हम बहुत निराश हैं .मैंने होली के अवसर पर लिखा -बुरा मान जाव होली है.कोई बुरा नहीं माना .उल्टे लोग तारीफ कर रहे है.यह भी कोई बात है.यहां तक कि निठल्ले तक बुरा नहीं माने जिनका मैं जिक्र भूल गया बिना सारी कहे.हां यह खुशी कि बात है अतुल ,स्वामीजी वगैरह पूरा होलिया रहे हैं .सारे बचपना निकाल रहे हैं लिखा-पढ़ी में.पर इससे हम कुछ निराश भी हैं.इनका प्रेमालाप बार-बार हमारे जेहन में शेर ठेल रहा है - बशीर बद्र का:-
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे,
फिर कभी जब दोस्त बन जायें तो शर्मिन्दा न हों.
कानपुर में रंग हफ्ते भर चलता है.आज कानपुर में गंगा मेला मनाया जाता है.रंग चलता है होली वाले ही अंदाज में.आज के बाद रंग कीचड़ हो जाता है सब बंद हो जाता है.आज के बाद सब कुछ साफ हो जाता है.सब जगह.
होली का त्योहार देवर-भाभी के लिये खास तौर पर याद किया जाता है.देवर भाभी का एक लोगगीत मुझे बहुत पसंद है. प्रख्यात गीतकार लवकुश दीक्षित का लिखा/गाया अवधी भाषा का यह गीत भाभी द्वारा देवर की बदमासियों ,शरारतों के जिक्र से शुरु होकर खतम होता है जहां भाभी बताती है कि देवर पुत्र के समान होता है.अपनी शैतानियां समाप्त कर दो .मैं देवरानी को बुलवा लूंगी ताकि तुम्हारी विरह की आग समाप्त हो जायेगी.यह भी कहती है कि मैं होली खेलूंगी जैसे भाई के साथ सावन मनाया जाता है.
यह गीत मैं कभी ब्लागनाद के द्वारा सबको सुनवाऊंगा .यह तभी संभव है जब अतुल,जीतेन्दर तथा स्वामीजी मुझे मिलकर ब्लागनाद की ट्रेनिंग दें -मिलकर.अकेले मैं नहीं सीखने वाला किसी एक से.
निहुरे-निहुरे कैसे बहारौं अंगनवा,
कैसे बहारौं अंगनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा.
भारी अंगनवा न बइठे ते सपरै,
न बइठे ते सपरै,
निहुरौं तो बइरी अंचरवा न संभरै,
लहरि-लहरि लहरै -उभारै पवनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा.
छैला देवरु आधी रतिया ते जागै,
आधी रतिया ते जागै,
चढ़ि बइठै देहरी शरम नहिं लागै,
गुजुरु-गुजुरु नठिया नचावै नयनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा.
गंगा नहाय गयीं सासु ननदिया,
हो सासु ननदिया,
घर मा न कोई मोरे-सैंया विदेसवा,
धुकुरु-पुकुरु करेजवा मां कांपै परनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा.
रतिया बितायउं बन्द कइ-कइ कोठरिया,
बन्द कइ-कइ कोठरिया,
उमस भरी कइसे बीतै दोपहरिया,
निचुरि-निचुरि निचुरै बदनवा पसीनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा.
लहुरे देवरवा परऊं तोरि पइयां,
परऊं तोरि पइयां,
मोरे तनमन मां बसै तोरे भइया,
संवरि-संवरि टूटै न मोरे सपनवां,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा.
माना कि मइके मां मोरि देवरनिया,
मोरि देवरनिया,
बहुतै जड़ावै बिरह की अगिनिया,
आवैं तोरे भइया मंगइहौं गवनवां,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा.
तोरे संग देउरा मनइहौं फगुनवा,
मनइहौं फगुनवा,
जइसै वीरनवा मनावैं सवनवां,
भौजी तोरी मइया तू मोरो ललनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा.
--लवकुश दीक्षित
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जीतू, स्वामी बताओ अब ब्लागनाद की ट्रेनिंग कैसे दी जाये अनूप जी को? ध्यान रहे मिल कर देनी है, नही तो न ये गीत सुनने को मिलेगा न बासंतिया चाँद
ReplyDeleteसबसे पहले पीसी अपग्रेड करना पडेगा - वो हेन्ग हो रहा है. अनूप भाई आप पी सी खरीदो ५०% का चेक मैं भेजून्गा! आप को रात भर जगाने मे ५०% हाथ मेरा था. अब बकी ५०% जिसने उकसया वो भुगते! मेन्नु कोई फरक नी पैना!!
