Thursday, July 13, 2017

पेट्रोल पम्प पर फेसबुक, व्हाट्सऐप

कल दोपहर दफ़्तर से लौटते हुए देखा कि गाड़ी में पेट्राल खत्म हो रहा था। पास ही पेट्रोल पम्प भी मिल गया। पहुंच गए। बोले डालो पेट्रोल। पेमेंट कार्ड से करेंगे।
पेमेंट कार्ड से करने की बात सुनते ही एक बोला -'अबे फेसबुक, मशीन लाओ।' कहने के साथ ही उसने गाड़ी की टँकी में पाइप ठूंस दिया।
फेसबुक जिसको कहकर बुलाया वह मशीन लाया। पता चला उसने चार दिन पहले नया मोबाईल खरीदा है। उसी में घुसा रहता है। फेसबुक इंस्टॉल करने की कोशिश करता रहा। खाता बनाया। अब जाकर सफल हुआ। उसकी फेसबुक तल्लीनता के चलते नाम पड़ गया फेसबुक।
जिसने बताया उसने यह भी बताया कि उसका नाम व्हाट्सऐप है। मतलब एक ही पेट्रॉल पम्प पर फेसबुक-व्हाट्सऐप की जोड़ी।
व्हाट्सऐप का फोटो खींचा तो उसने कहा - 'हमारा और फेसबुक का साथ में खींचिए।' कहने के साथ ही वह फेसबुक को पकड़ लाया। कंधे पर हाथ रखकर खड़ा हो गया। लेकिन फेसबुक मेरे हाथ में मोबाइल कैमरा देखकर व्हाट्सऐप से अपना कन्धा झटककर दूर हो गया। पर्ची काटने लगा, पेट्रॉल भरने लगा। बाद में हमने दूर से फेसबुक का फोटो खींचा।
मुझे अपना फोटो खींचते फेसबुक कनखियों से मुझे देखता रहा। पैसे गिनते हुए। व्हाट्सऐप के साथ फोटो खिंचाने की झिझक अब अकेले में शायद कम हो गयी थी।
कल की घटना याद करते हुए अभी यह जब लिख रहे थे तो सामने सूरज भाई चमकते दिख रहे थे। अभी-अभी बादलों की ओट में चले गए। सूरज भाई का बादलों के पीछे जाना शायद 'चमकना ब्रेक टाइप' है। इस बीच वे फिर से चमकने के लिए तैयार होते होंगे। लेकिन वे तो हमेशा चमकते रहते हैं। बादलों के पीछे छिपने का उनका मकसद शायद बादल का हौसला बढ़ाना होगा कि वह भी सूरज को ढँक सकता है। सामर्थ्यवान अपने से कमजोर को ऐसे ही प्रोत्साहित करता है।
पिछले दिनों ताजा पोस्ट्स नहीं लिखी तो कल हमको मथुरा के नामी वकील और हमारे सारे अदालती मसलों का हिसाब किताब रखने वाले Surendra शर्मा जी ने कल टेलीफोन पर धमकाया कि ये व्यंगयबाजी जो मन आये करते रहो लेकिन हमारे रोजमर्रा के किस्से हमें मिलने चाहिये।
अब एक तो फुरसतिया खुर्राट वकील और ऊपर से सुधी-सजग पाठक जो यह तक नोट करता रहता है कि किस व्यंग्यकार का रुख कैसे पलट रहा है। कौन व्यंग्यकार किसके नजदीक जा रहा है, कौन छिटक रहा है और भी बहुत कुछ । ऐसे पाठक की बात को नजरअंदाज करना मुश्किल। इसलिए यह मुख़्तसर किस्सा।
किस्से भौत सारे हैं। सबको पेश करने की सोचते हैं लेकिन एक बार समय सरक जाता तो किस्सा भी साथ लग लेता है। नखरे करता है। कभी मार्गदर्शक मंडल में शामिल हो जाता है। कहता है- 'हमें बक्शो। अब नयों को मौका दो।'
लेकिन सबको मौका देंगे हम। नयों को भी, पुरानों को भी। हमारी निगाह में सबका महत्व है। हमको कोई किस्सों की सरकार थोड़ी बनानी है।
अभी फिलहाल इतना ही। बकिया फिर कभी। जल्दी ही। आपका दिन चकाचक बीते। ठीक न

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