Tuesday, May 14, 2013

हमने कई नजारे देखे

http://web.archive.org/web/20140420081350/http://hindini.com/fursatiya/archives/4306

हमने कई नजारे देखे

आज फ़िर सुबह हुई। कसमसाते हुये उठे। पैंट-शर्ट को, अपने लक की तरह, पहिन के टहलने निकले। जूते में पैर घुसा लिया। एक एड़ी बहुत देर तक पूरी तरह से जूते में घुसी नहीं। सोचा कुछ देर में अपने आप एडजस्ट हो जायेगी- जैसे शादी-शुदा जोड़े कुछ दिन में एडजस्ट कर लेते हैं। लेकिन जूते और ऐड़ी में पटी नहीं। फ़िर एक पुलिया के पास रुककर जूते को थोड़ा उदार किया, जूते और पैर में समझौता करवाया।

हनुमान मंदिर के पास कुछ भिखारी लोग बैठे दिखे। जित्ते मर्द उत्ते ही करीब मादा। संख्या दो अंको के पार। कुछ अखबार बांच रहे थे। हंसते-मुस्कराते-बतियाते-चुहलबाजी करते वे दानियों के इंतजार में दिखे। एकदम दफ़्तर का सीन लग रहा है। सुबह-सुबह जैसे दफ़्तर में हाय-हेलो गुड मार्निंग जैसी चहल-पहल मंदिर के फ़ुटपाथ पर दिख रही थी।

कुछ आगे दो भिखारी हड़बड़ाते हुये भागे चले आ रहे थे। दफ़्तर में देरी होने पर कोई दफ़्तरिया भागता जा रहा हो जैसे। आगे-आगे मर्द भिखारी, उसके पीछे महिला मागने वाली। भीख के मामले में भी महिला अनुगामिनी ही है। महिला कुछ-कुछ बड़बड़ाती जा रही थी। शायद देरी हो जाने के चलते होने वाले संभावित नुकसान के बारे में सोचकर हलकान हो रही हो।

एक बुजुर्गवार धीरे-धीरे टहल रहे थे। ऐसे टहल रहे थे जैसे लय में टहल रहे हों। दो कदम धीरे-धीरे फ़िर तीसरा झटके से। जैसे गुलजार की त्रिवेणी हो। दो लाइनों के बाद तीसरी लाइन झटके वाली।

एक साहब ऐसे टहल बेमन से जैसे टहल रहे थे जैसे कोई बच्चा बेमन से स्कूल भेज दिया गया को। अपने को धकिया रहे थे धीरे-धीरे आगे।

टहलते हुये तेजी से हाथ हिलाते हुये लोग ऐसे लगते हैं जैसे हाथ हिलाने के बहाने वे अपने आसपास की जगह को अपने कब्जे में कर रहे हों। जगह और हवा को भी। जैसे दुकानदार अपनी दुकान के सामने की फ़ुटपाथ पर कब्जा करता है।

फ़ुटपाथ पर टहलते हुये बगल की चट्टानों को भी देखते जा रहे थे। चट्टाने लाखों वर्ष पुरानी हैं। फ़ुटपाथ की झकाझक टाइलों के मुकाबले वे कम हसीन लग रहीं थी। चट्टाने सड़क किनारे चुपचाप बैठी सड़क पर आते जाते लोगों को देख रही थीं। जैसे घर के बुजुर्ग घर के जवान/बच्चों को लदर-फ़दर आते-जाते देखते रहते हैं।
एक कार बीच सड़क पर रुकी थी। गाड़ीवान बार-बार चाभी दे रहा था। लेकिन गाड़ी बस घों-घों कर रही थी। खड़ी थी। फ़िर उसने कसकर चाबी भरी। गाड़ी कुनमुनाते हुये चले दी। कायदे से चाबी भरने पर सब लोग चलने लगते हैं।

एक महिला अपने पैर के साइज की सवा गुनी स्लीपर पहने टहलती जा रही थी। एक दूधवाला फ़टफ़टिया पर दो दूध के बड़े पीपे लादे शाहरूख खान की तरह मोटर साइकिल लहराते हुये चला जा रहा था। तीन महिलायें एक पुलिया के पास मुस्कराते हुयी बतिया रही थीं। जैसे बैठने के लिये तैयार होकर आयी हों। एक बुजुर्ग महिला अपनी एक पीढी आगे की बच्ची के साथ टहल रही थी। ढीला-ढाला गाउन नुमा कुछ पहने। बच्ची लगता है उनको जबरियन उठा लाई हो हिलाते-डुलाते टहलाने।

आगे एक जगह तीन बच्चे पालीथीन में कुछ अमिया और ढेले लिये खड़े थे। अमिया पास के पेड़ से ढेले मार कर तोड़ी थी। अपनी कमाई से खुश दिखे।

सड़क किनारे की पगडंडी से एक साइकिल सवार निकलकर अचानक सड़क पर आ गया। जैसे कोई टीवी पर कोई ताजी खास खबर। वो हॉकर था। उचककर साइकिल चलाता हॉकर लोगों के यहां खबरे देने निकला था।
टहलते हुये देखा सूरज कंधे पर हाथ धरे मुस्करा रहे थे। हेलो-हाय हुई। बोले -बहुत दिन बाद दिखे।

