Monday, April 25, 2011

फ़टाफ़ट क्रिकेट में चीयरबालाओं की स्थिति

http://web.archive.org/web/20140419213952/http://hindini.com/fursatiya/archives/1974

फ़टाफ़ट क्रिकेट में चीयरबालाओं की स्थिति


चीयरलीडरानियां
कभी क्रिकेट सभ्य लोगों का खेल माना जाता था। खिलाड़ी सफ़ेद पोशाक में सभ्य लोगों की तरह खेलते थे। आज खिलाड़ी सफ़ेद पोशाक तो नहीं ही पहनते हैं। वे ऐसी कोई हरकत भी नहीं करते जिसके उन पर सभ्य होने का इल्जाम लगाया जा सके। अक्सर गेंदबाज आउट करके बल्लेबाज को ऐसे देखता है जैसे अगर वह क्रीज से न गया तो उसका खून पी जायेगा। बल्लेबाज ज्यादा रन बनाकर बल्ला कुदाल की तरह ऐसे घुमाता है कि देखकर लगता है अगर गेंदबाज दूर न खड़ा हो तो उसका सर फ़ट ही जाये।
पहले क्रिकेट में पूरे मैच में दो-चार छक्के लगते थे। दिन भर में कुल जमा दो-तीन सौ रन बनते थे। आज फ़टाफ़ट क्रिकेट का जमाना है। मैच में लगने वाले चौवों-छक्कों की संख्या देश में घपलों-घोटालों की तरह बढ़ गयी है। जैसे देश में किसी भी योजना में कोई भी घपला हो सकता है वैसे ही बल्लेबाज किसी भी गेंद पर छक्का मार देता है। जिस पिच से दिन भर में पसीना बहाकर खिलाड़ी तीन सौ रन पैदा कर पाते थे उसी पिच से दोनों टीमें मिलकर आधे दिन में चार-साढ़े चार रन बटोर लेती हैं।
पहले खिलाड़ी पिच पर आकर उसका व्यवहार देखते थे। मिजाज भांपते थे। टिकते थे। पिच को बल्ले से आहिस्ते से ठोंकते थे। इसके बाद दायें देखते थे। बायें निहारते थे। क्रीज पर खड़े होकर गेंद का इंतजार करते थे। कभी-कभी गेंदबाज के दौड़ना शुरु करने के बाद क्रीज से हट जाते थे। गेंदबाज हिन्दमहासागर से अमेरिका सातवें बेड़े की तरह वापस लौट जाता था। बल्लेबाज साइड स्क्रीन इधर-उधर हटवाते थे। गेंदबाज फ़िर से गेंद पर थूक लगाकर पैंट पर रगड़ता था। गेंद फ़ेंकता था ऊऊऊंह करते हुये। बल्लेबाज गेंद खेलकर विकेट के आसपास टहलते थे। फ़िर अगली खेलते थे। उसके बाद फ़िर अगली। अक्सर बल्लेबाज गेंद को आदर के साथ वापस खेल देता था। या फ़िर ऐसी जगह भेज देता था गेंद को ताकि वह खोये नहीं, गेंदबाज के पास सुरक्षित वापस पहुंच जाये। इसके बाद बल्लेबाज का किसी गेंद पर दिल आ गया तो रन बना लेता था। और ज्यादा मन किया तो एकाध चौका मारकर संतोष कर लेते थे। कभी-कभी बहुत मूड खराब हुआ तो दिन भर में एकाध छक्का भी मार देते थे। इस बीच वे दूसरी टीम के खिलाड़ियों से हंसी-मजाक भी कर लेते थे।
