Thursday, March 16, 2006

आइडिया जीतू का लेख हमारा

http://web.archive.org/web/20110101193726/http://hindini.com/fursatiya/archives/113

आइडिया जीतू का लेख हमारा

कली-भौंरा वार्तालाप सुनकर जीतेंदर सबसे तेज चैनेल की तरह  भागते हुये सबसे नजदीक के थाने पहुंचे। थानेदार से मिले। बोले -हमारे आइडिये की चोरी हो गयी है। हम रिपोर्ट लिखाना चाहते हैं।
थानेदार बोला-अरे लिख जायेगी रिपोर्ट भी। पहले तफसील से बताओ। कित्ता बड़ा आइडिया था? कौन से माडल का था?ये स्वामीजी की भैंस भी चोरी गयी है। ये देखो ये है फोटो। इसी तरह से था कि कुछ अलग?
जीतू बोले-ये देखो मैं पूरा प्रिंट आउट लाया हूं। ये लेख है। इसी में मेरा आइडिया लगा दिया गया है।
थानेदार बोला- तुम्हारा आइडिया भी सोना-चांदी की तरह हो गया है क्या? इधर चोरी हुआ उधर गला दिया गया!किसने चुराया आइडिया? किसी ने चोरी करते देखा उसे?कहां रखा था?
जीतू बोले-ये मेरा दिमाग में था।शुकुल ने चुराया। देखने को तो किसी ने देखा नहीं लेकिन है  हमारा ही।
थानेदार ने जीतू को सर से पेट तक देखा ।बाकी का छोड़ दिया।बोला- कोई सबूत है कि ये आइडिया तुम्हारा ही है। कोई स्टिंग आपरेशन का टेप वगैरह है जिसमें तुम्हारे आइडिये की चोरी किये जाने की हुये फोटो हो?
मियां-बीबी-बच्चा
इतना हाईटेक दरोगा देखकर जीतू की ऊपर की सांस ऊपर ही रह गयी। नीचे की नीचे निकल गयी। लेकिन वाणी ने साथ दिया तथा वे हकलाते हुये बोले-
साहब बात यह है कि आप देख ही रहे हैं कि ये जो भौंरा-तितली संवाद लिखा गया है उसमें निहायत बेवकूफी का आइडिया इस्तेमाल किया गया है और यह बात सारी दुनिया जानती है कि बेवकूफी की बात करने का आधिकारिक कापीराइट मेरे ही पास है। मेरे अलावा इतनी सिरफिरी बातें सोचने का माद्दा किसी के पास नहीं है। यहां तक कि कविता लिखने वाले ब्लागर तक इतनी सिरफिरी बात नहीं सोच सकते। लिहाजा यह तो तय है कि आइडिया मेरा ही है। आप जल्दी से रिपोर्ट लिखकर कापी मुझे दे दीजिये ताकि उसका स्कैन करके मैं नेट पर डाल दूं।
थानेदार ने कोने में ले जाकर जीतू से पता नहीं क्या कहा कि वे चुपचाप नमस्ते कहकर वापस आ गये।
कुछ लोग कहते हैं कि थानेदार ने जीतू से रिपोर्ट लिखने के १०० रुपये मांगे थे लेकिन मुफ्त के साफ्टवेयर प्रयोग करने के आदी हो चुके जीतू इसके लिये तैयार नहीं हुये।
