Thursday, November 06, 2014

कैमरे का खौफ तो नहीं

अनूप शुक्ल की फ़ोटो.पिछले कुछ दिनों से पुलिया पर लोग बैठे नहीं दिखे। कुछ दिन पहले अचानक आई आंधी में पुलिया के पीछे का पेड़ आधा उखड गया शायद तब से।पेड़ की जैसे एक बांह उखड गयी हो। इसके चलते पुलिया पर आड़ और छांह की कमी हो गयी है। लेकिन जाड़े के चलते धूप तो गुनगुनी हो गयी है। लोग आने चाहिए आराम फरमाने। क्या पता आते हों लेकिन उस समय हम वहां मौजूद न रहते हों।

अनूप शुक्ल की फ़ोटो. आज सुबह पुलिया के पास से ये बच्चे साइकिल पर सवार निकले। कुछ दिन पहले कुछ बच्चे तास खेल रहे थे। हमें देखकर फूट लिए। क्या पता हमको 'क़ानून का रक्षक' समझ लिए हों जिसके हत्थे पड़ना मुसीबत होती है।

आज दोपहर को गणेश मिले सर्वहारा पुलिया पर। अशोक लेलैण्ड में काम करते हैं। अशोक लेलैंड से फैक्ट्री को जिस सामान सप्लाई होती है उसमें अगर कोई समस्या आती है तो उसको सुधारने के लिए आये हैं। मूलत: तमिलनाडु के रहने वाले हैं। काम बंगलौर के पास होसुर में करते हैं जहाँ अशोक लेलैन्ड का उत्पादन का काम होता है। अब यहाँ जबलपुर में सेवा देने आये हैं। इस लिहाज से तमिल फर्राटे से और कन्नड़, हिंदी अग्रेजी थोड़ी-थोड़ी मतलब ' क्वंचम क्वंचम' (तमिल) जानते-बूझते हैं।

इससे सिर्फ यही साबित होता है कि ज्यादा भाषाएँ सीखने में यायावरी का ख़ासा योगदान होता है। अब यायावरी मजे के लिए हो या मजबूरन यह अलग बात। हमने भी 30 साल पहले की साईकिल से भारत यात्रा के दौरान तमिलनाडु में बिचरते हुए कुछ तमिल शब्द सीख लिए थे जो अब भी याद आ जाते हैं । ऐसे ही।
पुलिया से चलते हुए हम भी कहाँ टहलाने लगे आपको।

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