो लिखने का दबाव हावी था.एक अप्रैल आ गया था पर वहां दिगदिगन्त में ३१ मार्च हावी था.बिल, रजिस्टर,चिट्ठी-पत्री चतुर्दिक ३१ मार्च का साम्राज्य पसरा था.सूरज १ अप्रैल का साइनबोर्ड लटकाये था पर फाइलों पर मार्च का कब्जा था.एक दिन-समय दो तारीखें चोर -सिपाही की तरह गलबहिंयां डाले घूम रहीं थीं.
दुनिया का तो पता नहीं पर अपने देश में ३१ मार्च का दिन सबसे लंबा होता है.हफ्तों पसरा रहता है.कहीं -कहीं तो महीनों ,सालों तक.बालि को बरदान था कि उसके शत्रु की आधी शक्ति उसे मिल जाती थी.राम को उसे छिपकर मारना पड़ा.यहां देखरहा हूं कि ३१ मार्च का दिन अप्रैल के दिनों को पनपने ही नहीं देता.अप्रैल के दिन आते है. अपना सर काटते है.मार्च के चरणों में चढ़ाते हैं चले जाते हैं.
३१ मार्च की ताकत का कारण तलाशने पर पता चलता है कि यह वित्तीय वर्ष का अंतिम दिन होता है.आज खर्चने का आखिरी दिन होता है सरकारी महकमों में.जोआज खर्चा नहीं होता वह हाथ से निकल जाता है.’लैप्स’हो जाता है.सारी कोशिशें की जातीं हैं कि पैसा इसी साल हिल्ले लग जाये.एक पेन खरीदने की स्वीकृति देने में नखरे करने वाला साहब छापाखाना लगवाने का आदेश बिना जरूरत दे देता है.आज,अभी इसी वक्त वाले अंदाज में.सब कुछ ३१ मार्च को होना है.
इस दिन सरकारी कर्मचारियों की कार्यक्षमता चरम पर होती है.११३० पर मिली ग्रान्ट ११३५ तक ठिकाने लग जातीहै. ’कन्ज्यूम’ हो जाती है.अगर ३१ मार्च की कार्यक्षमता के अंश के टुकड़े-टुकड़े करके साल के बाकी दिनों में मिला दिये जायें तो देश पलक झपकते चमकने लगे.देश २०२० के बजाये अगले साल ही विकसित हो जाते.३१ मार्च का ‘फ्लेवर’ही कुछ ऐसा है.
मैं और तमाम बातें कहता पर हमारे दोस्त ने टोंक दिया.ये क्या मजाक है.’मूर्ख दिवस’ पर ज्ञान की बातें कर रहे हो.अजीब मूर्खता है.मैंने कहा -क्या यह साबित नहीं करता कि ३१ मार्च का समय बीत गया.एक अप्रैल आ गया है .दोस्त ने कहा-करो कोई मूर्खतापूर्ण हरकत.हम बोले लिख रहे है यह कोई कम मूर्खतापूर्ण काम है.इससे बड़ी मूर्खता भी की जा सकती है क्या कोई?दोस्त उवाचा:-यह मूर्खता तो तुम बहुत दिन से कर रहे हो.कुछ नया करो.अपने से ऊपर उठो.देश,काल,समाज की बात करो. मार्च-अप्रैल को नादान ब्लागरों की तरह मत लडवाओ.
हम फौरन गंभीर हो गये.अपने गुरुकुल गये-इलाहाबाद.अकबर इलाहाबादी से कहा:-बुजुर्गवार कोई ऐसा शेर बतायें जो आज के हाल का बयान करता हो.बुजुर्गवार ने गला साफ करके फरमाया:-
कौम के डर से खाते हैं डिनर हुक्काम के साथ,
रंज लीडर को बहुत है,मगर आराम के साथ.

जब देश के कर्णधार आराम के मूड में हों तो उनका अनुशरण न करना बेअदबी है.कम से कम मैं ऐसा नहीं कर सकता.

