Sunday, July 09, 2017

घपले-घोटाले बाजार की लीलायें हैं


आजकल घपले-घोटालों के मजे हैं। जिस काम के लिए सरकारों के मुखिया करोड़ों-अरबों फूंकते हैं वह पब्लिसिटी उनको मुफ़्त में मिल जाती है। घपला मीडिया के लिए वी आई पी आइटम होता है।
समाज में कुछ लोग घपलों को हिकारत की नजर से देखते हैं। घपले का नाम सुनते ही नाक और कुछ लोग तो भौं भी सिकोड़ लेते हैं। फिर भी मन न भरा तो नाक और भौं दोनों सिकोड़ लेते हैं। कुछ लोगों का मन इससे भी नहीं मानता तो वो अपना बदन भी सिकोड़ लेते हैं कि कहीँ घपला उनको छू न जाए। ऐसे लोग जाने-अनजाने छुआछूत को बढ़ावा देते हैं।
लोगों को समझना चाहिए कि किसी भी समाज में घपला वस्तुत: उस समाज के सभ्य और विकसित होते जाने की निशानी है। पहले राजा- महाराजे लूटपाट करते थे पैसे के लिए। हजारों लोगों को मार दिया करते थे सम्पत्ति के लिए।इससे उनको बाद में लोग कोसते थे। इतिहास में उनका नाम बर्बर लोगों में शामिल होता था।
समाज के विकास के साथ संपत्ति का स्वरूप बदल है तो उसके हथियाने के तरीके भी।पहले वस्तुओं का लेनदन होता था अब वह पैसे के लेनदेन में बदल गया। उसी हिसाब से सम्पप्ति हथियाने और लूटने के तरीके भी बदले हैं।
इतिहास से पता चलता है कि नादिरशाह ने दिल्ली में बहुत लूटपाट की थी। कई दिन तक लोगों को लूटते मारते रहे उसके सिपाही। बड़ा बदनामी हुई उसकी। जितनी लूट नादिरशाह ने दिल्ली में लाखों लोगों को मारकर की होगी उससे कहीं बड़ी कमाई तो कॉमनवेल्थ घोटाले में कर ली होगी लोगों ने।वह भी बिना किसी को मारे हुए।
जो काम नादिरशाह ने बड़ी सेना की सहायता से किया वह दिल्ली में भाई लोगों ने चंद लोगो को साथ लेकर कर लिया। घपला वस्तुत: रक्तहीन लूटपाट है। समाज के विकसित होते जाने की निशानी है रक्तहीन लूटपाट। नादिरशाह अनाड़ी लुटेरा था। आज के लोग समझदारी से लूटते हैं। लूटते भी हैं और मसीहा भी बने रहते हैं।
अब व्यापम घोटाले का बड़ा हल्ला है। लोग कह रहे हैं कि बहुत गड़बड़ी हुई। अरे भाई गड़बड़ी क्या हुई? जिसके पास पैसा है वह बाजार में बिकती चीज खरीदेगा ही। चीज भी वही खरीदेगा जिसके आगे बढ़िया दाम मिलें। डाक्टर बनने पर अगर कमाई ज्यादा होगी तो उसकी सीट मंहगी बिकेगी ही।
अब जिन लोगों के पास पैसा है वह कोई न कोई तरीका निकालेंगे ही अपने बच्चों के लिए डाक्टर इंजीनियर की सीट खरीदने के लिए। लोगों ने निकाले भी। उसको लोग अगर घपला कहें तो उनकी मर्जी। वस्तुत: तो पैसे वाले लोगों ने अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य ही दिखाया। सहज मानवीय भावनाओ के प्रति वशीभूत होकर आचरण किया।
घपले-घोटाले तो बाजार की लीलाएं हैं। अलग-अलग छटाएं हैं। बाजार सब कुछ करवाता है। वही सरकारें बदलवाता है। वही ग्रीस को दीवालिया कराता है। बाजार सब घपलों-घोटालों का मास्टरमाइंड है। उसको पकड़ने की किसी की हिम्मत भी नहीं है क्योकि सब उसके अधीन हैं। सबने उसका नमक खाया है। बाजार किसी समाज से गब्बर सिंह की तरह पूछता भी होगा- तेरा क्या होगा टुम्बकटू? टुम्बकटू कहता होगा- मैंने आपका दिया विकास खाया है मालिक। इस पर बाजार कहता होगा- तो अब घोटाला खा।
सच पूछा जाए तो सब घोटालों की जड़ में आदमी के शरीर में दिमाग की बढ़ती तानाशाही का हाथ है। हाथ पैर की मेहनत के मुकाबले दिमाग की कलाकारी के बढ़ती कीमतें तमाम घपलों की जगत माता हैं। दिन भर मेहनत करने वाले लोग न्यूनतम मजूरी को तरसते हैं जबकि दिमागी काम वाले दिन के लाखों कमाते हैं।
इसीलिये सब घपले हो रहे हैं। घोटाले हो रहे हैं। कुछ लोग देखते-देखते अरबपति हो रहे है वहीं अनगिनत लोग भूख के चलते आत्महत्या कर रहे हैं।
घपले रोकना है तो दिमाग की बढ़ती ताकत पर नियंत्रण करना होगा। लेकिन करेगा कौन? सब तो बाजार की नौकरी बजा रहे हैं जिसके सारे शेयर दिमाग वालों के पास हैं।
करेगा कभी न कभी कोई करेगा। कब करेगा यह कहना मुश्किल है। कोई कुछ बोल भी नहीं रहा। अभी तो अभिव्यक्ति के सब चैनल भी बाजार के कब्जे में हैं।

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