Alok Puranik पर केंद्रित किताब आलोक पुराणिक- व्यंग्य का एटीएम की छापे की कमियों को देखते हुए सब लेख फिर से पढ़े। आलोक पुराणिक जी के इंटरव्यू फिर से पढ़े। अपनी बातचीत में उन्होंने उन लेखकों का ज़िक्र किया था जिनके लेखन से वे प्रभावित रहे। उनमें एक नाम बेहराम कॉन्ट्रैक्टर, जो कि बिजीबी (Behram Contractor, Busybee) के नाम से प्रख्यात थे का ज़िक्र था। परिचय के लिए टिप्पणी में लिंक देखिए।
बिजीबी ((1930 - 9 अप्रैल 2001) अंग्रेज़ी में लिखते थे। अपनी लगभग 35 साल के लेखन में शुरुआती लेखन उन्होंने द फ्री प्रेस जर्नल , द टाइम्स ऑफ़ इंडिया ( बॉम्बे ) और मिड-डे रहते हुए किया । फिर उन्होंने 1985 में अपना अख़बार शुरू किया द आफ़्टरनून डिस्पैच एंड कूरियर (The afternoon Despatch and Courier)। इस अख़बार में बिजीबी का स्तम्भ 'राउंड एंड अबाउट' (Round and about) अखबारी के आख़िरी पन्ने पर बाएँ कोने पर छपता था। बिजीबी के लेखन की लोकप्रियता ही थी कि पाठक अख़बार पीछे से पढ़ना शुरू करते थे। इसी तरह की बात लोग शरद जोशी जी के स्तम्भ प्रतिदिन के बारे में भी कहते हैं कि उनका लिखा पढ़ने के लिए लोग अख़बार पीछे से पढ़ना शुरू करते थे।
शरद जोशी जी के 'प्रतिदिन' को पसंद करने वाले पाठकों को बिजीबी को भी पढ़ना चाहिए।
आलोक पुराणिक से पहली बातचीत ,जिसमें उन्होंने बिजीबी का ज़िक्र किया था, 2006 में हुई थी, लगभग अठारह साल पहले। कई बार उस बातचीत और बाद की बातचीतों को भी देखा था जिसमें भी बिजीबी का ज़िक्र था। लेकिन उनके बारे में जानने की ज़हमत नहीं उठाई। इस बार पुराने इंटरव्यू देखे तो उत्सुकता हुई कि पता करें कि ये बिजीबी कौन हैं जिनके लेखन से आलोक पुराणिक जी प्रभावित हैं।
नेट पर खोज की तो पता लगा कि बिजी बी तो बीहड़ लेखक रहे। उनके लेखन के मुरीद बड़े बड़े लोग रहे हैं ख़ुशवंत सिंह, शोभा डे, मारियो पूजो और तमाम पाठक भी। बिजी बी नियमित लिखते थे। चार सौ-पाँच सौ शब्दों के लेख। 35 साल तक नियमित लिखना अपने में सिद्ध लेखक का काम है। उनका लेखकीय नाम बिजीबी का मतलब (कोई ऐसा व्यक्ति जो बहुत सक्रिय या मेहनती हो ) भी उनके काम के अनुरूप था। उनके लेखन सहज आम इंसान को समझ में आने वाली भाषा में है।मज़े-मज़े में बड़ी बात कह जाने का हुनर।
अटल बिहारी बाजपेयी जी प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने मज़े लेते हुए लिखा, " बाजपेयी जी का परिवार न होने के कारण सबसे बड़ा लफड़ा यह है कि लोग अपना काम किसके ज़रिए करवाएँ।" राजनीति में किसी का पक्षधर न होते हुए, बिना कटु हुए, सबसे मज़े लेते हुए लिखना बिजीबी के लेखन की ख़ासियत है।
काफ़ी देर बिजीबी के बारे में जानकारी लेने के बाद उनका कुछ लेख भी पढ़े। देखा तो उनकी किताबें भी आनलाइन दिखीं। उनके परिचय और लेखन से प्रभाव कुछ ऐसा कि जितनी किताबें दिखीं सब ख़रीद लीं। कुल जमा सात किताबें। सब किताबें क़रीब एक हज़ार की पढ़ी। चार-चार सौ पेज की किताबें डेढ़ सौ रुपए की। सुंदर छपाई। बढ़िया काग़ज़।
किताबें ख़रीदने का अपना यही अन्दाज़ है। किसी किताब या लेख़क के बारे में अच्छा सुनते हैं तो फ़ौरन किताब ख़रीदने का मन करता है कि किताब ख़रीद ली जाए। तमाम किताबें ऐसी हैं जो ख़रीद लीं। आने पर उलट-पलट के थोड़ी बहुत पढ़ के रख ली हैं। कुछ पढ़ भी लीं। जो नहीं भी पढ़ीं उनके बारे में लगता है कभी पढ़ेंगे। कभी भी यह अफ़सोस नहीं होता कि ये किताब बेकार ख़रीदी। किताबें समृद्धि और सुकून का एहसास दिलाती हैं।
बहरहाल बात हो रही थी बिजी बी की। बिजीबी के लोकप्रिय और नियमित लेखन को समय पर करने के हिमायती थे। बिजीबी का ज़िक्र करते हुए प्रख्यात लेखिका शोभा ड़े ने लिखा है ,"and the one thing he had taught me was to keep my nose down and get on with it. A job has to be done. And please ...no fuss. Keep it zippy.Keep is simple. And make that fast. Deadlines were deadlines." (और एक चीज़ जो उन्होंने मुझे सिखाई वह यह थी कि अपनी नाक नीची रखनी है और आगे बढ़ना है । काम तो करना ही है और कृपया...कोई झंझट नहीं। इसे ज़िप्पी (जीवंत) रखें। आसान रखें। और इसे जल्दी करो। समय पर काम करना ही है।)
बिजीबी को भारत का आर्ट बुचवाल्ड (Art Buchwald) बताया गया। बिजीबी आर्ट बुचवाल्ड के प्रशंसक थे। आलोक पुराणिक बेहराम कॉन्ट्रैक्टर के प्रशंसक हैं। अपन आलोक पुराणिक को पसंद करते हैं। पसंदगी की चेन चल रही है।
आलोक पुराणिक जी ने बेहराम कॉन्ट्रैक्टर से लेखन में क्या सीखा यह वे बताएँगे लेकिन काम को समय पर करने का सलीका और बिना किसी लफड़े में पड़े लिखने के गुर जरुर सीखे। यही वजह रही क़ि वे वर्षों तक अख़बारों में नियमित लिख सके। आलोक पुराणिक कहीं भी, किसी भी जगह बैठकर समय पर लेखन पूरा करके अख़बारों, पत्रिकाओं को दे देते हैं।
बेहराम कॉन्ट्रैक्टर के बारे में फ़िलहाल इतना ही। बाक़ी फिर उनको और पढ़ने के बाद।
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