लेकिन आज मामला उलट गया है। खिलाड़ी पिडारियों की तरह पहली ही गेंद से रन लूटने लगते हैं। न हेल्लो, न हाय। न हाउ डु यू डू न केमछो। न भालो! बस पहली गेंद से ही मार-पीट शुरु। कभी-कभी किसी बल्लेबाजों को देखकर तो लगता है कि कोई अफ़सर मलाईदार पोस्ट की कीमत चुकाकर आया है। जित्ती जल्दी हो सके माल काट लेना चाहता है। पोस्टिग के लिये खर्चा किये पैसे तबादला होने के पहले निकाल लेना चाहता है। गेंदबाज बेचारा आम जनता की तरह पिटता रहता है। एकाध विकेट ले भी लेता है तो अगला आकर उसे फ़िर से पीटने लगता है। जैसे अपने साथी को आउट करने का बदला चुका रहा हो।
इस सबके के चक्कर में सबसे ज्यादा मरन बेचारी चियरलीडरानियों की होती है। हर छक्के-चौके पर उनको ठुमका लगाना पड़ता है। सौंन्दर्य की इत्ती खुलेआम बेइज्जती और कहीं नहीं खराब होती जितनी चीयरबालाओं की होती है। एकाध रन पर भले वे धीरे-धीरे हिलें लेकिन चौका-छक्का लगने पर उनको बहुत तेज हिलना पड़ता है। जैसे उनको बिजली नंगा का तार छू गया हो। वे बेचारी कोसती होंगी चौका-छक्का लगाने वाले खिलाड़ियों को- खुद तो रन लेने के लिये हिलता नहीं। छक्का मारकर हमारा कचूमर निकलवा रहा है। अरे इत्ता ही शौक है रन बनाने का तो दौड़कर रन लो। पसीना बहाओ। लेकिन नहीं। खुद तो हिलेगा नहीं। गेंद उछाल कर मैदान के बाहर कर दी। हमको हिलाकर धर दिया। हिटर कहीं का। चौकाखोर कहीं का। छक्केबाज नहीं तो।
सहवाग, युसुफ़ पठान, गिलक्रिस्ट, सचिन, जडेजा आदि खिलाड़ियों को भले ही चियरबालायें कुछ कहें भले न पेट के खातिर लेकिन मन ही मन इनको कोसती जरूर होंगी। अगर चियरबालाओं को उनका आदर्श खिलाड़ी चुनने के लिये पूछा जाये तो वे -क्रिकेट खिलाड़ी कैसा हो, सुनील गावस्कर जैसा हो जैसा कुछ कहेंगी। सुनील गावस्कर ने पहले विश्वकप में ओपनिंग की और साठ ओवर में नाटआउट रहते हुये कुल छत्तीस रन बनाये थे।
चियरबालायें बहुत खूबसूरत होती हैं। वे खूब सारा डांस-करती हैं। बहुत कम कपड़े पहनती हैं। इतने कम कि वे अगर खूबसूरत न हों और उनके पहने कपड़े गन्दे हों तो देश की आम जनता सी लगीं।
इतनी खूबसूरत और अल्पवसना होने पर भी खिलाड़ी उनकी तरफ़ आंख उठाकर नहीं देखते। बल्लेबाज और गेंदबाज दोनों की निगाह गेंद पर ही रहती है। इतने चपल सौंन्दर्य से अविचलित रहकर खिलाड़ी अपने खेल में लगे रहते हैं। पुराने समय में अप्सरायें तपस्यारत ऋषियों-मुनियों को डिगाकर उनकी तपस्या की गिल्लियां उड़ा देती थीं । लेकिन आजकल वे बेचारी दिन भर ठुमकती रहती हैं। खिलाड़ी पर उनका कोई जादू नहीं चलता। वह उनको लगातार ठुमके लगाने के लिये बाध्य करता रहता है।
क्या इससे यह समझा जाये कि आजकल खिलाड़ी पुराने जमाने के ऋषियों-मुनियों की तुलना में ज्यादा संयमी होते हैं। अपने पूर्वजों की तुलना में सौंन्दर्य के हमले ज्यादा सफ़लता से झेल सकते हैं। यह भी कारण हो सकता है कि तपस्या करते समय आदमी निठल्ला रहता है। जबकि खेलते समय मेहनत पड़ती है। सौंन्दर्य के लिये निठल्ले का विकेट गिराना हमेशा आसान रहता है एक पसीना बहाने वाले खिलाड़ी की तुलना में।
