Wednesday, June 06, 2018

नदी की कहानी कभी फ़िर सुनाना

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, अनूप शुक्ल सहित, मुस्कुराते लोग, धूप के चश्मे
राजा संग अनूप
इतवार को घूमकर लौटने के बाद मन किया गंगा नहाने का। घर से एक किलोमीटर दूर है। लेकिन नहाये नहीं अभी तक। दर्शन करके लौटते रहे।
इतवार को मन किया तो निकल लिये। झोले में कपड़े धर कर।
नहाने का मन राजा से मिलने के बाद बना। राजा दो दिन पहले मिले थे। शिवाले के पास रहते हैं। रोज दो घंटे गंगा में तैरते हैं, नहाते हैं। चार महीने में वजन बीस-बाइस किलो गिरा लिये हैं। कह रहे थे स्वीमिंग सबसे बढिया एक्सरसाइज है।
राजा सऊदी अरब के एक मॉल में काम करते थे। पता नहीं कैसे पैर , जांघ में इन्फ़ेक्शन हो गया। लौट आये। इलाज चल रहा है। वहां बिंदास खर्च के बाद महीने में तीस हजार बचते थे। यहां काम खोजते हैं तो आठ-दस हजार की नौकरी मिलती है। ठीक होने के बाद फ़िर जायेंगे। अर्थशास्त्र में पोस्टग्रेजुएट हैं।
सऊदी अरब और यमन की लड़ाई का किस्सा बताया। दोनों में जंग छिड़ी है। सऊदी अरब के सैनिक थुलथुल हैं। लड़ नहीं पाते ज्यादा। उनकी पोस्टिंग शहर की तरफ़ होती है। कम खतरनाक इलाके में। उनकी तरफ़ से बाकी देशों की सेनायें लड़ती हैं। कोई सैनिक मारा जाता है तो अस्सी-नब्बे लाख कम्पन्शेशन मिलता है परिवार वालों को।
लड़ाई-भिड़ाई पता नहीं किस लिये होती है। अच्छा खासा आदमी असमय शांत हो जाता है। लड़कर तबाह होते हुये आदमी शायद यह भी जताना चाहता है कि प्रकृति का सबसे बुद्धिमान प्राणी होने के नाते दुनिया की सबसे बड़े बेवकूफ़ का ताज पर भी उसी का हक बनता है।
और भी तमाम किस्से सुनाये राजा ने। लब्बो-लुआबन यह कि शादी के दो साल अच्छे गुजरते हैं। फ़िर बवाल। कुंवारे में आदमी ऐश कर ले। फ़िर तो जंजाल है। यह भी कि यहां हर बात के लिये सवाल क्या कर रहे, कहां जा रहे? मने प्राइवेसी कुछ है ही नहीं।
राजा से मुलाकात के बाद ही हमने सोचा था कि जब भी मौका मिला, गंगा में डुबकी लगाते रहेंगे।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, बैठे हैं और बाहर
राधा कृष्ण की आराधना करती राधिका
तो अपने इरादे पर अमल करने के लिये निकले। राधा अपने ठीहे पर अकेली थी। अपने तख्ते-ताउस पर। कृष्ण-राधा की एक मिट्टी की मूर्ति हाथ में लिये पूजा जैसी कर रही थी। राधे-राधे कहकर फ़िर पूजा में लग गयीं।
संदीप सीढियों पर ही मिल गया। हमको रास्ता दिखाने के लिये साथ चल दिया। रास्ता मतलब बीच धार तक पहुंचने का रास्ता। चप्पल हाथ में लेने को कहा उसने। हम ले लिये। आगे उदकता-फ़ुदकता , बतियाता चल दिया। हमने पूछा -’गंगा पार इतवार को बच्चों को पढाने आते हैं लोग। वहां जाया करो।’
उसने कहा- ’पता है।’
पता है के आगे कोई प्रतिक्रिया नहीं। बताया उसको पचास तक गिनती आती है। भाई जेल में बंद है। मसाला बेंचते पकड़ा गया था। पांच लाख रुपये मांग रहे पुलिस वाले छोड़ने के लिये। छोटा भाई शुक्लागंज में रहता है।
मसाला बेचते-खाते पकड़ा जाने पर जेल हो तो आधा कानपुर अन्दर हो। कोई और केस भी होगा। लेकिन पता नहीं उसको।
