Monday, June 18, 2018

जिसे जो भी चाहे दे दे, तेरे पास क्या नहीं है



इतवार को ईद के दिन शहर घूमने निकले। साइकिल पर। मालरोड, शिवाला, मेस्टन रॉड, परेड, कर्नलगंज, तलाक मोहाल, चमनगंज , नई सड़क होते हुए वापस घर लौटे। सबके किस्से विस्तार से अलग से।
हलीम मुस्लिम कालेज के पीछे की एक पतली सड़क पर एक बुजुर्गवार खड़े हुए तरन्नुम में शेर पढ़ रहे थे। लोग सुन रहे थे। अपन भी साइकिल को ब्रेक मारकर खड़े हो गये। सुनते रहे। कुछ रिकार्ड भी किये। कुछ आप भी सुनिए।
बातचीत से पता चला कि गाने वाले मकनपुर के किसी सूफी, औलिया से जुड़े हैं। लोगों के कलाम इकट्ठा करके घूमते हुए सुनाते हैं। 'रट्टू शायर ' हैं।
शायर का एक मुरीद , सफ़ेद गंजी पहने, प्लास्टिक की पन्नी में चाय लिए बहुत देर तक खड़ा रहा। बोले-'जब भी आते हैं ये हम इनको जरूर सुनते हैं। कभी-कभी घण्टों।'
आते-जाते लोग पास खड़े होकर कुछ देर सुनते, चले जाते। कोई-कोई कुछ पैसे-रुपये देते जाते जिसे बिना देखे शायर अपनी जेब के हवाले करते जाते।
शायर साहब उससे बेपरवाह शेर पढ़ते रहे। अधिकतर शेर ईद के मौके पर पढ़े जाने वाले टाईप। बाद में काफी इशरार करने पर वहीं नुक्कड़ के चबूतरे पर बैठकर चाय पी। फिर कुछ और कलाम सुनाए। जो हमने रिकार्ड किया उनमें से एक यहां पेश है। बाकी भी कभी पोस्ट किए जाएंगे कभी मौके-बेमौके।
सुनिए और आनंदित होइए। 
बता रहा है हमको, तेरे मिस्ले औलिया में कोई दूसरा नहीं है।
ये तेरा इत्तियारो मनसब , कोई जानता नहीं है।
तू नवाजिशों का वारिश, तू अताओं का समन्दर
जिसे जो भी चाहे दे दे, तेरे पास क्या नहीं है।
जितना खुदा ही हासिल हो, तेरी मदार-ए- आलम
वो सफ़ीना बहर-ए-गम में कभी डूबता नही हैं।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/videos/10214596723005246/

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