Saturday, June 05, 2021

जैसे उनके दिन बहुरे

 

अभी तक परीक्षाओं में पास होने की तीन डिवीजन थीं- फर्स्ट डिवीजन, सेकेंड डिवीजन और थर्ड डिवीजन। 60 प्रतिशत से ज्यादा नम्बर पाने वाले बच्चे फर्स्ट डिवीजन, 45 और 60 प्रतिशत के बीच वाले बच्चे वाले सेकेंड डिवीजन और 33 प्रतिशत से 45 प्रतिशत वाले बच्चे थर्ड डिवीजन में पास कहलाते थे। थर्ड डिवीजन को गांधी डिवीजन भी कहते थे।
कोरोना काल में इम्तहान मुश्किल हो गए। इम्तहान मतलब संक्रमण का खतरा। पहले इम्तहान टाले गए और अब अंततः निरस्त हो गए। तय हुआ कि बच्चों को उनके पिछले अंको के आधार पर अंक देकर पास किया जाएगा।
जिन बच्चों के पिछले इम्तहानों के कोई नम्बर नहीं होंगे उनको सिर्फ अगली कक्षा में प्रोन्नत किया जाएगा। क्या पता आगे चलकर ऐसे बच्चों की डिवीजन कोरोना डिवीजन कहलाये। बच्चे बतायेंगें -'हम कोरोना डिवीजन में पास हुए हैं।'
होशियार बच्चे थोड़ा दुखी होंगे कि उनके नम्बर कम हुए। 100 प्रतिशत की आशा रखने वाले बच्चे को शायद कम नम्बर मिलें। अखबार में खबर, फोटो इंटरव्यू की आस वाले बच्चे भी निराश होंगे।
इससे अलग बड़ी संख्या उन बच्चों की भी है जो कोरोना की कृपा हाईस्कूल या इंटर पास कर जाएं। जो बच्चे कई सालों से इम्तहानों की देहरी न लांघ पाए वो कोरोंना काल में अगली कक्षा में पहुंच जाए। ऐसे लोग कोरोना के शुक्रगुजार होंगे।
हमारे जान पहचान में ऐसे कई बच्चे हैं जो वर्षों की मेहनत के बावजूद अगली कक्षा में नहीं जा पाये। कोरोना कृपा से वे अब सफल कहलायेंगे। भले ही कोई कहे कि कोरोना के चलते पास हुए वरना फेल हो जाते। लेकिन कहने से क्या होता है। कहलायेंगे तो पास ही भले ही डिवीजन कोरोना डिवीजन हो। बकौल परसाई जी -'अपनी बेइज्जती में दूसरे को शामिल कर लेने से बेइज्जती आधी हो जाती है।' यह तो लाखों लोग शामिल हो गए साथ। बेइज्जती धुंआ-धुंआ हो गयी।
कोरोना डिवीजन ने सिर्फ पास होने का रास्ता नहीं खोला है। इसने तमाम लोगों की रोजी-रोटी और नौकरी बचाने का रास्ता भी बनाया है। कई विभागों में अनुकम्पा के आधार पर नौकरी पाने वालों को हाई स्कूल पास होना अनिवार्य होता है। नौकरी लगने के पांच साल में हाईस्कूल पास न होने की स्थिति में नौकरी से निकाल दिए जाने का प्रावधान होता है। कोरोना डिवीजन ऐसे तमाम लोगों के लिए वरदान की तरह है जो कई प्रयासों के बाद अब यह सोचने लगे थे -'नौकरी छूटने के बाद क्या करेंगे?'
ऐसा एक उदाहरण हमारी निर्माणी में ही है। उसको नौकरी मिले पांच साल होने वाले थे। अभी तक के हाल देखकर यही लगता था कि उसकी नौकरी अब बस चन्द महीने की ही मोहताज है। लेकिन कोरोना काल में लोगों को प्रोन्नत करने के निर्णय से लगता है वह भी प्रोन्नत हो जाएगा। उसकी नौकरी बच जाएगी और वह जिंदगी भर इसके लिए शायद कोरोना का शुक्रगुजार हो।
आपदाएं किसी के लिए वरदान भी लेकर आती हैं।
पास होने के लिए मोहताज लोगों के लिए कोरोना डिवीजन एक वरदान की तरह है। उनके दिन फिर गए इस वरदान से।
जैसे उनके दिन बहुरे वैसे सबके बहुरे।

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