Wednesday, April 24, 2013

हमें पेंशन लेनी है

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हमें पेंशन लेनी है

मेज पर खरीदारी की फ़ाइल सामने देखते ही साहब बमक गये- हटाओ इसे सामने से, हमें पेंशन लेनी है।
फ़ाइल अफ़सर ने साहब को समझाने की कोशिश की- बहुत जरूरी है। सालों से अटका है केस। और देरी करेंगे तो काम ठप्प हो जायेगा।
सालों से लटका है तो दो महीने और लटका रहने दो। हमारे रिटायर होने के बाद ’पुट अप’ करना। हमें पेंशन ले लेने दो फ़िर केस करना। काम लटकने दो। पेंशन मत लटकाओ।
साहब के काम करने का हमेशा से यही तरीका रहा। जब छोटे अफ़सर थे तब यह कहकर दस्तखत से बचते रहे कि हमें साहब बनना है। जब साहब बन गये तो यह कहकर कि – हमें पेंशन लेनी है।
वे ईमानदार थे। ताजिंदगी कामचोरी और निर्णयहीनता के पराक्रम से अपनी ईमानदारी के शील की रक्षा करते रहे। खरीदारी की फ़ाइल पर दस्तखत अव्वल तो करते नहीं। कहते अभी तक नहीं कराया तो अब क्यों करा रहे हो? हमें चले जाने दो फ़िर अगले से कराना। कभी मजबूरी में करते भी तो ऐसे करते जैसे अपनी नौकरी/प्रमोशन/पेंशन के खिलाफ़ वारंट जारी कर रहे हैं।
जब छोटे साहब थे तो मशीनें नहीं खरीदीं। पता नहीं कहां गड़बड़ हो जाये। आगे बड़े साहब बनने की सड़क बंद हो जाये। बड़े साहब बने तो पेंशन की चिंता में दुबले होते रहे।
ज्यादातर ईमानदारों के यही किस्से हैं। लगता है कि फ़ाइलें भले ही गंगोत्री से शुरु हों लेकिन बीच के नाले-सीवर का प्रदूषण उनमें अवश्य मिला होगा। प्रदूषित जल से आचमन कैसे किया जाये। देखते ही ठिठक जाते हैं।
नौकरी में प्रमोशन वरदान की तरह और पेंशन मोक्ष होता है। हरेक नौकर की तमन्ना होती है कि वह नियमित वरदान पाते हुये मोक्ष को प्राप्त हो। इस रास्ते में किसी बाधा की कल्पना मात्र से उसका रोम-रोम सिहर उठता है।
खरीदारी से जुड़े नियम/कानून ऐसे हैं कि उनका जैसा मन होता है वैसी शकल धारण कर लेते हैं। नियम किसी सिनेमा सुन्दरी की तरह नित नूतन रूप धारण करते रहते हैं। अक्सर पालन करने की जगह पर उसका उल्लंघन होने के बाद पहुंचते हैं। पहुंच भी जाते हैं तो पता नहीं चलता कि उनका पालन कैसे होना है।
अक्सर जरूरी नियम सत्ता पक्ष और विपक्ष की तरह एक दूसरे के परम विपरीत लगते हैं। साथ में एक और नियम रहता है कि दोनों का पालन करना है। पालन करने वाले की स्थिति “शिवा को सराहूं कि छत्रसाल” सी हो जाती है। वह कभी शिवा को सराहता और कभी छत्रसाल को। कभी दोनों को थोड़ा-थोड़ा। ऐसे में कभी सतर्कता आयोग किसी की शिकायत पर छापा मारता है और अगले को किसी न किसी नियम के उल्लंघन का आरोप लगाता है।
इससे बचने के लिये लोग न शिवा को सराहते हैं न छत्रसाल को। केवल दोनों को निहारते हैं। निर्णय टालते हैं। अपने को बचाते हैं, नौकरी बचाते हैं, प्रमोशन बचाते हैं, पेंशन बचाते हैं। सारी नौकरी बचते-बचाते काट देते हैं।
हमारे एक सीनियर कहा करते थे कि हम लोगों की जिम्मेदारी निर्णय लेना है। जिस परिस्थिति में हैं उसमें सब कुछ लिखकर निर्णय लेना चाहिये। निर्णय लेने से घबराना नहीं चाहिये। ’वी आर पेड फ़ॉर टेकिंग डिसीजन’। एक बार दिल्ली में धमाके हुये तो वित्त मंत्री ने कहा – तीन बार टेंडर करने के बाद भी खरीद नहीं हुई। प्रधानमंत्रीजी ने कहते रहते हैं – निर्णय लेने में डरना नहीं चाहिये।
लेकिन डर किसी के कहने से नहीं रुकता। वह धड़धड़ाता चला आता है। जांच होने पर हर कोई पूछता है -ये इस एंगल से क्यों नहीं देखा, उस कोने से क्यों नहीं निहारा, वहां खड़े होकर क्यों नहीं देखा, आगे की क्यों नहीं सोची, पीछे का क्यों छोड़ दिया।
नियम/कानून के जंजाल ऐसा है कि कई अबोध इसकी चपेट में आ जाते हैं। जिनका निर्णय प्रक्रिया से कुछ लेना-देना नहीं वे इसलिये फ़ंस गये क्योंकि फ़ाइल के किसी कोने में उनकी चिड़िया बैठी मिली। यह ऐसे ही है जैसे नई सड़क में हुये दंगे में भन्नानापुरवा का राहगीर मारा जाये। इसी डर के मारे लोग घर से निकलना बंद कर देते हैं।
इसीलिये नौकरी करने वालों में जिनको बहादुरी का जोश उफ़ान नहीं मारता और जो गालिब के भक्त नहीं हैं ( जो आंख से ही न टपका तो लहू क्या है) हमेशा नौकरी/प्रमोशन/पेंशन बचाकर काम करने की कोशिश करते हैं। रिटायरमेंट के बहुत पहले ही रिटायर हो जाते हैं। पुराने जमाने में राजा लोग मरे हुये शेर के सीने पर लात रखकर फ़ोटो खिंचवाकर अपनी वीरता का बखान करते थे (भले ही शेर किसी और ने मारा हो)। उसी तरह तमाम लोग नौकरी के बचपने में किये गये काम का गाना गाते हुये बाकी की नौकरी निकाल देते हैं।
निर्णय लेने वाला ईमानदारी की आड़ में निर्णय लेने से बचता है, नौकरी, प्रमोशन, पेंशन बचाता है। निर्णय न लेना बेईमानी नहीं माना जाता। अधिक से अधिक उसे अकर्मण्यता माना जाता है। नाकारापन बेईमानी के मुकाबले कम घृणित माना जाता है। नाकारापन सावधानी का सगा होने के चलते कभी-कभी सम्मानित भी हो जाता है।
इसलिये भी अक्सर काम देरी से होते हैं, प्रोजेक्ट अधूरे रहते हैं, कीमत दोगुनी होती, आये दिन घपले-घोटाले होते हैं।
आपका इस बारे में क्या कहना है? कुछ सोच-विचार कर निर्णय लेंगे कि आप भी कहेंगे- हमें तो पेंशन लेनी है।

