Wednesday, July 01, 2020

'बेवकूफी का सौंदर्य 'कुछ पंच वाक्य Abhishek की नजर में

 [जैसे लोग आमतौर पर नहाते समय कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं।]

आज "पंच कलेक्शन अधिकारी" अनूप शुक्ल की 'बेवकूफी का सौंदर्य से- --
- किसी भी बात पर फट से सहमत हो जाना समझदार होने का साइन बोर्ड है ।
- नाटक श्रृंगार रस की जान है। वीर रस तक बिना दिखावे के नहीं जमता आजकल। वीर रस के कवि को भी अपने चेहरे पर क्रोध का श्रंगार करना पड़ता है।
- कवि लोग श्रृंगार वर्णन में हमेशा सुरक्षित मार्ग अपनाते हैं। कभी सुंदरता की सीधे तारीफ नहीं की। घुमा फिरा कर बात कही। पूरे शरीर को टुकड़ों में बांटकर ऐसा माफिक बना दिया जैसे कि चोरी की कार को खोलकर कबाड़ी मार्केट वाले बना देते हैं।
- कवि होने के लिए शर्म से निजात पाना पहली आवश्यकता होती है।
- आर्कमिडीज की खोज को उसके नंगेपन ने पछाड़ दिया। स्वाभाविक भी है। दुनिया नंगे से डरती है।
- रिसर्च और विकास जैसे तमाम फालतू के खर्चे एडजस्ट करने के बहाने की तरह इस्तेमाल किए जाते हैं।
- सबसे पहला होने की दौड़ आदमी को बदहवास कर देती है। वह नंगई पर उतर आता है।
- जिस दिन बॉस नहीं डांटता उस दिन लगता है कि कोई अनहोनी होने वाली है। बॉस की डांट हमारे लिए ट्रकों के आगे लटका हुआ नींबू, मिर्ची है। जिस दिन नहीं पड़ती लगता है कोई दुर्घटना होने वाली है।
- बॉस भी भोले भंडारी हैं.....किसी व्यक्ति को निराश नहीं करते ,जो उनसे मिलने आता है उसे डांट देते हैं।
- होने को तो यह भी हो सकता है कि कल कुछ चियरबालाओं और चीयरबालकों का ही जलवा हो। यह जलवा इतना तक हो सकता है कि वह कहें इन खिलाड़ियों को रखो , इनको बाहर करो तभी हम चियर करेंगे। अगर यह कॉमिनेशन रखेंगे तभी हमारा चियर इफेक्ट काम करेगा।
- कभी खिलाड़ी सफेद पोशाक में सभ्य लोगों की तरह खेलते थे। आज खिलाड़ी सफेद पोशाक नहीं पहनते हैं। वे ऐसी कोई हरकत भी नहीं करते जिससे उन पर सभ्य होने का इल्जाम लगाया जा सके।
- आज फटाफट क्रिकेट का जमाना है। मैच में लगने वाले चौको-छक्कों की संख्या देश में घपले घोटालों की तरह बढ़ रही है। जैसे देश में किसी भी योजना में कोई भी घपला हो सकता है, वैसे ही बल्लेबाज किसी भी गेंद पर छक्का मार देता है।
- भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां मीटिंगों की खेती होती है।
- मीटिंग से लोगों में मतभेद पैदा होते हैं। कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाले पंजा लड़ाने लगते हैं।
- मीटिंग के बिना जीवन का उसी तरह कोई पूछवैया नहीं है, जिस तरह बिना घपले के स्कोप की सरकारी योजना को कोई हाथ नहीं लगाता।
- चंचला मीटिंग नखरीली होती है। इनमें मीटिंग के विषय को छोड़कर दुनिया भर की बातें होती है।
- हर काम सोच समझकर आम सहमति से कार्य करने वाले बिना समझे बूझे रोज मीटिंग करते हैं।
- स्पीड से से हड़बड़ी और हड़बड़ी से चेहरे पर व्यस्तता और तनाव झलकता है। अक्सर लोग यह सोचकर तनावग्रस्त रहते हैं कि उनके चेहरे पर तनाव के कोई लक्षण नहीं दिखते। लोहे को लोहा काटता है। तनाव जरूरी है तनाव से बचने के लिए।
- थूक कर चाटना हमारा राष्ट्रीय चरित्र हो या ना हो, पर ऐसा होने की बात लिखना मेरी भावुक मजबूरी है। राष्ट्र से नीचे किसी अन्य चीज पर मैं कुछ लिख नहीं पाता।
- कुछ विद्वानों का मत है कि थूक कर चाटना वैज्ञानिक प्रगति का परिचायक है। नैतिकता और चरित्र जैसी संक्रामक बीमारियों के डर से लोग थूक कर चाटने से डरते थे। अब वैज्ञानिक प्रगति के कारण इन संक्रामक बीमारियों पर काबू पाना संभव हो गया है ।
- एक राष्ट्रपति दूसरे देश में लोकतंत्र बहाल करने के लिए इतना चिंतित होता है कि उस देश को तहस-नहस कर देता है। दुनिया भर में शांति बहाल करने के लिए इतना चिंतित रहता है कि हर जगह अपने हथियार तैनात कर देता है।
- दुनिया जटिल हो रही है। लोगों की चिंताएं भी जटिल हो रही है। हर समय अंग्रेजी पूर्ण माहौल में रहने वाला हिंदी की स्थिति के लिए दुखी है। बात-बात पर गाली निकालने वाले को समाज में घटते भाईचारे की भावना चिंतित करती है।
