Saturday, October 12, 2024

शरद जोशी के पंच -13

 1.   भारत व्यवस्थित रूप से अव्यवस्थित देश है। यहाँ आप जहां-जहां व्यवस्था देखेंगे,वहीं-वहीं अव्यवस्था उतनी अधिक देखेंगे। आप निश्चित नहीं कर पाएँगे कि आप जो देख रहे हैं ,उसमें व्यवस्था क्या है और अव्यवस्था कितनी है।

2.  जहां बिना हड़ताल का डर बताए मज़दूरों को मंहगाई-भत्ता न देना रिवाज बन गया है, जहां मध्यम तबके के कर्मचारी कभी इज्जत नहीं पाते और जहां मैनेजमेंट कभी मानवीय दृष्टि से नहीं देखता ,वहाँ आप जापान छोड़ कोरिया के बराबर नहीं पहुँच सकते। 

3. शिकायत की जाती है कि भारतवासी से पूरी तरह काम लेना कठिन है। पर कोई भारतवासी पूरी शक्ति से अपना श्रेष्ठ दे सके इसका बुनियादी इंतज़ाम भी नहीं है।  

4. इस देश में मज़दूर को मजूरी करना आता हो या नहीं ,अफ़सर को अफ़सरी करना ख़ूब आता है। और इस अफ़सर में मानवीय तत्व का नितांत अभाव है।

5. इसे देश में बड़े पायेदार नेताओं की दो ही दुर्दशाएँ हैं। वे केंद्र में रहकर अपने राज्य के नाम पर रोते-झींकते रहें या राज्य के मुख्यमंत्री बन केंद्र के चरण पखारते रहें। 

6. अधिक दहेज देना अपनी बहन या अपनी बेटी को अपने जीवन से सदा के लिए काट देने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। 

7. प्राचीनकाल में लड़कियाँ ब्याह देने के बाद भारतीय बाप वानप्रस्थ आश्रम में पड़ा संन्यास आश्रम के बारे में सोचने लगता था। कारण स्पष्ट है, नंगे को फ़क़ीर बनने की प्रेरणा आसानी से मिलती है। 

8. महानगर का अर्थ गगनचुंबी इमारतें होता है, झोपड़ी नहीं। अमीरों को नौकर चाहिए पर नौकरों को घर दिए जाएँ ,यह मुनाफ़ों के अर्थशास्त्र के अनुकूल नहीं। ज़मीन की क़ीमत आदमी से ज़्यादा है। इमारत की क़ीमत इंसानियत से ज़्यादा है। 

9. बम्बई बिल्डरों, मालिकों और धंधेबाज़ों का शहर है। हर कार्यालय उसकी एजेंसी है। रईसों का स्वार्थ जब व्यक्त होता है ,वह नगर की सुंदरता की बात करता है। वह नगर के पाप कम करने का जेहाद नहीं छेड़ता, वह नगर की सुंदरता की लड़ाई छेड़ता है। 

10. जब सब बरबाद हो चुकेगा ,तब नेता अपने बिलों से निकलेंगे, दुःख-दर्द सुनेंगे, जुल्म पर आश्चर्य करेंगे। आश्वासन देंगे। तब राजनीति चालू होगी। गरीबों की सहानुभूतियां  बटोरी जाएँगी ताकि वोटों की फसल उस मैदान से भी काटी जा सके ,जहां कभी झोंपड़े थे। 



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