22 responses to “हमें पेंशन लेनी है”

  1. रवि
    हम तो पेंशन ले रहे हैं! :)
    वैसे, ऐसे लोगों की संख्या कम है. अधिकतर तो फ़ाइल में दस्तखत करने को लालायित बैठे रहते हैं, बशर्तें उनमें कुछ वजन (बकौल परसाईँ) रखा हुआ हो!
    रवि की हालिया प्रविष्टी..तब तो मैं ग़रीब ही भला!
    1. sanjay jha
      (:(:(:
      प्रणाम.
  2. indian citizen
    जांचें सही नहीं होतीं, उनमें भी सेटिंग हो जाती हैं, महीनों – सालों लटकती हैं, जुगाड़ू निकल जाते हैं, जो फंस जाते हैं, वे रोते रहते हैं, इसलिये क्या फायदा.
    indian citizen की हालिया प्रविष्टी..पुलिस का रवैया
  3. shikha varshney
    जुगाड़ जुगाड़ और जुगाड़ …बस और कुछ काम नहीं करता .
  4. सतीश सक्सेना
    कब से भाई ??
    तब ब्लोगिंग छोड़ दोगे न ??
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..ये बेचारे … -सतीश सक्सेना
  5. सुशील बाकलीवाल
    काम करेंगे कांटा, तो खाएंगे क्या भाटा ?
  6. sanjay @ mo sam kaun
    हमने तो एकदम शुरू से ही तय समय से पहले पेंशन लेने का फ़ैसला कर रखा है।
    sanjay @ mo sam kaun की हालिया प्रविष्टी..अपने पराये
  7. PN Subramanian
    हम तो पेंशन याफ्ता हैं परन्तु अनुभव कहता है की ऐसे ही लोग ज्यादा फंस्ते हैं.
    PN Subramanian की हालिया प्रविष्टी..एकाम्बरेश्वर मन्दिर, काँचीपुरम
  8. प्रवीण पाण्डेय
    यदि कोई निर्णय न लेने का निर्णय ले चुका हो?
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..फन वेव, हिट वेव
  9. arvind mishra
    खुदा के फज़ल से अभी तो साहब के खेलने खाने के दिन है ये पेंशन की चिंता काहें खाए रही है ?
    कौनो तगड़ी साईंन वाईन कर दिए हैं क्या -बाकी मुकम्मल और अव्वल लिखे हैं -बुकमार्क लायक !
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..दिल्ली की दरिन्दगी
  10. सतीश पंचम फ़ेसबुक पर
    ऐसे लोगों को चकाचक सिंह “ढूंढहरे” कहा जाता है जिन्हें अपना टेबल चकाचक क्लीन चाहिये, काम न हो चलेगा….कागज दिखे तो ढूंढकर उसकी खबर लेंगे कि क्यों मेरे पास भेजा….जाओ पहले उसका साइन लेकर आओ जिसने पहले मांग की थी पोस्टवौ चकाचक है
  11. Sudhir Tewari फ़ेसबुक पर
    सुधार लाने कि दृष्टि से इस विषय में प्रस्तावित है कि फेस बुक, ट्विट्टर इत्यादि पर सभी साहबों के साहिबी शासकीय अकाउंट खुला कर निर्णय की प्रक्रिया को त्वरित, पारदर्शी, भागीदारी युक्त एवं 24X7 मनोरंजक बनाया जायेI इस से प्रारम्भिक तौर पर और कुछ नहीं तो कम से कम अनगिनत पुस्तकालयों हेतु की जाने वाली लम्बी, मोटी, चौड़ी तथा ऊँची ख़रीद, जिस पर संभवतः C&AG की दृष्टि अभी मेहरबान नहीं हुई है, विद्वान एवम मुखर फ्रेंड्स की राय द्वारा निर्मित सर्वसम्मति पर आधारित एक वस्तुनिष्ट आधार स्थापित करने की संभावनाओं पर विचार करने के प्रयास की शुरूआत होगी जिस पर निर्णय सक्षम अधिकारी द्वारा उचित परिस्थितियों में आने वाले समय में अति शीघ्र लिया जाएगा!
    (अब इस काग़ज़ को सातवें वेतन आयोग कि सिफारिशें लागू होने से पूर्व मेरे समक्ष लाये तो तुम्हारी ख़ैर नहीं)
  12. Sonia Srivastava फ़ेसबुक पर
    baat to sahi hai. deri se kaam karne se bhrashtachar ko hi badhava
  13. Shiv Bali Rai फ़ेसबुक पर
    आदमी जिन तीन व्रित्तियो से खुश होता है -कर्म ,भक्ति और श्रद्धा उसमे कर्म किये बिना काम नहीं चल सकता लेकिन उसको करने में कोई न कोई गलती जरुर निकलती है इसलिए जो कर्म काअरेग वह कही न कही निंदा का पत्र जरुर होगा
  14. Girish Bajpai फ़ेसबुक पर
    Ati sundar
  15. amit kumar srivastava
    हमारे यहाँ भी ऐसे थोड़े लोग मिल जाते है । परन्तु कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं अरे , अभी जो मिल रहा है पहले उसे ले लो जब पेंशन का वक्त आयेगा तब वह भी ले-देकर मिल ही जायेगी ।
    amit kumar srivastava की हालिया प्रविष्टी..” अंगड़ाई ……या …….हस्ताक्षर …….”
  16. गिरीश चन्द्र अग्निहोत्री
    बहुत बढ़िया बखान किया है, अँग्रेजी के साक्षर इतने बढ़ गए हैं की, नियम कानून मे भुस भर दिया है। सरकारी नौकर की हालत, सुहागरात से पहले पूजा करते हुये वर की हो गई है।
  17. काजल कुमार
    रिटायरमेंट के बहुत पहले ही रिटायर हो जाते हैं…
    बात भले ही कि‍सी दूसरे संदर्भ में रही हो पर इसके पीछे के कारण केवल वही लोग नहीं हैं, सि‍स्‍टम में/सि‍स्‍टम से बाहर बैठे लोग कहीं ज्यादा ज़ि‍म्‍मेदार हैं
    काजल कुमार की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- आे ब्रूटस तुम ही तुम हर तरफ़ !
  18. गौरव शर्मा
    बढ़िया पोस्ट रही, मज़ा आ गया.
  19. Anonymous
    लोल
  20. Yashwant Mathur
    आपने लिखा….हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 29/04/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ….
    धन्यवाद!
  21. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] हमें पेंशन लेनी है [...]

Sunday, April 21, 2013

मुशर्रफ़ जी का बिलेटेड अप्रैल फ़ूल

http://web.archive.org/web/20140420082704/http://hindini.com/fursatiya/archives/4206

मुशर्रफ़ जी का बिलेटेड अप्रैल फ़ूल

[जब संस्थान खोखले और लोग चापलूस हो जायें तो जनतंत्र धीरे-धीरे डिक्टेटरशिप को रास्ता देता जाता है। फिर कोई डिक्टेटर देश को कुपित आंखों से देखने लगता है। तीसरी दुनिया के किसी भी देश के हालात पर दृष्टिपात कीजिये। डिक्टेटर स्वयं नहीं आता, लाया और बुलाया जाता है और जब आ जाता है तो प्रलय उसके साथ-साथ आती है।- खोया पानी ]