चीयरबालायें जब घर से अपने काम के लिये निकलती होंती तो शायद अपने-अपने इष्ट देवताओं से प्रार्थना करती होंगी-
१.हे भगवान, आज का मैच लो स्कोरिंग करा दो। कमरदर्द के मारे बुरा हाल है। आपसे तो कुछ छिपा नहीं भगवान। आज सहवाग,पठान को जल्दी आउट कर दो। केवल नीचे के ठुकठुकिया खिलाड़ियों को विकेट पर टिकाओ। सौ रुपये का प्रसाद चढ़ाउंगी।
२. हे ईश्वर, आज का मैच डकबर्थ-लुइस खाते में डाल दो। हफ़्ते भर तुम्हारा नाम लूंगी। आज मुझे जल्दी घर वापस आना है। बहुत सर दर्द हो रहा है। लगता है माइग्रेन उठने वाला है।
३.हे बजरंगबली, आज शीला का मैच हाई स्कोरिंग करा दो। अपने मेकअप और ब्यूटीशियन के बारे में बड़ी-बड़ी डींगे हांक रही है। जहां चौके-छक्के पड़ेंगे। सारा मेकअप खुल जायेगा टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की तरह।
४. हे प्रभु, आज कुछ ऐसा करा दो कि हर गेंद पर अम्पायर तीसरे अंपायर से निर्णय मांगे। मैच भले देर तक चले लेकिन गेंदों के बीच में अंतराल रहे ताकि हर गेंद के बाद लोकपाल बिल की तरह झटके न लगें।
५. हे भगवान, जो-जो खिलाड़ी हमको इस जन्म में अपने छक्के-चौकों से हिला-हिलाकर हलकान किये हैं उनको आप अगले जनम चीयरलीडरई का काम देना। साथ में उनको इस जनम के मैचों की यादे भी देना ताकि उनको यह एहसास हो सके कि उनकी हरकतों के चलते हमारे नाजुक शरीर की क्या गत होती होगी।
अगर कोई हमसे पूछे तो मैं यही चाहता हूं कि चीयरबालाओं से इतनी मेहनत न कराई जाये। कम से कम उनको बैठने के लिये स्टूल और पहनने के लिये पूरे कपड़े मुहैया कराये जायें।
खैर हमारी छोड़िये। आप बताइये आपके क्या विचार हैं इस बारे में? :)

41 responses to “फ़टाफ़ट क्रिकेट में चीयरबालाओं की स्थिति”

  1. आशीष श्रीवास्तव 'झालीया वाले!'
    इन चीयर लीडर का हीरो तो राहुल होगा !
    राहुल बाबा नहीं जी, द्रवीड !
  2. सिद्धार्थ जोशी
    अगर चीयरलीडर्स ने आपका यह आलेख पढ़ा तो कम से कम आपको तो दुआएं देंगी। कोई तो है जो उनके मन की बात को समझता है :)
    पर मैं सोच रहा हूं कि इन सुंदर बालाओं के मनोभावों के पढ़ने के लिए आपने क्रिकेट देखते समय चीयरलीडर्स को कितने ध्‍यान से देखा होगा… और भाभीजी सोच रहे होंगे कि आप “क्रिकेट” देख रहे हैं :)
    सिद्धार्थ जोशी की हालिया प्रविष्टी..लो आ गया नया ज्‍योतिषी
  3. Arvind Mishra
    लगता है किसी चीयर बाला से मुलाकात हो गयी थी :)
    इतना अंदरुनी खबर -मुला एकाध बात वह आपसे भी नहीं बतायी ….जैसा उसने कहा -
    हे भगवान् आज तो हम अपनी मासिक धरम से हैं ….
    Arvind Mishra की हालिया प्रविष्टी..शहर में मोर नाचा सबने देखा!
