Wednesday, July 08, 2020

रात -बातें खुद की खुद से

 हमारे सुपुत्र Anany जो कविता लिखते हैं तो उसका पाठ भी करते हैं। पिछले दिनों उन्होंने जो कविता लिखी उसको (अनन्य के खाते से और एक पेज की मार्फ़त जिस पर कविता साझा हुई) लगभग एक लाख लोगों ने देखा। कविता इंस्टाग्राम पर साझा की है अनन्य ने।

हम इसको यहां साझा कर रहे हैं। सुनिए-पढ़िए। बताइए अपनी राय अगर मन करे। 🙂
रात -बातें खुद की खुद से
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रातों को अक्सर
कुछ सफ़र किया करता हूं मैं
अंधेरा बहुत होता है बाहर
उससे बचने के लिये
कभी-कभी खुद से बातें किया करता हूं मैं।
एक रात भटकते-भटकते
एक लड़के से मुलाकात हुई
वह अपनी छाती पर हाथ रखकर
कुछ गुनगुना रहा था
पूछने पर पता चला कि
वह तो केवल अपने सीने के दर्द को
किसी तरह सुला रहा था।
बैठ गया बगल में
बोला सुना अपनी कहानी।
कहानी सुनोगे मेरी !
कौन सी कहानी सुनाऊं?
कई कहानियां हैं
जिनकी किताब तो मेरे हाथ में है
पर पन्ने मैं नहीं पलट पाता
नींद नहीं आती यार रातों को
अजीब सी बेचैनी होती है
ख्वाब मेरे तकिये पर सोते हैं
देर रात वाली बातें केवल करवटों से होती है।
१२ घंटे काम करता हूं
अपनी सांस भी महसूस नहीं होती
रात को तीन बजे
मेरे हाथ उसकी तस्वीर क्यों होती है
मेरी बालकनी में अकेलेपन की
एक लहर आती है
नाकामियों की व्हिस्की
रोज शाम मेरा ग्लास भर जाती है
टप्प,टप्प
बारिश से ज्यादा यह आवाज
अब आंसुओं से आती है
मां तेरी गोद की रोज
बहुत याद आती है।
सताती हैं मेरी उलझने
छटपटाता भी हूं
कोई हाल पूछता है
मुस्कराता भी हूं
थक गया हूं मैं
अब मुस्कराया नहीं जाता
टूट चुका हूं
अब खुद को उठाया नहीं जाता
उदासी का कारण भी पूछता है कोई
तो मुझसे कारण बताया नहीं जाता
लड़ने को तैयार हूं मैं
पर दुश्मन कौन है समझ ही नहीं आता।
कमी पता नहीं किसमें है
पर खुद के अलावा
किसी को दोषी ठहराया ही नहीं जाता
हाथ बढाता हूं खुद की मदद के लिये
सुना है इन्सान खुद ही खुद को बचाता है
पर खुद से इतना दूर जा चुका हूं
कि वह हाथ नजर ही नहीं आता।
कहानी बीच में रोककर
देखा उसने मेरी आंखों में
बोला – ’तू खो गया है’
’सो जा, मिलूंगा कल रात
अब बाहर उजाला हो गया है ।’
अनन्य शुक्ल

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10220267927461813

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