मुशर्रफ़
दो दिन पहले बगल के देश की एक अदालत से उसके पूर्व राष्ट्रपति भागते दिखे।
उनके भागने के पीछे कई तरह की बातें सुनी जा रही हैं। कोई कह रहा है कि वे गिरफ़्तारी के डर से भागे। अदालत ने इसे अपनी तौहीन माना और उनको कबाड़ की तरह “जहां है जिस हालत में है” गिरफ़्तार करके धर दिया।
अदालत और सब कुछ बर्दाश्त कर सकती है लेकिन अपनी तौहीन नहीं।
अदालतों के पास और होता क्या है? मुकदमों का जल्दी निपटारा कर नहीं सकती, अपराधी छूट जाते हैं, न्याय अंधा और मंहगा। अदालतों के पास ले-देकर अपनी इज्जत ही तो होती है। उसकी भी अगर तौहीन होगी तो वह कैसे सहन कर लेती।
भागना था तो पहले ही भाग लेते। सामने आकर भागोगे तो पकड़ना मजबूरी है।
इस मामले में अड़ोस और पड़ोस दोनों की अदालतों का रवैया क्लास टीचर सरीखा रहता है। पूछ के दिन भर गायब रहो तो कोई बात नहीं। लेकिन बिना बताये फ़ूटोगे तो बेंच पर खड़ा कर देंगी। संजय दत्त को देखो महीने भर की मोहलत दी कि नहीं। आगे कुछ और जुगाड़ देखेगी। मुशर्रफ़ भी मांगते उनको भी मिल जाती। कहते जरा बस चुनाव तक की मोहलत दे दीजिये फ़िर हाजिर होते हैं। अदालत शायद मोहलत देती और ’बेस्ट ऑफ़ लक’ अलग से देतीं।
लेकिन जब वे भागे तो अदालत ने कहा -पकड़ो, जाने न पाये। और धर लिया चौदह दिन के लिये।
कायदे से अदालत को झांसा देते तो क्या पता कोई रिटायर्ड जज कहता- “अरे छोड़ो, जाने दो, माफ़ करो। भला आदमी है। भारत पर कब्जे की कोशिश की। अमेरिका को झांसा देता रहा। कई बार मरते-मरते बचा लेकिन देश हित में हुकूमत करता रहा। अब तो बुजुर्ग भी हो गया अब उसको क्या परेशान करना?”
लेकिन अदालत को सामने-सामने भागने वाली बुरी लग गयी। किसी को भी लग सकती है। अदालत को गुस्सा इस बात पर भी आया होगा कि अगले को भरोसा नहीं कि उसके खिलाफ़ कुछ नहीं होगा सिवाय मुकदमा लटकाने के। जज, वकील, अखबार किसी पर भरोसा नहीं? इतनी तौहीन सिस्टम की? अजब तमाशा है-करो इसको अंदर।
अब कोई पूछे कि मुशर्रफ़ अदालत से भागे क्यों तो कई तरह की बातें सोची जा सकती हैं। जैसे कि:
  1. किसी का कहना है कि उनका हाजमा कुछ गड़बड़ था और ऐन अदालत में प्रेशर बढ़ गया। अदालत में कोई माकूल इंतजाम न होने के चलते वे अपने फ़ार्म हाउस की तरफ़ दुलकी चाल से निकल लिये।
  2. क्या पता मुशर्रफ़ जी किसी विज्ञापन की शूटिंग के सिलसिले में भागकर दिखाना चाहते हों कि खास तरह का अंडरवीयर पहनने पर उनके देश की अदालत भी उनको पकड़ नहीं सकती। लेकिन शूटिंग में सूट पहने देखकर अदालत को गुस्सा आ गया और उसने कहा- अरेस्ट हिम।
  3. मुशर्रफ़ जी को उनके चमचों ने भरोसा दिलाया होगा कि जज से बात हो गयी है। कोई खतरा नहीं है। लेकिन वहां पहुंचकर उनको पता चला होगा कि जज पलट गया है। जज के पलटने की भनक लगते ही वे पलट के फ़ूट लिये होंगे।
