Saturday, November 21, 2015

हमको अपना काम करने दो

कमरे में बैठे हुए सूरज की किरणों को देख रहा हूँ। स्कूल के दिनों से पढ़ते आये हैं कि सूरज की सतह से चलकर पृथ्वी तक पहुंचने में आठ मिनट लगते हैं किरणों को। धरती पर पहुंचने के पहले लाखों किलोमीटर चलना पड़ता है किरणों को। रास्ते में भयंकर वाला अँधेरा पड़ता होगा। कहीं कोई इंतजाम नहीं रौशनी का। पता नहीं किसकी सरकार है सूरज और धरती के बीच जो करोड़ों वर्षों में दो चार ठो बिजली के पोल तक न गड़वा पाई अपने इलाके ...में।

बाहर अशोक का पेड़ नुकीला एकदम भाले की तरह खड़ा है। ऐसे लग रहा है बड़ा होकर आसमान के पेट में छेद करके ही मानेगा पट्ठा।

कुछ देर पहले पूरे लान में जहाँ कोहरे का कब्जा था वहां अब उजाले की सरकार है। मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमन्त्री, राज्यपाल, सन्तरी,कलट्टर सब पदों पर सूरज के खानदान के लोगों का कब्जा है। किसी के पास कोई डिग्री नहीं है। किसी ने शपथग्रहण में समय बरबाद नहीं किया। किसी ने आने के पहले हल्ला नहीं मचाया कि मित्रों हम आते ही अँधेरे और कोहरे को उखाड़ फेकेंगे। किसी ने विज्ञापन में न समय खराब किया और न पैसे फूंके। बस आये और चुपचाप लग गए काम में। जहां कुछ देर पहले अँधेरा था वहां अब उजियारा है।

कमरे का दरवाजा खुला हुआ है। सूरज की किरणें दरवज्जे से अंदर कमरे में दाखिल हो गयी हैं। वो एक दायरे में ही रुक गयी हैं। उजाला आगे अंदर घुस आया है और जगह-जगह फैलता जा रहा है। अंदर जहाँ भी अँधेरा था वहां अब प्रकाश दिखने लगा है। लगता है सूरज के निकलते ही अँधेरे ने कुछ देर तो उजियारे से कुश्ती की होगी। फिर अपनी औकात समझकर उजाले के सामने समर्पण कर दिया होगा।

सूरज और धरती आपस में आठ मिनट की दूरी पर हैं। दोनों में आपस में क्या कभी बात होती होगी? अगर हाँ तो कौन कम्पनी का फोन प्रयोग करते होंगे दोनों। हो सकता है कि ये जो किरणें हैं न वही माध्यम हों दोनों के आपस में बतियाने का। ये जो सूरज की  किरणें बीच-बीच में मुस्कराती और खिलखिलाती सी दिखती हैं वो शायद दोनों की बातें सुनकर ही ऐसा करती हों।

क्या पता दोनों आपस में बतियाते हुए मजे लेते हों एक दूसरे से। सूरज भाई धरती से कहतें हों कि तुम काहे को चक्कर लगाती रहती हो मेरे। आ जाओ मेरे ही पास। बहुत जगह खाली पड़ी है इधर। रहो आराम से। तुम्हारे लिए रोज-रोज रौशनी भेजने का लफ़ड़ा कम होगा।

धरती शायद कहती हो -'अरे रहन दो पास होने की बात। इत्ता तो सुलगते रहते हो। तुमसे तो दूरी ही भली। तुम्हारा तो सबसे कम टेंपरेचर ही 6000 डिग्री है। इत्ते में तो हमारे सबरे बाल-बच्चे, प्राणी, जानवर सुलगकर राख बन जाएंगे। सारी हरियाली जल जायेगी, नदियां गायब हो जाएंगी, समन्दर गोल। हमारा धरतीपन खत्म हो जायेगा। हमें न आना तुम्हारे पास।'

धरती को सूरज चक्कर वाली बात लगता है ज्यादा ही लग गयी। इसीलिये वो अलग से बोली--'जहां तक रही चक्कर की बात तो जिस दिन हम चक्कर लगाना छोड़ देंगे तो ये जो तुम्हारा सौरमण्डल का टीम टामड़ा है न यह सब लड़खड़ा जाएगा। क्या पता फिर तुम भी कहीँ लड़खड़ाते हुए किसी दूसरे सौरमण्डल में शरण मांगो जाकर। ये हमारा तुम्हारे चारो तरफ घूमना जितना हमारे लिए जरूरी है उतना ही तुम्हारे लिए भी। सो इसका ज्यादा गुमान न किया करो कि हम तुम्हारे चक्कर लगाते हैं।'

सूरज भाई को लगा कि धरती कुछ ज्यादा ही गरम हो गयी सो मुस्कराते हुये बोले-'अरे मैं तो मजाक कर रहा था। तुम तो बुरा मान गयी। कितना अच्छी लग रही हो तुम स्वीट एन्ड क्यूट गोल-गोल घूमती चक्कर लगाती हुई।'

कोई फेसबुकिया होता तो इतने पर खुश होकर सूरज भाई को थॅंक्यू बोलकर चार ठो इस्माइली अलग से लगाता लेकिन चूंकि धरती का कोई फेसबुक खाता तो है नहीं सो उसने सूरज की 'चक्कर लगाती हुई' वाली बात पकड़ ली और फिर हड़काया-' मैं तो सिर्फ तुम्हारा चक्कर लगाती हूँ वह भी अपने बाल-बच्चों के लिए। रौशनी के लिए। लेकिन तुमको कौन जरुरत है जो तुम आकाश गंगा के चक्कर लगाते रहते हो। तुम्हारे पास तो खुद की रौशनी है। ज्यादा मुंह मती खुलवाओ मेरा अब सुबह-सुबह। हमको अपना काम करने दो।'

सूरज भाई चुपचाप मुस्कराते हुए एक बादल की ओट में चले गए। ऊपर से धरती को अपनी धुरी पर घुमते देखते रहे। दोनों अपने अपने काम में लग गए।

हम भी चलते हैं अपने काम पर। आप भी मस्त रहिये।

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