Sunday, September 03, 2017

जब समस्या चरम पर हो तब समझो उसका समय पूरा हुआ

आज जरा तसल्ली से निकले टहलने। शुक्लागंज की तरफ जाने वाली सड़क पर कई रिक्शे वाले अपने रिक्शों का सिंगार कर रहे थे। उनको नहला-धुलाकर राजा बेटा बना रहे थे। एक रिक्शेवाले भाई बाल्टी में पानी भरे टायर को ब्रश से रगड़ रहे थे जैसे घोड़े की पीठ पर खरहरा चलाते हैं वैसे ही टायर का पेट और पीठ धो रहे थे।
'ठेका देशी शराब' खुला नहीं था लेकिन लोग बगलिया के घुसते और बोतल लेकर निकलते दिखे।
पुल की मुंडी पर जलती लाइट पुल के मुहाने पर जमा कूड़े पर फोकस किये थी। लाइट को शायद सूरज की रोशनी पर भरोसा नहीं था। इसीलिए जल रही थी।
पुल पर एक बुजुर्ग लोहे का दरवज्जा साइकिल के कैरियर पर लादे चले जा रहे थे। साईकल पर लदा दरवज्जा कभी दायें घूमता तो कभी बायें। साईकल दायें-बायें के दबाव में गठबंधन सरकार सी अस्थिर हो रही थी।कुछ देर हिल-डुल के बाद बुजुर्ग वार साइकिल से उतरकर पैदल हो गये। लोहे के दरवज्जे का हिलना-डुलना बन्द हो गया। इससे यह सीख मिली कि जब कभी आपके साथ के लोग आपको ज्यादा हिलाये-डुलायें तो पैदल हो जाना चाहिये। लोग शान्त हो जायेंगे।
गंगा का पानी उतर गया था। जिस जगह पर पिछले हफ़्ते पानी भरा था वहां जमीन निकल आई थी।बच्चे रेती में विकेट लगाये क्रिकेट खेल रहे थे। बाढ का पानी मानो सर्जिकल स्ट्राइक करके लौट गया था।
एक आदमी पुलिया पर बैठा बीड़ी सुलगा रहा था। हथेली को मुंह के पास ले जाकर बीड़ी सुलागते आदमी को देखकर ऐसा लगा मानो वह दियासलाई और बीड़ी के अकेले मिलने की जगह बना रहा हो। बीड़ी और दियासलाई अकेले में मिलते ही सुलगने लगे। दियासलाई भक्क से जलकर बीड़ी को सुलगाकर बुझ गई। बीड़ी देर तक सुलगती रही -शायद दियासलाई की याद में।
नुक्कड़ पर ही बैसवारा हेयर कटिंग सैलून दिखा। कल को कोई इस फ़ोटो को देखे और पढे निराला जी बैसवारे के रहने वाले थे तो यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि निराला जी का कटिंग सैलून चलता था।
गंगा तट पर जयफ़्रेंडसग्रुप के साथी बच्चों को पढाने में लगे थे। जब हम पहुंचे तो बच्चों को पीटी कराते हुये गिनती सिखा रहे थे गुरुजी लोग। बाद में कुछ देर तक बात हुई जयफ़्रेंड्सग्रुप के लोगों से। रचना लेखपाल का काम करती हैं गोरखपुर में। साथियों ने बताया कि वे वहां भी लोगों की सहायता करती रहती हैं। निशुल्क सेवा करते देखकर उनके साथ के कमाऊ साथी रचना को सिरफ़िरी बताते हैं। आज के समय सिरफ़िरे लोग ही कुछ अलग करने की कोशिश करते हैं।
गंगातट पर मछलियों को चारा खिलाने वाले और कुत्तों को ब्रेड खिलाने वाले अपने काम में लगे थे। पुल के नीचे साधु लोगों ने मंदिर बनाकर जगह पर कब्जा कर रखा था। अपने डेरे बना रखे थे। खड़ेश्वरी बाबा अपने डेरे से बाहर निहार रहे थे लोगों को। चाय वाले की दुकान धूप में पूरी तरह नहाकर पसीने-पसीने हो गयी थी। हमने कहा तो वे बोले- ’अब बस कम ही होनी है धूप।’
मतलब जब समस्या चरम पर हो तब समझो उसका समय पूरा हुआ।
लौटते में देखा एक जगह लोग पानी की पांच हजार लीटर की पानी की टंकी से लगे नलों से नहा रहे थे। पानी की टंकी के ऊपर सोलर पैनल लगा है। उसकी बैटरी सबमर्शिबल पम्प से जुड़ी है। उससे जमीन से पानी टंकी में चढता रहता है।
आने वाले समय में बड़ी बात नहीं कि हर आदमी अपनी पीठ पर सोलर पैनल बस्ते की तरह लादे घूमे। बड़ी बात तो यह भी नहीं आने वाले समय में दुनिया की तमाम मल्टीनेशनल कम्पनियां सूरज की रोशनी पर कब्जा किये अपने-अपने पैनल लगाये बिजली और रोशनी बेंच रही हों। पाउच में रोशनी बिके।
पुल के नीचे दो लोग पल्ली बिछाये हजामत बनाने के लिये बैठे थे। गुम्मा हेयर कटिंग सैलून की तर्ज पर ’पल्ली हेयर कटिंग सैलून’ या फ़िर ’मोमिया हेयर कटिंग सैलून’। बगल में एक बुजुर्गा अपनी खटिया पर मोमिया सिल रही थीं। मानों अपनी खटिया को झबला पहना रहीं हों। वहीं एक और बूढा माता सड़क किनारे अपने दरवज्जे पर बैठे गेंहूं फ़टक रहीं थीं। बीच-बीच में सड़क की तरफ़ भी देखती जा रही थीं। मतलब सब तरफ़ नजर थी।
लौटते में लोहे के पुल से आये। पुल की शुरुआत में ही मसाला बेंचती महिला साथ में चाय पीते आदमी से बतिया रही थी। पुल के बीच में एक आदमी गंगा की तरफ़ मुंह किये पुल से चिपका लेटा था। गंगा इस सब से बेखबर खरामा-खरामा बहती जा रही थीं। गंगा भी शायद इतवारी मूड में थीं। तसल्ली से बह रहीं थीं।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10212462781058031

No comments:

Post a Comment