  4. मुशर्रफ़ जी पाकिस्तान अवाम को दिखला देना चाहते होंगे उनको अभी बुजुर्ग न समझा जाये। वे अभी भी दौड़ने भागने का काम कर सकते हैं।
  5. क्या पता मुशर्रफ़ जी इमरान खान के कैसर अस्पताल की तर्ज पर कोई एथलेटिक्स अकादमी खोलना चाहते हों जिससे पाकिस्तान के खिलाड़ियों को ओलम्पिक में मेडल मिले। अवाम को दिखाना चाह रहे होंगे कि देखो ऐसे दौड़ना चाहिये कुछ पाने के लिये।
  6. हो सकता है अदालत में ही उनको फ़ोन आया कि साहब एक जगह ’बैक डेट में’ चुनाव के लिये पर्चा दाखिल होने की बात हो गयी है। फ़ौरन आइये अंगूठा लगाइये तो पर्चा दाखिल कर दिया जाये। वे भागें और धरे गये।
  7. शायद किसी ने उनके साल अप्रैल फ़ूल का बिलेटेड मजाक कर दिया हो अदालत में -साहब, कहां आप अदालत के चक्कर में पड़े हो। उधर चलिये कियानी साहब आपको सत्ता वापस सौंपने के लिये इंतजार कर रहे हैं। मुशर्रफ़ -ओह, एस, ओके। कहकर पलटकर दुलकी चाल से चल से चल दिये होंगे। फ़ार्म हाउस पहुंच कर कड़क ड्रेस पहन ही रहे होंगे तब तक धर लिये गये।
  8. शायद वे अदालत में खुले आम बयान देकर पाकिस्तान के हुक्मरानों को यह संदेश देना चाहते होंगे कि ज्यादा लूट-खसोट ठीक नहीं। आठ-दस साल लूट-खसोट कर अगले को मौका दो। हुक्मरानों को मुशर्रफ़ की इस साजिश की भनक लग गयी होगी और उन्होंने उनको अन्दर करने का इंतजाम कर दिया। इसकी भनक लगते ही वे फ़ूट लिये होंगे।
  9. वे अपने देश के हुक्मरानों को संदेश देना चाहते होंगे कि अगर यहां जिंदा रहना है तो हमेशा ऐसे भागने के लिये तैयार रहना चाहना। लूट-खसोट के साथ-साथ फ़िटनेट भी बहुत जरूरी है देश सेवा के लिये।
  10. वे अदालत को यह बताना चाहते थे कि बेनजीर भुट्टो की हत्या के लिये वे बिल्कुल कसूरवार नहीं हैं। अगर बेनजीर भुट्टो को उनकी तरह भागना आता होता तो वे बच जातीं।
  11. देश सेवा में फ़ुल जोरदारी से लगे लोगों ने अदालत को बता दिया होगा कि साहब ये इत्ते साल देशसेवा का कर चुका। अब आगे भी करने की साजिश है इसकी। इस पर अदालत भन्ना गयी होगी और दौड़ा लिया होगा- देश सेवा करने का सबका बराबर का हक है। ये अकेले करना चाहता है। करो इसको अंदर।
क्या पता इनमें से कौन सच हो? क्या पता कोई न सच हो। लेकिन मुशर्रफ़ अपने फ़ार्म में बेताबी से उस चमचे की शकल याद करने की कोशिश कर रहे होंगे जिसने उनको वापस आने के लिये उकसाया होगा यह कहकर- हुजूर चले आइये हुकूमत आपका बेताबी से इंतजार कर रही है।
उनको एहसास हो रहा होगा कि भूतपूर्व तानाशाह की उसके देश में उतनी ही पूछ होती है जितनी रिटायर्ड नौकरशाह की उसके भूतपूर्व दफ़्तर में होती है।
उनको लग रहा होगा कि वे जिस जम्हूरियत को विकिपीडिया समझकर उसे फ़िर से बदलने आये थे उसका लागइन और पासवर्ड बदल गया है और उसका कंट्रोल किसी और के हाथ में है।