कुछ दूसरे लोग कहते हैं कि जीतू से थानेदार ने कहा कि यह बात मान ली ये आइडिया तुम्हारा होगा लेकिन उसका उपयोग अकलमंदी से हुआ है लिहाजा उस पर तुम्हारा हक नहीं बनता।जहां तक बेवकूफी की बात पर तुम्हारे कापीराइट का सवाल है तो जान लो कि देश एक से एक धुरंधर बेवकूफों से भरा पड़ा हैं। केवल तुम्हारी बेवकूफी के भरोसे रहते तो न जाने कब देश हिल्ले लग गया होता।केवल खुद को बेवकूफ समझने की बात सोचना ही निहायत बेवकूफी की बात है।
जीतू थाने से निकलकर फुरसतिया के यहां पहुंचे। फुरसतिया होली के रंग में रंगे बैठे थे। जीतू ने बतियाना शुरू किया-
अनन्य
गुरू बहुत सही लिखे हो लेकिन ये कुछ लोगों को टाइटिल दिया कुछ को नहीं दिया ये क्या नाइंसाफी किये हो?
फुरसतिया, जो थानेदार से हुयी सारी बातें थानेदार से फोन से सुन चुके थे, आंख मूंदे हुये ही बोले- दे देंगे टाइटिल भी यार। टाइटिलै तो है कउनौ पदमश्री तो है नहीं जो जनवरी में ही देना हो।
जीतू बोले-है कैसे नहीं देखो अमित का जब तक नाम नहीं दिखा तब तो वो परेशान रहे। जब नाम दिखा तब चैन मिला।
फुरसतिया बोले- मतलब हमारा टाइटिल न हो गया देवरहा बाबा का लात हो गयी। जिसके पड़ गयी वो धन्य !
जीतू बोले- तुम यार,हमेशा उल्टी ही बात सोचते हो। सबके साथ बराबर का सलूक करना चाहिये। सबके बारे में लिखना चाहिये।
फुरसतिया-किसके-किसके बारे में लिखें? अब देखो आज इन्दौर में पुलिस अधिकारी पांडा नाचते हुये देखे गये। उनके दो मिनट के नाच को चैनेल वाला घंटों दिखाता रहा।
जीतू बोले-लेकिन तुम हमें काहे नचा रहे हो? जो लिखना हो लिखो हम चलें।
फुरसतिया मौज लेते हुये बोले- जीतू भइया तुम भी पूरे हैंड पंप हो। दो फुट जमीन के
ऊपर तो सौ फुट नीचे। चाहते हो हम लिखें ताकि तुम सबको भड़का सको। बाद में हम
कुछ कहेंगे तो  हेंहेंहें करते हुये कहोगे नाराज होते हो।
बहरहाल तमाम फालतू बातों के बाद कुछ और  लोगों के बारे में टैरो कार्ड के अंदाज में
टाइटिल लिखे गये। जो यहां दिये जा रहे हैं।
जिनके छूट गये वे समझें कि वर्णनातीत हैं। साथ की फोटो हमारी ही हैं। डराननी लगें
तो आंख मूंद के देखें डर की मात्रा कम हो जायेगी।
तरुन:-
हर तरफ फैला उजाला, हर कली खिलने लगी,
इक निठल्ली सी हवा, हर तरफ बहने लगी।
रजनीश मंगला:-
चिट्ठों का छापा किया ,नारद का अवतार,
हिंदी में छापत रहो, होगा खूब प्रचार ।
संजय विद्रोही
सीधे-सीधे खड़े हुये हो,फिर काहे को डरे हुये हो।
मासूमों से दिखते हो,विद्रोह भाव से भरे हुये हो।
 दीपशिखा:-
अल्पविराम है चिट्ठा,पूर्णविराम से लेख,
महीने में एक लिखें,कैसे निकाले मीन-मेख!