  4. jai kumar jha
    अब इस खेल में क्रिकेट तो बस नाम ही बचा है …पता नहीं कैसे-कैसे कुकर्म भरे खेल इस खेल के साथ तथा इस खेल के पीछे खेला जाता है…और इस खेल के खिलाडी भगवान का दर्जा पा रहें हैं…..सच कहा आपने आज के क्रिकेट खिलाडी के सामने भगवान व ऋषि मुनि सब नतमस्तक हैं….क्योकि इस खेल के साथ शरद पवार,मुकेश अम्बानी तथा सचिन जैसे भगवान जो हैं…
  5. देवेन्द्र पाण्डेय
    मस्त लिखा है! तश्वीर देख कर लगता है एक चीज छोड़ दी आपने…उनके बारे में कुछ नहीं लिखा जो बिचारे इतने सौंदर्य के सामने सजग मुद्रा में खड़े हैं.! चियर बालाओं को हाथ-कंधे पर उठाते वक्त उनपर क्या बीतती होगी ! जब आप से रहा न गया और एक पोस्ट लिख दिया।
  6. Amit Srivastava
    बियर बार में “बियर गर्ल” , क्रिकेट मैदान में “चियर गर्ल’ और दफ़्तर में “चेयर गर्ल” सबका अपना अपना महत्व है,सभी लुभावनी होती हैं,पर एक और खतरनाक गर्ल हैं, घर में पायी जाने वाली “fear girl” । उस पर भी प्रकाश डालें तनिक ।
    Amit Srivastava की हालिया प्रविष्टी..T-39 – C- लोको कॉलोनी
  7. काजल कुमार
    चीयरबालाओं के प्रति आपकी चिंताओं से सहमत हूं कि एक तो नचाने से पहले इनके कपड़े उतरवा लिए जाते हैं फिर बैठने को स्टूल तक भी नहीं !
  8. मनोज कुमार
    स्टेडियम में चियर रमणी अनमनी-सी है अहो।
    अल्पवसना किस भार से संतप्त हो देवी कहो?
    धीरज धरो संसार में किसके नहीं दुर्दिन फिरे,
    ठुमके लगाने से कहीं छक्केबाज के विकेट गिरे।
    कुछ और कीजिए अबला, जो ये भूतल पर गिरे।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..पक्षी प्रवास पर क्यों जाते हैं
  9. प्रवीण पाण्डेय
    क्या करें इन खिलाड़ियों का जिन्होने चीयरबालाओं का जीवन बड़ा व्यस्त कर दिया है।
  10. सुशील बाकलीवाल
    एक तो लगातार हिलते रहने के कारण शरीर को वैसे ही अधिक गर्मी-पसीना झेलना पडता होगा और उपर से यदि कपडे और पूरे पहना दिये जावें तो हिलेंगी या पसीना ही पोंछते दिखती रहेंगी ?
  11. Ghanshyam Maurya
    चीर लीडर्स को देख कर कई बार मेरे मन में भी यह बात आई की वास्तव में उनका काम कितना थकाऊ है लेकिन उन्हें कोई क्रडिट नहीं मिलता लेकिन आपने तो इस विचार को लेकर एक पूरी की पूरी शानदार पोस्ट लिख दी है. यह सिर्फ आप ही कर सकते हैं.
  12. Ghanshyam Maurya
    चीअर लीडर्स को देख कर कई बार मेरे मन में भी यह बात आई की वास्तव में उनका काम कितना थकाऊ है लेकिन उन्हें कोई क्रडिट नहीं मिलता लेकिन आपने तो इस विचार को लेकर एक पूरी की पूरी शानदार पोस्ट लिख दी है. यह सिर्फ आप ही कर सकते हैं.
    Ghanshyam Maurya की हालिया प्रविष्टी..ज्‍योतिषी
  13. Prashant Priyadarshi (जो जानता है कि कुश चोर नहीं है)
    और तिस पर भी मुस्कुराता चेहरा होना चाहिए..
    घोर कलजुग महाराज.. घोर कलजुग!!!
    Prashant Priyadarshi (जो जानता है कि कुश चोर नहीं है) की हालिया प्रविष्टी..ये सिस्टम जो हमें भ्रष्ट होने पर मजबूर करता है
  14. भारतीय नागरिक
    आपकी चिन्ताओं से इत्तफाक… चियर लीडरानी जी आपके इस लेख पर बलैआ ले डालेंगी..
