Tuesday, November 18, 2014

पुलिया पर इन्दल



आज पुलिया पर इन्दल से मुलाक़ात हुई।फैक्ट्री से 2011 में रिटायर।1972 में भर्ती हुए थे।हीट ट्रीटमेंट सेक्सन में काम करते थे।25 किमी दूर गांव से आये हैं पेंशन के सिलसिले में।जीवित होने का प्रमाणपत्र लेने के लिए बैंक में।

तीसरी चौथी पास इन्दल फ़ार्म में पेंशन पेपर आर्डर नंबर नहीं भर पा रहे थे। हमने फिर वहीं पुलिया पर खड़े होकर उनका फ़ार्म भरा और तब फैक्ट्री गए।

इंदल नाम से याद आया कि महोबे के वीर आल्हा का पुत्र अपने चाचा ऊदल के साथ मेला घूमने गया था। वहां उसका अपहरण हो गया। इस पर लौटकर वापस आने आल्हा ने अपने भाई ऊदल (जिसे वो जान से ज्यादा चाहते थे) खूब पिटाई की। आल्हा में लिखा है:

"हरे बांस आल्हा मंगवाए औ ऊदल को मारन लाग।"

इसपर उनकी रानी मल्हना ने समझाया:

"हम तुम रहिबे जो दुनिया में इंदल फेर मिलेंगे आय,
कोख को भाई तुम मारत हौ ऐसी तुम्हई मुनासिब नाय।"

इसके बाद आल्हा ऊदल को निकाल देते हैं।बाद में ऊदल अपने भतीजे इंदल को खोजते है।उसका ब्याह होता है उस लड़की से जो इंदल के अपहरण का कारण बनी थी।

पुलिया के बहाने कहाँ-कहाँ टहल लिए।

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