12 responses to “मुशर्रफ़ जी का बिलेटेड अप्रैल फ़ूल”

  1. ashish rai
    मुशर्रफ मियां को लेने के देने पड़ गए , उनको अदालत में खड़ा होना में खीज होती है और अदालत को खीझने वाले को सीख देने में .
  2. Padm Singh पद्म सिंह
    हाजमा कुछ गड़बड़ था और ऐन अदालत में प्रेशर बढ़ गया।,,,,, यही वाला सही लगता है …
    Padm Singh पद्म सिंह की हालिया प्रविष्टी..मगर यूं नहीं
  3. Swapna Manjusha
    अरे ! जब गीदड़ की मौत आती है तो ऊ शहर की तरफ भागता है, ठीक वैसे ही मुशर्रफ की मौत आई है ऊ चुनाव लड़ने पाकिस्तान आ गया। अभी तो सिर्फ नज़र बंद है बंदा। जैसा कि पकिस्तान का रिवाज़ है, बहुत जल्दी इनकी भी परमानेंट ‘नजर बंद’ हो जायेगी …बस देखते रहिये :)
    वैसे पहला ही ठीक है फिलहाल, जब परमानेंट ‘नज़र बंदी’ होती नज़र आती है, अच्छे-अच्छों का प्रेशर ख़राब हो जाता है, फिर मुसर्रफ़ तो वैसे भी सीनिअर सिटिज़न की श्रेणी में है अब :)
    Swapna Manjusha की हालिया प्रविष्टी..मेरी दोस्ती, मेरा प्यार …
  4. Dr. Monica Sharrma
    जो भी हो …उनके मुश्किलें बढ़ने ही वाली हैं, फंस हैं बुरी तरह
    Dr. Monica Sharrma की हालिया प्रविष्टी..हे राम…बेटियों के वंदन और मानमर्दन का कैसा खेल
  5. Dr. Monica Sharrma
    * जो भी हो …उनके लिए मुश्किलें बढ़ने ही वाली हैं, फंस गए हैं बुरी तरह
    Dr. Monica Sharrma की हालिया प्रविष्टी..हे राम…बेटियों के वंदन और मानमर्दन का कैसा खेल
  6. aradhana
    मुशर्रफ का तो नाम ही सुनकर हँसी आ जाती है :)
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..नारीवादी स्त्री प्रेम नहीं करती?
  7. shikha varshney
    अरे बेकार बैठे बैठे बोर हो गए होंगे, तो सोचा भाग ही लिया जाये :).
  8. soniya srivastava
    पाकिस्तान के राष्ट्रपतियों का भाग्य ही ऐसा रहा है पहले १२ की सुई की तरह ऊपर जाते है फिर ६ की सुई की तरह नीचे आ जाते है भारत की बुराई करके तो अपनी कुर्सी बचाते है
  9. वीरेन्द्र कुमार भटनागर
    वह कहते हैं न ” छुटती नहीं है काफिर मुँह से लगी हुई ” ! फिर से हुकूमत करने की छटपटाहट में बिना देखे जलते फ्राइंग पैन में कूद गये बेचारे :)
  10. sanjay jha
    @ उनको लग रहा होगा कि वे जिस जम्हूरियत को विकिपीडिया समझकर उसे फ़िर से बदलने आये थे उसका लागइन और पासवर्ड बदल गया है और उसका कंट्रोल किसी और के हाथ में है।……………..
    …………कलमतोर क्लाइमेक्स ……………
    प्रणाम.
  11. प्रवीण पाण्डेय
    भागना समय के पीछे था, भाग अदालत के पिछवाड़े से गये।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..फन वेव, हिट वेव
  12. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] मुशर्रफ़ जी का बिलेटेड अप्रैल फ़ूल [...]

Friday, April 19, 2013

मैं अपना बयान वापस लेता हूं

http://web.archive.org/web/20140420082721/http://hindini.com/fursatiya/archives/4190