  15. सतीश सक्सेना
    आज की पोस्ट चीयरबालाओं को समर्पित है….आप आल राउन्डर हैं गुरु ! ब्लागर वर्डकप टीम में उपकप्तान बनोगे ! शुभकामनायें !!
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..खंडित विश्वास -सतीश सक्सेना
  16. mahendra mishra
    गावस्कर के ज़माने में हर किसी को पूरे कपडे पहिनने पड़ते थे अभी तो २०-२० क्रिकेट में चियर्स गर्ल को कम कपडे पहिनाए जा रहे हैं . मैं तो सोचता हूँ की आने वाले समय जब १०-१० क्रिकेट करवाया जावेगा तब क्या होगा ? …
    आभार
  17. Khushdeep Sehgal, Noida
    1983 और 2011 का फ़र्क…
    उस वक्त का क्रिकेट सफ़ेद था, आज का क्रिकेट रंगीन है…
    जय हिंद…
    Khushdeep Sehgal, Noida की हालिया प्रविष्टी..It happens only in Indiaअद्भुत तस्वीरेंखुशदीप
  18. aradhana chaturvedi "mukti"
    वाह ! क्या बात कही. सौंदर्य की खुलेआम बेइज्जती. किसी ने भी इतनी सूक्ष्मदृष्टि से नहीं देखा होगा इस पूरे मामले को :-)
    लेकिन आज तो व्यंग्य के साथ-साथ कुछ दर्द भी दिखा आपकी पोस्ट में … जैसे कि ” अगर कोई हमसे पूछे तो मैं यही चाहता हूं कि चीयरबालाओं से इतनी मेहनत न कराई जाये। कम से कम उनको बैठने के लिये स्टूल और पहनने के लिये पूरे कपड़े मुहैया कराये जायें।”
    aradhana chaturvedi “mukti” की हालिया प्रविष्टी..खुश रहने की कुछ वजहें
  19. Anonymous
    ये मासिक धरम क्या होता हैं ?? इस विषय पर वैज्ञानिक जानकारी देने की व्यंग्यात्मक कृपा करे सुधिजन . इस्लाम धर्म , हिन्दू धर्म , ईसाई धर्म की तरह ही अगर मासिक धर्म हैं तो फिर ये अधर्म कब अब गया
  20. Shiv Kumar Mishra
    बहुत बढ़िया पोस्ट.
    बैट्समैन के हट जाने से बालर का अमेरिका के सातवें बेड़े की तरह लौट जाने की उपमा अद्भुत है. एक से बढ़कर क्रिकेट के खेल पर बड़ी बारीक दृष्टि डाली है आपने.
    मुझे यह लगता है की क्रिकेट खुद इतना मनोरंजक खेल है. उसके लिए बाकी चिरकुटई जैसे वीजे, दीजे, चीयर बालों का नाच वगैरह नहीं होने से भी चल जाएगा. लेकिन अब हम उस ज़माने में रह रहे हैं जिसमें एक चीज को दुसरे से जोड़ देना बढ़िया बिजनेस सेन्स कहलाता है.
  21. वन्दना अवस्थी दुबे
    सभ्य होने क इल्जाम!
    हां, इल्जाम ही है ये :)
    “सौंन्दर्य की इत्ती खुलेआम बेइज्जती और कहीं नहीं खराब होती जितनी चीयरबालाओं की होती है”
    सही है. तकलीफ़्देह भी.
    “क्या इससे यह समझा जाये कि आजकल खिलाड़ी पुराने जमाने के ऋषियों-मुनियों की तुलना में ज्यादा संयमी होते हैं।”
    न, सौंदर्य के इस मुक्त और सुलभ दर्शन की उन्हें आदत हो गयी है.