मेरी पसंद

यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ!
आसमान टूटा,
उस पर टंके हुये
ख्वाबों के सलमे-सितारे
बिखरे.
देखते-देखते दूब के दलों का रंग
पीला पड़ गया
फूलों का गुच्छा सूख कर खरखराया.
और ,यह सब कुछ मैं ही था
यह मैं
बहुत देर बाद जान पाया.

-कन्हैयालाल नंदन

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

9 responses to “रंज लीडर को बहुत है,मगर आराम के साथ”

  1. eswami
    आपका लेख पढ कर याद आया. इधर अप्रेल का महिना शुरु होते ही टेक्स अदायगी की आपाधापी शुरु हो जाती है. पिछले साल तो मैंने आखरी दिन टेक्स भरा था – जब की रिफ़ंड आना था. इस साल भी लग रहा है वही होगा.
  2. जीतू
    भई, हम अपना टिप्पणी धर्म निभाते हुए, रात के एक बजे ये टिप्पणी कर रहे है,
    फुरसतिया जी, आपको नये गृहप्रवेश पर बहुत बहुत बधाई, अब इ बताया जाय, कि इस नये ब्लाग का नाम का रखोगे, अब फुरसतिया तो ब्लागस्पाट वाले का हैइ है, इसके नाम मे मामूली सा फेरबदल किया जाय, ताकि दोनो मे कुछ तो फर्क हो सकें.
    अब रात के एक बजे का मामला भी सुन लो, अभी अभी एक दावत से लौटे, तो दाँत के दर्द ने बहुत परेशान कर दिया, सोचा चलो थोड़ा इन्टरनैट खंगाल ले,मूड फ्रेश हो जायेगा,इमेल देखी तो पाया कि अपने प्यारे स्वामीजी की इमेल आयी पड़ी थी, आपके नये गृहप्रवेश की, सो सोचा, चलो भाई, न्योता आया है तो बधाई भी दे आयें. दाँत मे दर्द है इसलिये मिठाई बकाया रही, बाकिया चकाचक
    (स्वामी जी को कमेन्ट चालू करने के लिये धन्यवाद)
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  7. विवेक सिंह
    एक एक पोस्ट खँगालने की शुरूआत होगई है . सारा ज्ञान गृहण कर लेंगे .
  8. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] 1.मरना तो सबको है,जी के भी देख लें 2. सतगुरु की महिमा अनत 3.मेढक ने पानी में कूदा,छ्पाऽऽऽक 4.जन्मदिन के बहाने जीतेन्दर की याद 5.हम घिरे हैं पर बवालों से 6.देबाशीष-बेचैन रुह का परिंदा 7.आवारा पन्ने,जिंदगी से–गोविंद उपाध्याय 8.आवारा पन्ने,जिंदगी से(भाग दो) – गोविंद उपाध्याय 9.आवारा पन्ने,जिंदगी से(भाग तीन) 10.संगति की गति 11.आओ बैठें ,कुछ देर साथ में 12.राजेश कुमार सिंह -सिकरी वाया बबुरी 13.नैपकिन पेपर पर कविता 14.सैर कर दुनिया की गाफिल 15.नयी दुनिया में 16.हम तो बांस हैं-जितना काटोगे,उतना हरियायेंगे [...]
  9. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] 1.मरना तो सबको है,जी के भी देख लें 2. सतगुरु की महिमा अनत 3.मेढक ने पानी में कूदा,छ्पाऽऽऽक 4.जन्मदिन के बहाने जीतेन्दर की याद 5.हम घिरे हैं पर बवालों से 6.देबाशीष-बेचैन रुह का परिंदा 7.आवारा पन्ने,जिंदगी से–गोविंद उपाध्याय 8.आवारा पन्ने,जिंदगी से(भाग दो) – गोविंद उपाध्याय 9.आवारा पन्ने,जिंदगी से(भाग तीन) 10.संगति की गति 11.आओ बैठें ,कुछ देर साथ में 12.राजेश कुमार सिंह -सिकरी वाया बबुरी 13.नैपकिन पेपर पर कविता 14.सैर कर दुनिया की गाफिल 15.नयी दुनिया में 16.हम तो बांस हैं-जितना काटोगे,उतना हरियायेंगे [...]

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