नितिन बागला 
लातों के भूत हैं बातों से ही मान जाइये,
इन्द्रधनुष दिखा नहीं जरा लिख के दिखाइये।


जयप्रकाश मानस:-
मानसजी अब तो आप ही लिखो,ब्लागिंग का इतिहास,
मानसी की खुब तारीफ की,बाकियों को भी डालें घास।


अभिनव:-
गोली देकर नींद की,  पत्नी को दिया  सुलाय,
ज्यादा यदि खा गयी वो ,हो अंदर जाओगे भाय।

हिंदी ब्लागर:-
बढ़िया-बढ़िया लेख तो देते हो पढ़वाय,
अपने बारे में जरा कुछ और बतायें भाय!

विजय वाडनेरे:-
ये काम नहीं आसां, ये तो समझ गये,
सिर्फ इतना बताने को सिंगापुर चले गये!

आलोक:-
बंगलौर की बाकी भारत से,तुलना करा दिया,
लोग पूछते हैं ये कैसे लिखा,कितना समय लिया!

अतुल श्रीवास्तव:-
मिलें विधाता गलीं में,पकड़ कहूंगा हाथ,
इतना गंदा देश मेरा,काहे बनाया नाथ?
कालीचरण-भोपाली:-
हांका-बाजी बंद है, काली जी महाराज,
देख बसंती क्या हुआ,मौज-मजे या काज?
राकेश खण्डेलवाल:-
कैद सरगम दर्द की शहनाइयों में रो रही है,
खुशनुमा सा गीत छलके,मस्त होली हो रही है।
सुनील दीपक:-
जो कह न सके वो तो पढ़ना अच्छा लगता है,
लिखना सुंदर,फोटो सुंदर, सबकुछ बढ़िया लगता है।
अनुनाद सिंह:-
हिंदी का झण्डा गगन में ऐसे ही फहराते रहिये,
इधर-उधर से जो कुछ पाओ,यूं ही सजाते रहिये।
अनूप भार्गव:-
हथेली पे सूरज
 उगाया है तुमने,प्यार भी बहुत फैलाया है तुमने,
लफड़े भी कम नहीं किये भैये,सामांतर रेखाओं को मिलवाया है तुमने।
रामचन्द्र मिश्र:-
फोटो वाला ब्लाग है,ये तो अच्छा महाराज,
चेहरा रोज बदलता,इसका है क्या राज।
विनय जैन:-
बिना ब्लाग के ब्लागर हैं ये, लिखने को उकसाते रहते हैं,
खुद तो बस पढ़कर खुश रहते हैं,सबसे लिखवाते रहते हैं।
लेख पोस्ट करके देखा गया कि जीतू टिप्पणी लिखने के लिये फूट गये हैं।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

16 responses to “आइडिया जीतू का लेख हमारा”

