Saturday, November 01, 2014

पुलिया पर सन्नाटा मत होने दें

आज दोपहर को पुलिया के पास से होते हुए लंच के लिए कमरे पर आया तो पुलिया पर ये झाड़-झंखाड़ रखे हुए थे। आसपास देखा तो कोई दिखा नहीं। खाना खाने आ गए मेस में। 

लंच के बाद देखा तो झाड़-झंखाड़ वैसे ही रखा था। उसी समय पुलिया के पास से सर पर लकड़ी लादे कुछ महिलायें गुजरीं। वे शायद सुबह निकली होंगी लकड़ी बीनने के लिए। दोपहर हो गयी लौटते-लौटते। आसपास खूब सारे पेड़ हैं। उनके नीचे गिरी लकड़ियाँ बीन कर ईंधन जुटाती होंगी।

कल इसी जगह पर तीन बच्चियां स्कूल से वापस जाती दिखीं थीं। एक बच्ची सडक के किनारे लगे जगंली पौधों के फूल इकट्ठा करती जा रही थी। उसके साथ की एक लडकी एक पैर से लंगडाते हुए चल रही थी। शायद उसको पोलियो रहा हो। आजकल तो पोलियो की दवा सबको पिलाते हैं। क्या पता यह बच्ची कैसे चूक गयी।

रात को जब वापस लौटे तो पुलिया पर सन्नाटा था। कोई बैठा नहीं था वहां। लगता है महीने के अंत में सब आराम कर रहे हों।
आज दोपहर को पुलिया के पास से होते हुए लंच के लिए कमरे पर आया तो पुलिया पर ये झाड़-झंखाड़ रखे हुए थे। आसपास देखा तो कोई दिखा नहीं। खाना खाने आ गए मेस में।
लंच के बाद देखा तो झाड़-झंखाड़ वैसे ही रखा था। उसी समय पुलिया के पास से सर पर लकड़ी लादे कुछ महिलायें गुजरीं। वे शायद सुबह निकली होंगी लकड़ी बीनने के लिए। दोपहर हो गयी लौटते-लौटते। आसपास खूब सारे पेड़ हैं। उनके नीचे गिरी लकड़ियाँ बीन कर ईंधन जुटाती होंगी।
कल इसी जगह पर तीन बच्चियां स्कूल से वापस जाती दिखीं थीं। एक बच्ची सडक के किनारे लगे जगंली पौधों के फूल इकट्ठा करती जा रही थी। उसके साथ की एक लडकी एक पैर से लंगडाते हुए चल रही थी। शायद उसको पोलियो रहा हो। आजकल तो पोलियो की दवा सबको पिलाते हैं। क्या पता यह बच्ची कैसे चूक गयी।
रात को जब वापस लौटे तो पुलिया पर सन्नाटा था। कोई बैठा नहीं था वहां। लगता है महीने के अंत में सब आराम कर रहे हों।

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