मैं अपना बयान वापस लेता हूं

मीडिया ने मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया।
रोज किसी न किसी का कोई न कोई ऊटपटांग बयान आता है। पीछे यह बयान भी कि उनका बयान तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया।
गोया जैसे ही बयान मुंह से निकला। मीडिया ने लपक के उसे पकड़ा होगा। पहले उसे तोड़ा होगा फ़िर गीले कपड़े की तरह मरोड़ा होगा। इसके बाद दुनिया को दिखा दिया।
पार्टियां परेशान हैं। चिंतनरत हैं। कैसे बयानबाजी ठीक से हो।
हमें सोचसमझ कर बयान देने चाहिये- एक ने गंभीर सुझाव दिया।
सुझाव सुनते ही सब हंसने लगे। बयानबाजी राजनीति का प्राणतत्व है। लाइफ़लाइन है। सोचने लगे तब तो दे चुके बयान। सोचने-समझने और बयानबाजी को राजनीति और ईमानदारी की तरह अलग-अलग ही रखना होगा।
एक ने सुझाया कि इस समस्या कोई न कोई वैज्ञानिक हल सोचा जाना चाहिये। कोई किट बनवायी जाये जिससे बयान कैसे भी दिये जायें लेकिन निकलें साफ़-सुथरे। धुले-पुंछे।
बयान किट चिंतन शुरु हो गया। सुझाव आने शुरु हुये। बयान किट कैसी होगी, कैसे काम करेगी। देखिये कुछ सुझाव:
किट ऐसी होनी जिससे बयान का सारा कूड़ा फ़िल्टर होकर दिमाग में ही रह जाये। एक दम पानी छानने वाली मशीन की तरह होगी बयान किट।
आम नेताओं के पास स्टोरेज वाली बयान किट होगी। वह सुबह-सुबह अपने सारे बयान किट से पास करके साफ़ कर लेगा। फ़िर केवल साफ़ बयान ही जारी करेगा। अगर बयान खतम हो गये तो फ़िर किट से और बयान साफ़ करेगा। तब जारी करेगा।
जिन कार्यकर्ताओं और नेताओं को बयान किट जारी नहीं किये जा सकेंगे उनके लिये पास के शहर में बयान फ़िल्टर मशीन लगायी जायेगी। वे अपनी सुविधानुसार आयेंगे। अपने सारे बयान फ़िल्टर करके ले जायेंगे तब जारी करेंगे। अगर किसी के पास फ़िल्टर्ड बयान खतम हो गये हैं तो हेडआफ़िस से आनलाइन फ़िल्टर हासिल कर सकता है। इसके लिये उसको अपने दिमाग और मुंह का आनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
प्रवक्ताओं और बड़े नेताओं के लिये स्टोरेज वाली किट से अलग बयान किट जारी की जायेगी। वे अपने मुंह में किट को ऐसे बांधे रहेंगे जैसे स्वाइन फ़्लू के डर से लोग मुंह में पट्टी बांधे रहते हैं। वे जो मन आये बयान देते जायेंगे। बयान किट से गुजरते हुये निकलेंगे। वे बयान कैसा भी दें, वे बाहर साफ़ होकर ही निकलेंगे।
कोई ऐसे भी बयान होंगे जिनको किट साफ़ नहीं कर पायेगी? उनका क्या होगा, वे बयान कैसे जारी होंगे?- एक ने जिज्ञासा जाहिर की?