  1. विनय
    और फुरसतिया को ये मेरी गुलाल -
    बड़े दमदार हैं ये, बड़े उस्ताद हैं
    लिखने में हैं धुरंधर, बातों में भी घाघ हैं
    हम तो प्रशंसक ठहरे, जीतू जी भी मानते हैं ;)
    हिंदी चिट्ठों के तो ये सचिन हैं, अमिताभ हैं
  2. Manoshi
    सबके लिये टाइटल लिख पाने का करेज रखने व सबके लिये समय निकाल कर लिखने के लिये ‘वाह’। जीतु जी बिचारे…कभी तो छोड दिया करें उन्हें। :-)
  3. अभिनव
    अनूप फुरसतिया भए, अनुपम इनकी बात,
    परसाई, श्रीलाल की दिखे छवि दिन रात,
    दिखे छवि दिन रात धकाधक ब्लाग बनाते,
    शब्दों का भण्डार अनोखा खेल सजाते,
    कह अभिनव कवि खिले सदा खुशियों की धूप,
    जग में ध्रुव तारे से चमकें सदा अनूप।
  4. sanjay | joglikhi
    हमारे बारे में लिखा हैं क्या, जो कोमेंट दे..;) (यह होली का वह गुब्बारा हैं जो लगता हैं पर फटता नहीं.)
    वाह! अपनी बिना मेकअप वाली फोटो भी संलग्न की हैं, अच्छे लग रहे हो.
    होली की रंग भरी शुभकामनाएं.
  5. जीतू
    अबे! होली के मौसम मे तो कम से कम बख्श दो। अब तो लगता है एक बार विशेष रुप से तुम्हारे लिये भारत यात्रा करनी पड़ेगी।
    फुरसतिया जी तो उस महबूब की तरह हैं कि जिसकी गालियां भी फूलों की तरह लगती है।दिए जाओ,दिये जाओ, किसी दिन एक साथ वसूल लेंगे।
  6. आशीष
    नजर बचा बचा कर ब्लागीये,लिखिये नजर बचाये
    जाने किस मोड पर शुकुल देव मिल जाये
    शुकुल देव मिल जाये, कर दे खूब चिकायी
    कर दे खूब चिकायी, शुकुल देव मंद मंद मुस्कायी
    चिकायी कहां मूढ बालक, हम तो मौज ले रहे है भाई
    वैसे फुटवा मे फटफटीया अच्छी लग रही है :-)
  7. प्रत्यक्षा
    हम तो सोच रहे थे कि फव्वारे के रंगीन पानी के नीचे, होली खेलते हुये तस्वीरें होंगी. एक पंथ दो काज !
    होली की मस्ती मस्त रही
  8. विजय वडनेरे
    हमें तो जो सुझा हमने उसे ही लिख मारा,
    जीतू जी के सुझावों ने हमारे ब्लाग को भी तारा,
    ब्लाग ने तो दे दिया हमारी कुलबुलाहट को एक सहारा,
    वरना तो मैं बेचारा,
    था नून तेल लकडी के बोझ का मारा,
    पर लगा बडा ही अच्छा
    जब पढा टाईटल हमने हमारा,
    सिंगापुर तो छोटी-सी जगह है
    पर अब लगता है सारा ब्लाग जगत हमारा!!
    बहुत बहुत धन्यवाद अनुप भाई!
  9. भोला नाथ उपाध्याय
    बहुत अच्छा लिखा भाई साहब, मज़ा आ गया। ये स्वामीजी की भैंस प्रेम की क्या कथा है? वैसे उनका भैंसप्रेम तो “कोईली” प्रकरण में भी परिलक्षित हुआ था, जब नाम सुनते ही उन्हें यह इतना पसन्द आया था कि फटाफट इस नाम से ब्लॉग बना डाला था(गुस्ताखी के लिये क्षमा याचना)। होली की ढेर सारी शुभकामनायें ।
  10. फ़ुरसतिया » मुट्ठी में इंद्रधनुष
    [...] भोला नाथ उपाध्याय on आइडिया जीतू का लेख हमाराविजय वडनेरे on आइडिया जीतू का लेख हमाराप्रत्यक्षा on आइडिया जीतू का लेख हमाराआशीष on आइडिया जीतू का लेख हमाराजीतू on आइडिया जीतू का लेख हमारा [...]
  11. फुरसतिया » तोहरा रंग चढ़ा तो मैंने खेली रंग मिचोली
    [...] आज की फोटो-कार्टून तरकश से लिये गये हैं। कार्टून का पूरा मजा लेने के लिये और होली के टाइटिल देखने के लिये तरकश देखिये। मेरी पसंद में आज आपके लिये भारत के प्रख्यात शायर ‘ प्रोफेसर वसीम बरेलवी’ का गीत खासतौर से तमाम टेपों के बीच से खोजकर यहां पोस्ट किया जा रहा है। हमारी पिछले साल की होली से संबंधित पोस्टें यहां देखिये:- बुरा मान लो होली है भौंरे ने कहा कलियों से आइडिया जीतू का लेख हमारा [...]
  12. फुरसतिया » जीतेंन्द्र, एग्रीगेटर, प्रतिस्पर्धा और हलन्त
    [...] इसके बाद तो तमाम खिंचाई-लेख लिखे गये जो सिर्फ़ और सिर्फ़ जीतू पर केंद्रित थे। ये हैं- १. जन्मदिन के बहाने जीतेन्दर की याद २. गरियाये कहां हम तो मौज ले रहे हैं! ३. आइडिया जीतू का लेख हमारा ४. अथ कम्पू ब्लागर भेंटवार्ता [...]
  13. जीतेंन्द्र चौधरी के जन्मदिन पर एक बातचीत
    [...] २. गरियाये कहां हम तो मौज ले रहे हैं! ३. आइडिया जीतू का लेख हमारा ४. अथ कम्पू ब्लागर भेंटवार्ता ५. [...]
  14. LanseloT
    {Читаю {ваш|этот|} блог, и понимаю, что {ничего|нифига} не понимаю. Все так запутано. :)
  15. Адриан
    Интересно! Надеюсь продолжение будет не менее интересным…
  16. जीतू- जन्मदिन के बहाने इधर उधर की
    [...] २. गरियाये कहां हम तो मौज ले रहे हैं! ३. आइडिया जीतू का लेख हमारा ४. अथ कम्पू ब्लागर भेंटवार्ता ५. [...]

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