Monday, June 04, 2018

बड़ी मस्त है

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, मोटरसाइकल, जूते और बाहर
सड़क पर हजामत और कान का मैल निकलवाते लोग

कल घण्टाघर चौराहे से होते हुए पंकज बाजपेयी के ठीहे पर पहुंचे। घण्टा घर के आगे सड़क किनारे कनमैलिये कान का मैल निकालते दिखे। एक जगह हजामत वाले और मैल निकालने वाले एक साथ दिखे। कान का मैल निकालने के लिए लम्बी सलाई कान में घुसेड़कर मैल के मलबे को हिलाया।फिर हिले हुए मैल को चिमटी से पकड़कर बाहर कर दिया।
मैल हो या कोई भी बुराई हो, इनकी बुनियाद बड़ी कमजोर होती है। जरा सा इधर-उधर करने से हिल जाती है। इसके वाद उसको निकाल बाहर कर सकते हैं। बस में हो। रमानाथ जी कहते भी हैं :
कुछ कर गुजरने के लिए
मौसम नही मन चाहिए।
आगे एक घोड़ा तांगे में आठ आदमियों को लादे लिए चला जा रहा था। तांगे का बोझ अलग से। देखते-देखते घोड़े की सर्विस कंडीशन आदमियों की तरह ही बेकार और बर्बाद होती चली गईं हैं। पहले एक घोड़े पर एक घुड़सवार होता था। बहुत हुआ कभी किसी सुन्दरी का अपहरण हुआ या प्रणय निवेदन हुआ या कोई घायल मिल गया तो दो सवारियां हो गयीं। आशिकी और मानवता में दोगुना बोझ तो चलता है। लेकिन अब विकास के लफड़े ने बताओ एक-एक घोड़े पर दस-दस सवारों का बोझ लाद दिया है।
घोड़ों से कम बुरे हाल नहीं हैं आदमियों के। हम क्या बताएं आप खुद समझते हैं। आखिर आप भी तो आदमी हैं। वैसे बहुत पहले दुष्यंत जी कह गये हैं:
जिस तरह चाहिए बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी , हम झुनझुने हैं।
सालों पहले आदमी झुनझुने में बदल गया था। अब क्या है पता नहीं। क्योंकि अब कोई आवाज भी नहीं सुनाई देती।।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, खड़े रहना और बाहर
पंकज बाजपेई अपने ठीहे पर
पंकज बाजपेयी ने कल साथ चाय पी। बिस्कुट का पैकेट लिया और मिठाई वाले कि शिकायत फिर की -'दो दिन बर्फी नहीं दी।'
वहीं कल काले , चीकट कपड़े पहने आदमी फिर मिला। लोगों ने बताया कि 20 साल से देख रहे हैं। किसी से बात नहीं करता। चुपचाप चाय लेकर पीता है, सिगरेट भी। कूड़ा बीनता है। उसी को बेचकर जो मिलता है उसी को खर्च करता है। किसी से कुछ मांगता नहीं।
हमारे सामने चाय लेकर दूर चला गया वह आदमी। हम उसके पास पहुंचे। सिगरेट उंगलियों के पास तक सुलग चुकी थी। नाम पूछा तो उसने बताया लेकिन कुछ समझ नहीं आया। इसके अलावा और कोई बात नहीं की उसने। चुपचाप खड़ा रहा।
हर इंसान अपने में एक मुकम्मल कहानी, उपन्यास होता है। कई लोगों पर सैकड़ों लोग लिखते हैं। कुछ लोग ऐसे ही गुमनाम होते हैं जिनके बारे में वो लोग भी कुछ नहीं जानते जिनके आसपास बीसियों साल से वह रहा होता है। आदमी को अजूबा बनाकर लोग अपना काम खत्म समझ लेता हैं।
आगे एक मकान के नीचे बैठे लोग एक ड्रम में पानी भर रहे थे। पानी ऊपर से नीचे ड्रम में इकट्ठा हो रहा था। पानी दिन पर दिन इतना कम और दुर्लभ होता जा रहा है कि क्या पता आने वाले समय में लोग दहेज में मोटर, कार की जगह पानी के ड्रम मांगे। काले धन की जगह लोगों के यहां से पानी बरामद हो।
चंद्रिका देवी चौराहे पर सड़क मंदिर निर्माण के कारण बन्द होने की सूचना थी। सड़क पर बल्ली लगाकर रास्ता बंद किया हुआ था।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, लोग बैठ रहे हैं और बाहर
रिक्शे पर मंजन और सुरमे का प्रचार
फुटपाथ से निकलकर आगे बढ़े। चमनगंज की ओर। हलीम कालेज होते हुए आगे बढे। जगह-जगह लोग फुटपाथ पर बैठे गपिया रहे थे। एक जगह चौराहे पर रिक्शे पर लाउड स्पीकर लगाए एक आदमी सुरमा और दांत का मंजन बेंच रहा था। सुरमे और मंजन की तमाम खाशियत बताई उसने। सब रिकॉर्डेड। सुरमे की ख़ासियत बताने का अंदाज ऐसा ही समझिए जैसे लोकतंत्र की सरकारें अपनी उपलब्धियों का प्रचार करती हैं।
मंजन और सुरमा के बहुत प्रचार के बावजूद कोई उसे खरीदने नहीं आया। कुछ देर बाद उसने रिक्शा आगे बढाया। जैसे राजनीतिक दल वोट न मिलने पर अपनी स्ट्रेटेजी बदलते हैं, उसने अपना ठीहा बदला और नई जगह से वही टेप बजाने लगा। ग्राहक अभी भी नदारद थे।
एक दुकान पर मीट बिक रहा था। कुछ बकरे दुकानों पर टँगे थे। उनकी साफ अंतड़िया देखकर ऐसा लगा मानो बकरे बाबा रामदेव के योग टेप देखकर कपालभाती कर रहे हों और जब उनका पेट अंदर हो अचानक उसी समय किसी ने उन पर स्वच्छता अभियान लागू कर दिया हो। मांस और खाल गायब। बकरे पोस्टर की तरह टँगे ग्राहक के इन्जार में सूख रहे थे।
कोई भी स्वचालित वैकल्पिक पाठ उपलब्ध नहीं है.
बड़ी मस्त है -क्या ? शायद जिंदगी।
आगे एक दुकान पर लिखा था -बड़ी मस्त है।
क्या मस्त है आप इसका कयास लगाइए। शायद जिंदगी। आप बताइए।
आगे का किस्सा जल्ली ही। फिलहाल शुभकामनाएं।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10214503009262461

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