Wednesday, October 21, 2015

कानपुर से फ़र्रुखाबाद वाया बिल्हौर

आज दोपहर कानपुर से निकले फरुखाबाद के गाँव निबऊ नगला के लिए। छोटी भतीजी सुधा के बेटे का मुंडन है। कानपुर से 42 किमी दूर बिल्हौर में चाय पीने को रुके। दुकान पर आलू बण्डा टाइप कुछ रखे थे स्टील की छेद वाली थाली में। नाम बताया गोला।

बेसन,आलू, प्याज, तेल और भट्टी की आंच का स्वादिष्ठ गठबंधन जो कि संसद के आकार की कढ़ाई में फलीभूत होता है। कीमत 5 रूपये का एक।

हम गोला खाते हुए चाय का इंतजार करने लगे। एक बच्ची वहां आई और प्लास्टिक के ग्लास में केतली ऊपर करके चाय डालने लगी सबके लिए। दस-बारह साल की रही होगी बच्ची। नाम बताया जूली। मेरे भाई साहब जो काफी दिन कानपुर से कन्नौज आते-जाते रहे ने बताया कि ट्रेन जब रूकती है स्टेशन पर तो सबसे ज्यादा चाय इसकी ही बिकती है। 

चाय देकर वह चली गयी तो दुकान वाले ने बताया सुबह कि इसके पिता ने सब बच्चों को चाय के धंधे में लगाकर भविष्य बर्बाद कर दिया। बड़ी बहन और एक भाई है वे चाय बेंचते हैं। जबकि पैसे की कमी नहीं उसके पास। एक और बेटा था। सुबह दुकान खोलने आ रहा था। एक्सीडेंट हो गया। नहीं रहा।

यहां बने बिल्हौर-हरदोई हाइवे के लिये जमीन ली गयी उसका पैसा खूब भी मिला। 20 लाख बीघे के हिसाब से। जमीन में लोग बने भी खूब और बिगड़े भी बेहिसाब। जिनकी जमीन बंजर थी वे तो फायदे में रहे। उपजाऊ जमीन वाले लुट गए।

दुकान पर एक बच्चा बैठा था। नाम बताया अंशु। कक्षा 9 में पढ़ता है। आजकल दशहरा की छुट्टी चल रही है। पता चला कि पिता रहे नहीँ उसके। माँ बीमार रहती हैं। एक भाई और एक बहन और हैं। स्कूल के बाद दुकान पर आकर बैठता है। दुकान वाले ने बताया -'जब इनकी छुट्टी होती है तब आकर बैठते हैं ये। कोई पाबन्दी नहीँ समय की।


कानपुर से 42 किलोमीटर दूर बिल्हौर आलू की और अनाज की बड़ी मण्डी है। शेरशाह सूरी के बनवाये ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है। शेरशाह सूरी का राज बहुत कम समय के लिए रहा भारत में। इतने कम समय में उसने इतने काम करवाये इससे पता चलता है कि कितना कुशल प्रशासक रहा होगा। यह खोज का विषय कि जब कलकत्ता से पेशावर सड़क बनवाई होगी शेरशाह ने तो उस समय कितने इंजीनियर हलाक हुए होंगे सत्येंद्र दुबे की तरह (स्वर्ण चतुर्भुज योजना में गड़बड़ी का विरोध करने पर हत्या हुई इनकी)।

पिछले दिनों बिहार की रिपोर्टिंग कर रहे रवीश कुमार ने सासाराम में शेरशाह के मकबरे के पास खड़े होकर लोगों से शेरशाह के बारे में सवाल किये थे। लोगों ने उसे कुशल प्रशासक और सच्चा धर्मनिरपेक्ष बताया था। बाबू जगजीवन राम सासाराम से ही चुनाव लड़ते और जीतते थे। परसाई जी ने एक लेख में जगजीवन राम जी तारीफ की थी। रक्षा मंत्री के पद पर उनका कार्यकाल बहुत अच्छा रहा।

हम जब साइकिल से भारत यात्रा के समय सासाराम पहुंचे तो लोगों ने मजे लेते हुए कहा-'सासाराम यहां के मच्छर, मक्खी और नाले के लिए प्रसिद्ध है।'

ओह कहां से चले थे। कहां पहुंच गए। पर फर्रुखाबाद अभी भी 40 किमी दूर है।

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