अव्वल तो जितनी तरह की बेवकूफ़ियां हम लोग बयान देने में करते हैं उन सबको फ़िल्टर करने का उपाय है इसमें। लेकिन अगर ऐसी कोई बेवकूफ़ी मिलती है बयान में जिसको बयान किट साफ़ नहीं कर पायेगी तो इसमें आटोमैटिक व्यवस्था है कि बयान के साथ में ही खंडन वाला बयान भी निकलेगा। बेवकूफ़ी वाला बयान पहले और “मैं अपने इस बयान का खंडन करता हूं” साथ-साथ निकलेगा। इससे थोड़ी खिल्ली भले उड़ेगी लेकिन नुकसान कम होगा। थोड़ी खिल्ली उड़ना भी फ़ायदेमंद रहता है। राजनीतिक पार्टियों को खिल्ली फ़्रेंडली होना चाहिये
किट चिंतन अभी जारी है। मैं उस दिन की कल्पनाकर रहा हूं जब लोगों के बयान बयान किट से फ़िल्टर होकर आयेंगे। तब के सीन सोचिये:
  1. कोई नेता धड़ल्ले से बयान जारी कर रहा है। अचानक उसकी बयान किट खराब हो गयी। उसकी बयानबाजी रुक जायेगी। अखबार में छपेगा- घटिया बयान किट के चलते अधूरा बयान।
  2. किसी की बयान किट खराब हो गयी तो वह किसी दूसरे की किट लगाकर देने लगेगा। ऐसे बदल-बदलकर बयान देने से उसको बयान संक्रमण हो सकता है। क्या पता आगे चलकर यह बीमारी ’बयान एड्स’ के रूप में जानी जाये और बयान देने वाले के कैरियर की असमय मौत हो जाये।
  3. चुनाव के मौसम में जैसे आजकल नेताओं के दल परिवर्तन होते हैं वैसे ही बड़े नेता बयान किट बदलेंगे। समाचार आयेगा- हजार बयान किट के साथ फ़लाने का दल परिवर्तन। जिस दल के पास सबसे ज्यादा बयान किटें होंगे वह सरकार बनाने का दावा पेश करेगा।
  4. चुनाव के बाद विश्लेषण होगा- अमेरिकी किटों ने जिताया चुनाव। यूरोपियन बयान किट धड़ाम। अफ़्रीकी बयान किटों ने डुबोई लुटिया। चीनी बयान किटों ने राजनीति में कब्जा किया।
  5. किसी की बयान किट बयान देते-देते अचानक फ़ट जायेगी। उनके साफ़-सुथरे बयान के साथ कूड़ा बयान आने लगेंगे। अखबार में छपेगा- नेताजी की बयान किट फ़टी। बयानों की असलियत दिखी।
  6. किसी फ़ायरब्रांड नेता को काबू में करने के लिये उसके मुंह में अहिंसक बयान किट फ़िट कर दी जायेगी। शेर बयान की जगह मेमने बयान निकलने लगेंगे।
  7. चुनाव के समय जैसे आजकल पैसा चलता है वैसे ही आगे किटें भी चलेंगी। खबर आयेगी – उपचुनाव के लिये दिल्ली से हजार बयान किटें रवाना। किटें दिल्ली से चलीं, पटना में अटकीं।
  8. जैसे चुनाव में हथियार जमा कराये जातें हैं वैसे ही अदालतें चुनाव के समय भड़कीली बयान किटें पास के थाने में जमा करा लेंगी।
  9. बयान किटों का बीमा होगा, गारंटी होगी, वारंटी होगी। ठीक से काम न करने पर किट सप्लाई कंपनियां हर्जाना देंगी। बयान किटों के अलग से कन्ज्यूमर फ़ोरम होंगे।
  10. सारी पार्टियां अपना काम-धाम छोड़कर अपनी बयान किटों का रखरखाव करती रहेंगी। ये ठीक तो सब ठीक।
अब सोचते हैं इस बारे में कोई बयान फ़िल्टर किटों के चिंतन शिविर के बारे में औपचारिक बयान जारी कर दिया जाये। लेकिन साथ में खंडन भी जारी करना होगा।
-मैं अपना बयान वापस लेता हूं।

21 responses to “मैं अपना बयान वापस लेता हूं”