गंदे पानी , कीचड़ और जलकुम्भी के बीच से होते हुये हम कुछ साफ़ पानी के पास पहुंचे। संदीप कपड़े उतारकर दिगम्बर हो गया। पानी में कूदकर तैरने जैसा लगा। लेकिन हम और आगे चल दिये।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: वृक्ष, आकाश, घर और बाहर
तरबूज की फसल
बालू में तमाम सामान जगह बिखरे थे। कहीं कोई जूता औंधा पड़ा था, कहीं कोई शैम्पू का पाउच। एक जगह पान का बादशाह बालू पर पसरा हुआ था। शोले के ठाकुर की तरह। गड्डी में क्या तो शान रही होगी अगले की। पत्तों की कैबिनेट में दूसरे नम्बर की जगह। गड्डी से अलग बेचारा बालू में गुमनाम सा पड़ा था-’मार्गदर्शक पत्ते की तरह।’
आहिस्ता-आहिस्ता हम पानी में उतरे। पानी की धार धीमी थी । घुटने तक पानी में पहुंचकर हम नदी में आसन में लगाकर बैठ गये। पानी ने चारो तरफ़ से आलिगन करके हमारा स्वागत किया। मतलब कस के ’हग’ किया उसने मुझे। हम मुंड़ी झुकाकर पूरा पानी में गोता लगा लिये।
पानी की धार में बैठे-बैठे हमने सोचा हम भी अज्ञेय जी तरह नदी में कविता पाठ करें। ’अरे वो यायावर , रहेगा याद’ कविता की तरह कट्टा कानपुरी का कोई कलाम पढ ड़ालें। लेकिन कोई श्रोता न होने के चलते हमने अपना विचार नदी में ही विसर्जित कर दिया। वह कविता याद की:
नदी की कहानी कभी फ़िर सुनाना,
मैं प्यासा हूं दो घूंट पानी पिलाना।
मन किया नदी में धंसे हुये पोस्ट लिखें। शीर्षक लिखें-’ नदी में नहाते हुये’। लेकिन फ़िर लगा कहीं मोबाइल गिर गया तो दस हजार का चूना लग जायेगा। लिहाजा इस विचार को भी विसर्जित कर दिया।
चूने से याद आया कि बनारस में शंकर जी पर चढाने के लिये जो दूध बिकता है वह दूध न होकर चूने का घोल होता है। हमको शंकर जी पर बड़ा तरस आया। बताओ सब जानते हुये भी बेचारे चुप रहते हैं। चढावा आदमी क्या भगवान तक को कितना मजबूर कर देता है। लोग दूध की जगह चूने का घोल चढा रहे हैं और भगवान जी बेचारे कुछ बोल नहीं पा रहे। जब सबसे सीनियर देवताओं में से एक, संहार के देवता का यह हाल तो बाकी के देवताओं के हाल समझे जा सकते हैं।
भगवान जी की इस मजबूरी पर नंदन जी की यह कविता याद आ गयी:
"बड़े से बड़े हादसे पर
समरस बने रहना
सिर्फ देखना और कुछ न कहना
ओह कितनी बड़ी सज़ा है
ऐसा ईश्वर बनकर रहना!"
भगवान जी के यहां ट्विटर का चलन शायद हुआ नहीं है। वर्ना वे कुछ न कुछ जरूर करते। क्या पता हो उनका ट्विटर खाता जिसे उनका पुजारियों ने हैक कर लिया हो।
बहरहाल नदी में नहाते हुये हम चारो तरफ़ पानी से घिरे थे। अंजुरियों में पानी भरकर कई-कई बार पानी को महसूस किया। पानी उंगलियों की पोरों से शरारती बच्चियों सा इठलाता हुआ निकलता चला गया। पानी में हाथ ऊपर नीचे किया। कई-कई बार। आराम से हुआ। लेकिन पानी के बिस्तरे पर कस के हाथ मारा तो पलट के लगा। पानी ने अपनी ताकत दिखा दी। मारोगे हमको तो हम भी चोट पहुंचायेंगे। हम पानी हैं कोई इंसान नहीं कि ठोकरें खाकर चुप रहें।
पानी की ताकत का तो ऐसे भी हमको एहसास है। पानी के जेट से फ़ौलाद तक कट जाते हैं। आंसुओं की धार से पत्थर भी पसीज जाते हैं।
नदी में नहाते हुये लगा कि जिस तरह हमारी तमाम नदियां सूखती जा रही हैं उससे क्या पता हमारी अगली पीढियां कभी कहें- ’भारत में कभी पानी की नदिया बहतीं थीं।’

