Sunday, November 25, 2012

धूप क्या ऐश से आराम फ़र्मा है


 
 
ये हमारे मेस के बाहर से लिया हुआ फोटो! धूप क्या ऐश से आराम फ़र्मा है पेड़ों पर देखिये तो जरा!
अर्चना जी की धूप छांह की बात से ये कविता याद आ गयी:

पुन: तपेगी वात
झरेंगे पीले-पीले पात
सहेंगे मौसम के आघात
बता दो पात-पात पर लिखे गये
अनुबन्धों का क्या होगा!

धूप-छांव में बुने गये
अनुबन्धों का क्या होगा!

- महेश सक्सेना

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