  1. प्रवीण पाण्डेय
    पर यह किट फिट कहाँ की जायेगी?
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..एक दुपहरी
  2. काजल कुमार
    ‘नेता’ की जगह कुछ और पढ़ा जाए तो वो भी फिट बैठेगा.
    काजल कुमार की हालिया प्रविष्टी..कार्टून:-छोटे ब्लाॅगर इस रेस से दूर रहें
    1. रवि
      नेता की जगह – ब्लॉगर और साहित्यकार पढ़ा जाए तो ज्यादा फिट बैठेगा!
      रवि की हालिया प्रविष्टी..प्रकृति, तेरे रंग, रूप हजार…
  3. Archana
    हा हा हा बहुत खूब! बयानबाजी …
  4. सलिल वर्मा
    बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का दौरा करने वाले नेता के विरुद्ध बयान देने के लिए विरोधी खेमे में हंगामा चल रहा था. अंत में निर्णय हुआ कि अभी देखो नेता जी जाते कैसे हैं. अगर वो हवाई जहाज से गए तो हमारा बयान होगा –
    “बाढ़ ज़मीन पर और नेता आसमान से निरीक्षण करने गए. लानत है!!”
    और अगर वो ट्रेन से जाएँ तो हमारा बयान होगा..
    “बाढ़ की विभीषिका के आगे नेता जी कोई जल्दी नहीं, हवाई जहाज से न जाकर ट्रेन से गए हैं! लानत है!!”
    /
    सुकुल जी, जिनके दिमाग में कचरा ही रहा तो तो वो चिल्लाते रहेंगे और सब फ़िल्टर हो जाएगा.. इनको तो एक ऐसी मशीन की आवश्यकता है जो दोगले बयान जारी कर सके.. और बजाये बयान वापस लेने के उसी को दूसरी तरह इंटरप्रेट कर सके..
    /
    आपके इंजीनियरी दिमाग की वैज्ञानिक सोच के लिए जय हो!!!
    सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..Diamonds are forever!!
  5. Anonymous
    फ्लाप बयान किट, फ्लॉप आईडिया …
    मज़ा नहीं आया महाराज ??
    दुबारा सोंचो …
  6. satish saxena
    फ्लाप बयान किट, फ्लॉप आईडिया …
    मज़ा नहीं आया महाराज ??
    दुबारा सोंचो …
  7. सतीश सक्सेना
    पोस्ट बापस नहीं ली जा सकती क्या ??
  8. गौरव शर्मा
    सतीश जी ठीक ही ताड़े हैं. ये अब तक की सबसे बुझी हुई पोस्ट लगी मुझे.
  9. arvind mishra
    फ्रनचायिजी कौन देगा ?
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..हंगामा है क्यूं बरपा? डोयिचे वेले पुरस्कारों पर दो टूक!
  10. देवेन्द्र बेचैन आत्मा
    चिंता मत कीजिए सर जी..नये आइडिये के साथ ऐसा ही होता है। पुराने रूआबदार लोग आलोचना करते हैं। आप बस इसका प्रचार प्रसार कीजिए। वर्मा जी जैसी जुबान वाले नेता की नजर पड़ गई तो समझिये आपके वारे-न्यारे हो जायेंगे। फिर वही लोग दाँतो तले उँगलियाँ दबायेंगे जो आज आपके आइडिया की आलोचना कर रहे हैं।
    तुलसी बाबा के साथ क्या हुआ था! :)
  11. soniya srivastava
    yantrik aur sahitiyik vicharon ka khoobsurat mishran hai. aap kahan se ye idea laaye hai pata nahi isko patent kara lijiye varna kai raajnitik dal ispe kaam bhi chupke se kara lenge aur aap royalty se bhi jaayenge. bekar mei bina kuch liye aapne idea de diya aur naa paise hi mile aur naa hi vahvahi. yahi india hai guruji. agar kahi videsh mei hote to ab tak aapka apharan ho gaya hota. chaliye agar aisi machine ban gai to kam se kam manmohan ji ko ye poochna nahi padega ki “”SAB THIK HAI”".
  12. Dr. Monica Sharrma
    ना जाने कब चल रहा है ये सब ..आगे भी चल निकलेगा :)
  13. समीर लाल "टिप्पणीकार"
    चिंतन … चिंतन …. चिंतन ….बस यही चलता रहेगा लगता है!!
    समीर लाल “टिप्पणीकार” की हालिया प्रविष्टी..चचा का यूँ गुजर जाना….हाय!!
  14. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    वाह, क्या बयान है…!
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..पाँच के दाम में नौ का मजा…
  15. Rashmi Swaroop
    “बयान एड्स”… :प
    Rashmi Swaroop की हालिया प्रविष्टी..अपना गाँव… पार्ट 3
  16. Rashmi Swaroop
    “बयान एड्स”… :P
    Rashmi Swaroop की हालिया प्रविष्टी..अपना गाँव… पार्ट 3
  17. girishbillore
    Jeebh our taloo ke beech sencer fit karawana hoga
  18. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] मैं अपना बयान वापस लेता हूं [...]