ReplyDeleteस्वामीजी,एकदम नया लैपटाप खरीदा है.पालीथीन तक नहीं उतरी है अभी .का इसे बेंच के नया ले लें?वैसे पीसी हैंग होना उतना खतरनाक नहीं है जितना खतरनाक दिमाग का हैंग ओवर होता है.वैसे लड़के से पूछेंगे कि बेटा स्वामी अंकल ५०% पैसे दे रहे हैं कहो तो अतुल अंकल से भी ५०% लेकर तुम्हारे लिये भी नया पी सी खरीद दें.
ReplyDeleteही.. ही.. मैं धन्ना सेठ नही हूं बडे भाई, पीले वासन्ती चान्द को रिकार्ड करने के लिये आपकी हथेली गरम कर रहा था - ताकी कोई बहाना ना रहे, कि ये नही चल रहा वो नही बज रहा, २ महीने हो गए निवेदन किये. मेल कर कर के हालत खराब हो गई है - मुफत मे उपलब्ध करवा के लिफ्ट करा रहे हो तो लेप-टाप पर ही हो जायेगा कोई दिक्कत वाली बात नही है!
ReplyDeleteअनूप भाई, कविता तो बहुत चकाचक है,
ReplyDeleteलेकिन आपकी व्याख्या के बिना कविता अधूरी दिखती है, लाइन बाइ लाइन व्याख्या करो तो मजा दोगुना हो जायेगा.
और हाँ कविता तो ब्लागनाद पर भेजने के लिये बस अपनी आवाज मे रिकार्ड करके एमपीथ्री फाइल बना कर radioblognaad@gmail.com पर भेज दो.
अब शुक्ला जी का कंप्यूटर रिकार्ड करगा .wav फाईल , और आप माँग रहे हैं mp3, अनूप जी यह देखना मत भूलिएगा, आपको उत्तर मिल जायेगा| आगे कोई परेशानी हो तो बासंतिया चाँद के लिऐ उकसाने वाले स्वामी और ब्लागनाद के लिए उकसाने वाले जीतू जी को पकड़ा जायेगा|
ReplyDeleteजीतेन्दर बाबू,कविता का भाव कुछ यों है:-
ReplyDeleteभाभी कहती है:-
आंगन में झुके-झुके कैसे झाड़ू लगाऊं?बदमास देवर (पति काछोटा भाई )टकटकी लगाकर मुझे देख रहा है.आंगन बड़ा है.बैठकरसफाई करना मुश्किल है.अगर झुकती हूं तो दुश्मन आंचल सरकता है
हवा आंचल को बार-बार लहरा कर उभार देती है.शरारती देवरआधी रात से ही जाग जाता है.बेशर्म होकर देहरी पर बैठकर आंखें नचाता ताकता
रहता है.सास-नंद गंगा स्नान के लिये गये हैं.पति विदेश गये हैं.घर में कोई नहीं है मेरे कलेजे में धुक-पुक मची है.डर लग रहा है.रात तो मैने कोठरी बंद करके बिता ली.अब दोपहर में बहुत उमस है.आंचल से पसीना छूट रहा है.
मेरे प्यारे देवर,मैं तेरे पांव पकड़ती हूं.मेरे तन-मन में तुम्हारे भइया बसे हैं.मैं केवल उन्हींके सपने देखती हूं.मैं जानती हूं मेरी देवरानी(देवर की पत्नी)मायके में है.विरह की आग तुमको जला रही होगी.पर जब तुम्हारे भइया आयेंगे तो मैं उसका गौना करवा कर उसको बुलवा लूंगी.मैं तुम्हारे साथ होली खेलूंगी जैसे भाइयों के साथ सावन का त्योहार मनाया जाता है.भाभी मां के समान होती है इसलिये तुम मेरे पुत्र के समान हो.
भइया फोटुवा तो चकाचक है
ReplyDeleteअब इ बताया जाय कि कविता देखकर फोटू बनायी है, या फोटू देखकर कविता लिखी है,
साथ मे भौजी का एड्रेस भी दिया जाये तो एक हाथ फोटू हमऊ भी खींच ले, जाने फिर मौका मिले ना मिले.
फोटो बहुत शानदार है, हमारी बधाई स्वीकार आर्यपुत्र
वाह !
ReplyDeleteइहाँ भी कम मजा नहीं आया !
इहौ गितवा जल्दी पोडकास्ट कीजिये ! औरौ मजा आएगा !