हम बोले हां भाई। बिजी रहते हैं टहलने का टाइम नहीं मिलता।

वो मुस्कराता हुआ अपनी ड्यूटी बजाने चला गया। हम भी वापस आ गये।

सुबह सड़क पर टहलता हुआ आदमी और क्या कर सकता है। :)

मेरी पसंद

सुबह उठे हम आज जी, बहुत दिनों के बाद,
मुंह धोये लेने गये, सुबह टहल का स्वाद।

हमने आज कई नजारे देखे,
दौड़-भागते बच्चे प्यारे देखे।

तीन मेहरियां बतलाती देखी,
कुछ जरा-जरा मुस्काती देखीं।

चप्पल एक की बड़ी बहुत थी,
झपट टहलती महिला देखी।

बुढऊ पुलिया पर चुप बैठे थे,
साइकिल पर जाता हॉकर देखा।

एक फ़टफ़टिया पर दूध धरे था,
सीनों के  हिलते हुये नजारे देखे।

नाना संग टहलती नातिन देखी,
जिंदगी रस्ते पर आते-जाते देखी।

मटकी सर पर धरे जा रहीं थीं
मेहनत कस महिलायें देखीं।


सूरज चढता देखा आसमान पर,
किरणें बप्पा से बतियाती देखीं।

सड़क रौंदते ट्रक-ट्रैक्टर देखे,
हौले-हौले चलता रिक्शा देखा।

सात बजे तो लौट पड़े हम,
मोबाइल पर कुछ स्टेटस देखे।

सुबह-टहल का सीन,खैंचा बहुत दिनों के बाद,
चाय आय गयी है गुरु, लीजिये आप भी स्वाद।

-कट्टा कानपुरी

13 responses to “हमने कई नजारे देखे”

  1. राहुल सिंह
    मनभावन, स्‍वादिष्‍ट.
    राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..लघु रामकाव्‍य
  2. PN Subramanian
    लग रहा है किसी सीरियल की पृष्ठभूमि हो. इत्ते में ही मजा आ गया.
    PN Subramanian की हालिया प्रविष्टी..अर्जुन के पताका में हनुमान क्यों
  3. प्रवीण पाण्डेय
    इतने नजारे जब सुबह सुबह दिख जायें तो, बिस्तर में अलसाने का आनन्द हमें त्यागना ही पड़ेगा।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉग व्यवस्था, तृप्त अवस्था
  4. राजेन्द्र अवस्थी
    वाह…..बड़ी सरलता से आपने वो सब कह दिया जिसकी चर्चा हम सब चाह कर भी नही कर पाते…आपके इस विश्लेष्णात्मक लेख की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है।
  5. राजेन्द्र अवस्थी
    वाह…..बहुत खूब….।
  6. shikha varshney
    वाह क्या नज़ारे हैं . सुबह टहलना काफी फायदेमंद होता है :).
  7. Dr. Monica Sharrma
    सारे नज़ारे हमारे आस पास ही …. पर देख कहाँ पाते हैं ….
    मटकी सर पर धरे जा रहीं थीं
    मेहनत कस महिलायें देखीं।
    सूरज चढता देखा आसमान पर,
    किरणें बप्पा से बतियाती देखीं।
    हर पंक्ति सहज और जीवंत .
    Dr. Monica Sharrma की हालिया प्रविष्टी..शब्दों का साथ खोजते विचार
  8. वीरेन्द्र कुमार भटनागर
    दिलचस्प नज़ारे और आपका विनोदी अन्दाज़े बयाँ, यही कह सकते हैं कि टहलना जारी रखा जाए :)
  9. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    आपकी देखने की क्षमता बेजोड़ है।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..लंपट (कहानी)
  10. suman
    इन सब नजारों के साथ साथ
    कुत्ते की जंजीर थामे भागते दौड़ते शर्मा जी को देखा
    की नहीं ?
    सुबह टहलने के साथ विनोद भरी बाते अच्छी लगी !
  11. aradhana
    क्या गज़ब उपमाएं देते हैं आप भी–एक बुजुर्गवार धीरे-धीरे टहल रहे थे। ऐसे टहल रहे थे जैसे लय में टहल रहे हों। दो कदम धीरे-धीरे फ़िर तीसरा झटके से। जैसे गुलजार की त्रिवेणी हो। दो लाइनों के बाद तीसरी लाइन झटके वाली।
    वैसे ये बात हमने फेसबुक पर भी कही थी और यहाँ भे एकः रहे हैं कि थोड़ी और मेहनत कीजिये तो रमई काका उर्फ बहिरे बाबा के आसपास पहुँच जायेंगे. ऊ का कहते हैं कि कविता में आपका भविष्य उज्जवल टाइप का है. बस थोड़ी मेहनत की ज़रूरत है. सो आप करेंगे नहीं. आप ठहरे फुरसतिया :) खाली फुर्सत में लिखते हैं, अपना कीमती टाइम काहे बर्बाद करेंगे :)
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..बैसवारा और आल्हा-सम्राट लल्लू बाजपेयी
  12. गौरव शर्मा
    बढ़िया
  13. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] हमने कई नजारे देखे [...]

No comments:

Post a Comment