Thursday, November 05, 2015

सस्ती किताबें- एक सच यह भी

ब्लॉग और फेसबुक से जुड़े कई बेहतरीन लेखकों की पिछले दिनों कई किताबें आई। लगभग सभी मैंने खरीदी हैं। कुछ लोगों को उपहार में भी दी हैं।

आम जानकारी के हिसाब से लेखक को 10% रॉयल्टी मिलती है। कुछ प्रकाशक रॉयल्टी नहीं देते और बदले में कुछ किताबें लेखक को मुफ़्त दे देते हैं जिसे वह रॉयल्टी के रूप में समझ सकता है।Shefali Pande ने जितने पैसे दिए प्रकाशक को उतने मूल्य की किताबें प्रकाशक से लीं। (किताब का नाम- मजे का अर्थशास्त्र)

कुछ लेखक खुद किताबें छपवाते हैं। छपाई का पूरा पैसा प्रकाशक को देते हैं। सारी किताबें खुद लेकर फिर अपने हिसाब से बांटते हैं। Neelam Trivedi ने अपनी किताब ( Zenith of Love - http://www.amazon.in/Zenith-love-Dr-Neelam-Tr…/…/ref=sr_1_1… )खुद छपवाई। सारी किताबें खुद ऑनलाइन बेंची/भेजी । मतलब छपाने में जो भी खर्च किया उसके बाद अपने हिसाब से किताबों का वितरण किया। 

इधर किताबों की छपाई का नया तरीका पता चला है।इसमें लेखक प्रकाशक को 25 से 30 हजार रूपये तक देता है। प्रकाशक कुछ किताबें छपता है। बेंचता है। बदले में लेखक को न रॉयल्टी देता है और न ही दिए गए पैसे के बराबर किताबें। प्रकाशक किताब छापता है। बेचता है। कमाता है। लेखक लिखता है। छपने के पैसे देता है। बदले में उसको न किताबें मिलती हैं न रॉयल्टी। सिर्फ एक लेखक बनने का एहसास होता है उसको। मतलब लेखक ख़ुशी-खुशी अपना आर्थिक शोषण करवाता है।

मेरी किताब 'पुलिया पर दुनिया' मैंने पोथी.काम से ई-बुक और प्रिंट आन डिमांड के तहत छपवाई।मुफ़्त में। ई-बुक के दाम 50/- रखे थे। साल भर करीब हुए कुल जमा 50 से भी कम किताबें ई-बुक और एकाध छपी हुई बिकीं। 2000/- करीब रॉयल्टी के पोथी.कॉम से अभी तक नहीं मंगाई है। यह सूचनार्थ ही है बस।

पिछले दिनों अख़बारों में इस तरह के लेख छपे कि हिंदी में अच्छे और सस्ते लेखन सामग्री का नया दौर शुरू हो गया है। उन लेखों में लेखकों ने इस मुद्दे पर कोई बात नहीं की थी कि उन किताबों के छपने के लेखक ने पैसे दिए। प्रकाशक ने लेखक से पैसे लेकर किताब छापी। किताब छापने का खर्च लेखक से लिया। किताब बेंचकर आगे भी कमाई की। लेखक का शोषण करके सस्ती और अच्छी किताबें छापने का श्रेय भी लिया।

जिन लेखकों ने पैसे देकर किताबें छपवाई सम्भव हो तो उनको इस बारे में भी लिखना चाहिए कि

1. उनको क्या बिकी हुई किताबों पर रॉयल्टी भी मिली।
2. क्या उनको उतने मूल्य की किताबें मिलीं जितने पैसे उन्होंने किताब छपवाने के लिए दिए।
3. उनका किताब छपवाने का अनुभव कैसा रहा?

ये प्रश्न किसी खास लेखक प्रकाशक से सम्बंधित नहीं हैं। न मुझे किसी प्रकाशक से कोई शिकायत है। यह सिर्फ उस प्रचार के संदर्भ में है जिसके अनुसार यह बताया जा रहा है कि हिंदी में अच्छी किताबें सस्ती दरों पर छपने लगी हैं। इस प्रचार में जानबूझकर या अनजाने में यह सच नहीं बताया गया कि इस सस्ताई में लेखक का पैसा लगा है। सस्ती किताबों की बुनियाद लेखक के आर्थिक शोषण पर टिकी है।

2 comments:

  1. किताबों के मामले में बड़ा घालमेल है. मेरी किताब, तीन रोज़ इश्क़, पेंग्विन से आयी. मैंने कोई पैसे नहीं दिये छपवाने के, लेकिन जैसा कि अंग्रेजी में होता है, या पुराने लेखकों के साथ होता है कि ऐडवांस मिलता है, ऐसा कुछ नहीं दिया गया. हाँ ये जरूर है कि किताबें जब भी चाहिये, जितनी चाहिये अपने पर्सनल इस्तेमाल के लिये(मुफ्त के बाँटने के लिये), वो 50% डिस्काउंट पर मिलती हैं :)

    रौयल्टी अक्टूबर में आयेगी ऐसा बताया गया था...किताब का दूसरा एडिशन छपने चला गया...नवंबर खत्म होने को आया, अभी भी कोई बात नहीं चल रही इस बारे में. पेंग्विन जैसे बड़े प्रकाशन का ये हाल है तो बाकियों का तो भगवान भरोसे ही होगा.

    लिखने और उससे मिलने वाली रौयल्टी में कोई तालमेल नहीं दिखता...मिली तो मिली वरना किताब देख कर खुश रहिये.

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    1. हमने मंगाई है तुम्हारी किताब। एकदम सामने ही धरी है मेरी किताबों की आलमारी में। बस पढ़नी है कहानियां एक-एक करके। :)

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