    “अगर कोई हमसे पूछे तो मैं यही चाहता हूं कि चीयरबालाओं से इतनी मेहनत न कराई जाये। कम से कम उनको बैठने के लिये स्टूल और पहनने के लिये पूरे कपड़े मुहैया कराये जायें।”
    काश कोई पूछ ही ले……
    व्यंग्य के पीछे खूब दर्द समेटा है चीयरबालाओं का, जिनके मन के बारे में कोई सोचता ही नहीं.
  22. Shikha Varshney
    बेचारी चियर बलाएँ…कुछ समय बाद खेल गायब होगा बस यही रहेंगी फील्ड पर.
    Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..दिल बोले अन्ना मेरा गाँधी
  23. Abhishek
    हे प्रभु आप धन्य हैं :)
    शुरू में तो ४-५ पैराग्राफ निकल गए तो हमें लगा कि अभी तक चीयर लिडरनियाँ आई ही नहीं. लेकिन जब आई तो बिजली के नंगे तार के झटके के साथ. गजब !
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..खिली-कम-ग़मगीन तबियत भाग २
  24. ashish rai(kanpur wale)
    लगता है आई पी एल बहुते मन से देखा जा रहा है . चीयर बालाओ की परेशानिया आंखे नम कर गयी . यू पी पी एल भी शुरू हो गया है , यहाँ आपकी पोस्ट पढ़कर चीयर बालाओ को जगह नहीं दी गयी .
  25. सतीश चन्द्र सत्यार्थी
    क्या बात है… चलिए किसी को तो चीयरलीडरानियों से सहानुभूति हुई… वरना आजकल तो जिनकी क्रिकेट में बिलकुल दिलचस्पी नहीं वो भी पोपकोर्न वगैरह लेके बैठ जाते हैं…. :)
    सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..दुनिया की सबसे बेहतरीन और तेज इंटरनेट सेवा
  26. नितिन
    बहुत ख़ूब!
    नितिन की हालिया प्रविष्टी..विश्व विकास यात्रा
  27. amrendra nath tripathi
    चीयर बालाओं के ऊपर सुंदर लिखा है | हास्य में संजीदा पुट भी | आभार !!
    amrendra nath tripathi की हालिया प्रविष्टी..कविता – कुपंथी औलाद रफ़ीक शादानी
  28. मीनाक्षी
    एक दिन चीयर बाला की मेहनत, लगन, सहनशीलता और अनुशासन से लोग सीख लेंगे…
  29. चंद्र मौलेश्वर
    हँसी-हँसी में एक गम्भीर पोस्ट लिख डाली। सच को उजागर करना कितना कडुवा होता है :(
    चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..गर्मी-Summer
  30. vijay gaur
    सुन्दर है “अफ़सर मलाईदार पोस्ट की कीमत चुकाकर आया है”
    “चौकाखोर कहीं का। छक्केबाज नहीं तो। ”
    “हे भगवान, आज का मैच लो स्कोरिंग करा दो। कमरदर्द के मारे बुरा हाल है। आपसे तो कुछ छिपा नहीं भगवान। आज सहवाग,पठान को जल्दी आउट कर दो। केवल नीचे के ठुकठुकिया खिलाड़ियों को विकेट पर टिकाओ। सौ रुपये का प्रसाद चढ़ाउंगी।”
    vijay gaur की हालिया प्रविष्टी..तेहरान की सड़क पर
  31. Ashish
    “वे अगर खूबसूरत न हों और उनके पहने कपड़े गन्दे हों तो देश की आम जनता सी लगीं ”
    मौज मौज में कड़वा सच कह गए यही खासियत है आपकी…..
    –आशीष श्रीवास्तव
  32. sanjay jha
    चीयर बालाओं का मैदान पर जाने से पहले के मनः स्थितियों का बरा मार्मिक चित्रण किया है…………..आपके इस दुःख में हम आपके साथ हैं……………….
    प्रणाम.
  33. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] [...]
  34. : फ़टाफ़ट क्रिकेट -खलीफ़ा तरबूजी के बमकने से लेकर धोनी की फ़िनिशिंग तक
    [...] नीचे और चीयरबालाओं के ठुमकों की तरह उचकती-गिरती रहती हैं। ब्लॉड प्रेशर डालर की कीमतों [...]

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