- यदि चिंता थेरेपी को मान्यता मिल जाए तो सरकार की तमाम कमियां भगवान की कमियों की तरह छुप सकती हैं। जैसे ही चिंता थेरेपी को मान्यता मिली सरकार हर मौत के लिए कह सकेगी कि यह भूख से नहीं अन्य की कमी की चिंता से मरा है।
- जितने महान लोग हुए हैं दुनिया में, सब अपना काम अधूरा छोड़ कर गए हैं। उनके जाने के बाद केस बंद हो जाते हैं, वरना सब लोग नप जाते अपने काम में लापरवाही के चार्ज में।
- आज भले कोई हमें जाहिल, कामचोर, हरामखोर, देशद्रोही और भी न जाने क्या-क्या बताए, लेकिन हमें पता है कि हमारे छोड़े हुए कामों को ही पूरा करके अगली पीढ़ी महान कहलाएगी । दुनिया आज नहीं, लेकिन कल हमारी योगदान को पहचानेगी।
- दुनिया मे तमाम दूसरी चीजों के कोटे की तरह ही महानता की भी राशनिंग होती है। वही महान लोग एक दूसरे को धकिया कर खुद महानता की कुर्सी कब्जियाना चाहते हैं। इसीलिए आप जैसे ही महान बन जाए वैसे ही आप दूसरों के महानता के रास्ते में रोड़े अटकाना शुरू कर दें। इससे आप काफी दिन महान बने रह सकते हैं ।
- थोड़ी बेवकूफी मिलाकर चेहरे पर उत्सुकता का लेप किया जाए तो चेहरा ऐसा चमकता है कि उसका वर्णन बड़े-बड़े कवि तक नहीं कर पाते।
- सच्चे वह लोग हर जगह बोर होने की वजह तलाशते हैं। काम करते हैं तो काम से बोर हो जाते हैं। आरामतलब है तो आराम से बोर हो जाते हैं। सुखी है तो सुख से बोर हो जाते हैं। दुखी है तो दुख से बोर हो गए। देश प्रेमी है तो देश की दशा देख कर बोर हो लिए। - चोर चोरी से बोर हो उठता है तो डाका डाले लगता है। डकैती से बोर होता तो माफिया बन जाता है। माफियारी से बोर होता है तो नेतागीरी करता है। नेतागीरी से बोर होकर मंत्री गिरी करने लगता है।
- आदमी आपस में प्यार से रहते रहते बोर हो जाता है तो लड़ने लगता है। लड़ने से बोर होता है तो दंगा करने लगता है। दंगे से होता है तो शांति अपना लेता है। शांति से बोर हुआ तो आतंकवाद अपना लेता है।
- लोग दूसरे का लिखा पढ़ते-पढ़ते बोर हो जाते हैं तो खुद लिखने लगते हैं। लिखते पढ़ते बोर हो गए तो आलोचना करने लगते हैं। आलोचना से बोर हो गए तो तारीफ करने लगते हैं। तारीफ करते करते बोर हुए तो बुराई करने लगते हैं। बुराई से बोर हुए तो लड़ाई करनी है।
- साहब गुस्से के लिए कभी किसी बात के मोहताज नहीं रहे। जब मन आया कर लिया। कभी-कभी तो बेमन से भी गुस्से के पाले में कबड्डी खेलने लगते हैं।
- गुस्से की गर्मी से अकल कपूर की तरह उड़ जाती है।
- अगर लोगों के गुस्से के दौरान निकलने वाली ऊर्जा को बिजली ने बदला जा सके तो तमाम घरों की बिजली की समस्याएं दूर हो जाए। जैसे ही कोई गुस्से में दिखा उसके मुंह में पोर्टेबल टरबाइन और जनरेटर सटा दिया। दनादन बिजली बनने लगी।
- जैसे लोग आमतौर पर नहाते समय कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क की सील टूटने के बाद शुरू होता है।
- सड़क पर जाम सभ्य समाज की अपरिहार्य स्थिति है। वह समाज पिछड़ा हुआ माना जाता है , जहां ट्रैफिक जाम नहीं होता। बिनु जाम सब सून।
- इवेंट मैनेजमेंट की तरह ही विश्वविद्यालयों में जाम मैनेजमेंट की कक्षाएं शुरू होनी चाहिए।
- भाषण के शौकीन लोग जगह-जगह लगे जाम को संबोधित करके अपने शौक पूरे कर सकते हैं। जनप्रतिनिधि बिना पैसे के सिर्फ जाम की जगह पर माइक लगाकर अपने समर्थन की अपील कर सकता है।
- राजनीति में दूसरे क्षेत्रों के छठे हुए लोग आते हैं। तपे तपाए जनसेवक, कट्टर धर्माचार्य, छटा हुआ गुंडा, पका हुआ माफिया, व्यापारी, रिटायर्ड नौकरशाह राजनीति में इसलिए आता है कि सुकून से देश सेवा कर सके। अपनी इधर उधर की कमाई को हिल्ले लगा सके। राजनीति इनका अभयारण्य होती है सुरक्षा की गारंटी होती है।
- अरबों खरबों की योजनाओं की चक्की चलाते राजनेता के पास सौ पचास करोड़ जमा हो जाए तो उसका क्या दोष ? पानी ले जाने वाले लोहे के पाइप तक की सतह गीली हो जाती है। क्या पाइप का भ्रष्टाचार कहेंगे?