नदियों के साथ बेशर्मी और बदतमीजी का आलम यह है कि कभी सदानीरा नदियों के हाल गरीबी रेखा से नीचे वालों जैसे हो गये हैं। नावें बालुओं में औंधी पड़ी हैं। पानी तो छोड़ दिया जाये, कीचड़ तक दुर्लभ है नदियों में।
नदी में खड़े होकर सामने पुल से गुजरते लोग देखे, मालगाड़ी देखी। ऊपर सूरज भाई मुस्करा रहे थे। शायद कह रहे हों-’ बेटा हम तो रोज नहाते हैं। तुम आज एक दिन नहाये तो चमकने लगे।’
हमको नेहरू जी की वसीयत याद आई जिसमें वे अपनी राख गंगा नदी में बहाने की बात करते हैं। सदियों से बहती फ़िर भी नित नवीन गंगा। आज देखते गंगा के हाल तो शायद नेहरू जी एक बार फ़िर मर जाते। अच्छा हुआ समय से चले गये। आज होते तो न जाने क्या दुर्गति करते लोग चाचा जी की। जमाना बड़ा खराब है।
लौटते में संदीप फ़िर मिला। नदी में तैरते हुये। कुछ बच्चियां भी मदी में मछलियों की तरह उलट-पुलट रहीं थीं।
वहीं किनारे पर राधिका भी दिखी। सनसिल्क का शैम्पू मुंड़ी में मलती हुई नहा रही थीं। बताया -’सबसे अच्छा शैम्पू होता है यह।’
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, अनूप शुक्ल सहित, मुस्कुराते लोग, बाहर और क्लोज़अप
बैटरी रिक्शा में खुद फ़ोटो खींचते अनूप शुक्ल
हमारे किनारे पहुंचने तक संदीप बाहर निकल आया था। निस्संग भाव से बताया-’सुबह चाय पी थी। खाना केवल शाम को बनता है।’ कहते हुये वह दौड़ते हुये आगे निकल गया।
सड़क पर आकर बैटरी रिक्शा पकड़े। बैठ गये। सड़क पर जाते दूधिये देखे। फ़ोटो खैंची। फ़िर मन किया नहाये-धोये हैं तो अपना भी एक ठो फ़ोटो काहे न खींचा जाये। खैंच लिये। देखियेगा। बताइयेगा कि अच्छा आया है क्या? अच्छा न लगे तो बता दीजियेगा। खराब भी कह सकते हैं। हम बुरा नहीं मानेंगे। हमारा कोई दोस्त भी बुरा नहीं मानेगा। आखिर दोस्त हैं, हमारे भक्त थोड़ी।
बहुत हो गया। अब चला जाये। आज वुधवार है। बुद्ध सदा शुद्द। आजकल कोई भी चीज शुद्द मिलती कहां हैं। मिल गयी तो मजे करो।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10214516021147750

No comments:

Post a Comment