Friday, July 18, 2025

भुल्लकड़ी के बहाने

कल रात देर तक बारिश हुई। तेज बारिश। सुबह -सुबह कालोनी के सारे ब्लॉक धुले-धुले लगे। ऐसा लगा उनको धोकर सुखाने के लिए टाँग दिया गया हो। मकानों के फोटो लेते हुए सोचा कि क्या पता उनको भी बुरा लगता हो कि बिना पूछे उनके फोटो ले लेते हैं लोग। क्या पता कोई ब्लॉक यह सोचकर भी एतराज करता हो कि ख़ुद तो कपड़े पहनकर घूमते हैं , हमको बिना कपड़े खड़ा रखते हैं जालिम इंसान लोग। हो सकता है इस पर कोई दूसरा ब्लॉग उसको समझाता हो -"अरे हमारे ऊपर ये प्लास्टर, पेंटिंग ही तो हमारे कपड़े हैं।" 

बगल के स्कूल में लोग अपने बच्चों को भेजने के लिए आते दिखे। हर दूसरा बच्चा कार से आता दिखा। कारों की भीड़ स्कूल के सामने, गली में हर जगह है। सड़क पर कारों का जाम सा लग गया। 

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार हजारों स्कूल बंद कर दिए। कारण बताया गया कि स्कूल में बच्चे नहीं हैं। क्या पता सरकार आने वाले समय में संभावित जाम से बचने के लिए स्कूल बंद करा रही हो। सरकारें वैसे भी बहुत दूरदर्शी होती हैं। 

टहलते हुए अक्सर दोस्तों, साथ काम करने वालों और सीनियरों से बात हो जाती है। हाल-चाल पता हो जाते हैं। पुराने लोगों से बात करते हुए उनसे पुरानी यादें साझा होती हैं, नयी जुड़ती हैं। जिनसे भी हमारे संबंध रहते हैं उनसे जुड़ी कुछ यादें हमारे ज़ेहन में होती हैं, कुछ अच्छी, कुछ बुरी। जिन लोगों के साथ केवल खराब यादें ही जुड़ी होती हैं आम तौर पर हम उनसे बाद में भी संबंध नहीं रखना चाहते। जिनसे संबंध बने रहते हैं उनसे जुड़ी कोई न कोई याद होती है जिसका जिक्र करके बात आगे बढ़ती है। कई बार दो मित्र एक-दूसरे को अलग-अलग यादों के सहारे याद करते हैं। 

घूमते हुए उसी पैदल ब्रिज पर आए जिस पर रात भी चढ़े थे। उसी जगह पर खड़े होकर आती-जाती गाड़ियाँ देखीं जहाँ से कल देख रहे थे। सड़क वही थी लेकिन सुबह का नजारा रात के नजारे से अलग था। जो गाड़ियाँ कल आती-जाती दिखीं थीं आज वाली उनसे अलग होंगी। कुछ देर गाड़ियों को देखने के बाद नीचे उतर आए।

तिराहे पर जहाँ कबूतर बैठते हैं कुछ लोग दाना डाल रहे थे। लेकिन कबूतर वहाँ नहीं थे। वे वहीं पास ही ऊपर की रेलिंग पर बैठे थे। सुबह का नाश्ता करने के बाद उनका पेट भरा था शायद इसीलिए वे दाने को देखते हुए भी आराम से ऊपर ही बैठे रहे। इंसान और जानवर यही अंतर होता है। कबूतर की जगह इंसान होते तो दाने समेट के अंदर रख लेते। आगे काम आयेंगे, सोचते हुए।

पार्क के पास एक दुकान में हर सब्जी/फल के दाम लिखे दिखे। पहली दुकान देखी जहाँ सब्जियों के दाम लिखे थे। लेकिन कुछ सामानों के  दाम अपडेट नहीं लगे। आम भी 59/- रुपए किलो, धनिया भी इसी तरह भाव। 

पार्क में टहलते हुए उन बुजुर्ग की याद आयी जिनकी मोटरसाइकिल नहीं मिल रही थी। पता नहीं मिली होगी कि अभी तक खोज रहे होगे, गाड़ी को गरियाते हुए। 

आजकल तो हर सामान के साथ चिप का जुगाड़ हो रहा है। भूल जाओ तो पता चल जाएगा कि कहाँ है सामान। नयी गाड़ी खरीदी थी तो कुछ दिन तक यह देखते रहना हमारा शग़ल था कि गाड़ी अभी किधर है ? 

लेकिन ये याददाश्त का भी अजब लफड़ा है। याद आते-आते गुम हो जाती है। दुनिया के तमाम काम आजकल पासवर्ड के सहारे चलते हैं। अक्सर भूल जाते हैं। क्या पता केन्द्रीकरण के समय में आने वाले समय में सारे पासवर्ड की कुंजी किसी एक के पास पहुँच जाये और वो उसे भूल जाते। ऐसा होगा तो दुनिया के तमाम काम-धंधे ठहर जाएँगे। 

क्या पता दुनिया बनाने वाले सर्वशक्तिमान जब दुनिया को देखता हो तो इसमें सुधार के बारे में सोचता हो। लेकिन क्या पता उसको भी अपना पासवर्ड बिसरा गया हो। याद ही न आ रहा हो। इसी के चलते दुनिया के तमाम गरीबों, असहायों की प्रार्थनाओं पर कोई कारवाई न कर पाता हो। अपने सच्चे भक्तों पर दुष्टों की बदमाशियाँ चुपचाप देखता रहता हो। क्या पता इसी किसी चक्कर में कोई नया अवतार न हो पा रहा हो। प्राणियों का उद्धार अटका हुआ हो। क्या पता सर्वशक्तिमान की यह भुलक्कड़ी अस्थायी हो । कुछ दिन बाद उसे सब कुछ याद आ जाये और वह अपनी दुनिया को ठीक कर दे। लेकिन क्या पता सर्वशक्तिमान भी अल्जाइमर जैसी किसी तकलीफ़ के चपेटे  में आ गया हो जिसका कोई इलाज उसके यहाँ भी न हो और वह भी  अपने किसी सर्वशक्तिमान को याद कर रहा हो। 

क्या पता भूलने की बीमारी का आने वाले समय में कोई इलाज निकल आए। इंसान के दिमाग़ का  नियमित अंतराल पर बैकअप लेते रहने का हिसाब बन जाये जैसे कम्प्यूटर नेटवर्क का लिया जाता है। जब किसी इंसान के याददाश्त गड़बड़ाए तो उसके दिमाग़ का मदरबोर्ड बदल दिया जाये। सारी यादें नए मदरबोर्ड में फिट करके याददाश्त का मामला टनाटन कर दिया जाये। 

क्या होगा आने वाले समय में यह तो बाद में पता चलेगा। अभी तो जरा देख लें चश्मा कहाँ रखा है। मोबाइल किधर है? 




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