- आज की राजनीति को बाजार ही चलाता है। बाजार के दीगर सामानों की तरह राजनेताओं की भी कीमत होती है। खरीद-फरोख्त होती है। मोलभाव होते हैं इसलिए राजनेताओं को अपने भले के लिए अपनी संपत्ति में फैक्टर आफ सेफ्टी लगाना चाहिए।
- जनता जिनको बहुमत से चुन रही है, फिर उनको कैसे अपराधी घोषित कर सकते हैं? पागल , अपराधी और दिवालिया होना योग्यता नहीं है। घोषित होना योग्यता है।
- देश बेचारा देश सेवा का ठेका हासिल करने के लिए जूझ रहे ठेकेदारों को देख रहा है। वह जानता है बैनर और नाम भले अलग दिखे लेकिन असल में सब ठेकेदार एक सरीखे हैं।
- लैपटॉप तो चुनाव घोषणा पत्र में होना ही चाहिए। दूल्हा चाहे गधा, गोबर, गणेश हो लेकिन दहेज में उसको गाड़ी तो चाहिए ही चाहिए। बाकी तो ससुर कहते हैं कि दुल्हन भले ना मिले लेकिन शादी में गाड़ी जरूर मिले।
- चुनाव भावुकता से नहीं लड़ जाते। घोषणा पत्र में भावुकता दिखेगी तो जनता समझेगी यह राज नेता नहीं है। घोषणा पत्र लिखना कोई कविता लिखना नहीं है कि जो मनाया ठेल दिया।
- किताब छपते ही लेखक फल से लदे हुए वृक्ष की भांति विनम्र हो जाता है। भाषा मुलायम। उसकी भाषा में विनम्रता का सॉफ्टवेयर फिट हो जाता।
- किताब छपते ही आपको अपने दोस्त-दुश्मन पहचानने की अक्ल आ जाती है।
- किताबें छपवाने की प्रक्रिया बेटी के विवाह का पूर्वाभ्यास है। सब करम हो जाते हैं अपना लिखा हुआ छपवाने में। रचनाओं के लिए प्रकाशक खोजना बेटी के लिए वर ख़ोजना जैसा है।
- किताब छपने के बाद प्रकाशक और लेखक का झगड़ा भी आम बात है। कुछ सज्जन लेखक या प्रकाशक निज मन की व्यथा समझकर मन में छुपा लेते हैं। लेकिन स्वच्छंद की छीछालेदरी अभिव्यक्ति के हिमायती सारे लफड़े या झगड़े को सारी जनता के सामने छिछिया देते हैं।
- किताब का विमोचन करना करवाना भी एक कला है। कुछ लेखक तो इस मामले में आत्मनिर्भर होते हैं। किताब साथ लेकर चलते हैं। जहां भीड़ दिखी, किताब सीने से चिपका कर फोटो खींच ली और खबर छपा दी - खचाखच भीड़ में विमोचन।
- अगर आपकी किताब पर कोई इनाम मिल चुका है तो समाज की किसी भी समस्या के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करते हुए इनाम वापस करने की घोषणा कर सकते हैं।
- किताब छपने के बाद कौन साहायक रहा और कौन प्रेरणादायक, यह बताना किसी गठबंधन सरकार के मंत्रिमंडल के सदस्य चुनने सरीखा जटिल काम है। जिस को भूल जाओ वह नाराज। जिसको याद करो वह भी नाराजगी उसको श्रेय मिला लेकिन कम मिला। किसी को यह दुख कि उसके पहले किसी दूसरे को ज्यादा भाव दे दिया।
इति

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