Tuesday, September 22, 2015

पसीना मेहनतकश इंसान का प्राकृतिक श्रंगार होता है


सुबह उठते हुए 6 बज गए। बाहर सड़क पर बच्चे अभी भी काम कर रहे थे। कुछ हाथ गाड़ी से गर्म कोलतार सड़क पर डाल रहे थे।कुछ उसको सड़क पर समतल कर रहे थे। कोई लकड़ी की पटिया की सीध में कोलतार पर गिट्टी ठोंक रहा था। एक आदमी पहले बनी सड़क पट्टी और ताज़ी पट्टी के जोड़ को गैस बर्नर से पिघला कर दोनों को मिला रहा था। दो अलग तापमान की सड़क को मिलाने के लिए मिलन बिंदु को एकताप पर ला रहा था।
सद्दाम की ड्यूटी हाथ गाड़ी में गर्म कोलतार सप्लाई की थी। फोटो भी खींचता जा रहा था। हाथ में दस्ताना था। फेसबुक पर फोटो दिखाए तो बोला पढ़ने में नई आ रहा। अंग्रेजी में नाम लिख दीजिये। काम करते हुए बच्चे की नाक और होंठ के बीच पसीने की बूँद ऐसे किसी फूल पर ओस की बूँद की तरह चमक रही थी।पसीना मेहनतकश इंसान का प्राकृतिक श्रंगार होता है। अद्भुत, अनूठा, अलौकिक,अप्रतिम श्रंगार।

वहां से चिड़िया मोड़ के लिए बस पकड़े। कुछ महिलाएं बच्चों को स्कूल
छोड़ने जा रहीं थीं। कुछ आदमी काम पर। आठ रूपये की यात्रा करके चिड़िया मोड़ पहुंचे। चाय की दुकान पर चाय पी। वहीं अपनी पत्नी के साथ फुटपाथ पर बैठकर चाय पीते बोऊ दास मुल्ला मिले। कागज-कूड़ा बीनने का काम करते हैं। साथ बच्चे हैं। कोई रिक्शा चलाता है कोई ऑटो। होंठ पान मसाला की मार से घायल थे मुल्ला जी के।

चिड़िया मोड़ के आगे मन्दिर के पास फूल बेचती मिली करुणा। नाम पूछा तो बंगाली उच्चारण में बोली-- 'कोरुना'। हमें लगा ये कोरुना कौन नाम होता होगा। फिर समझ में आया ओ, करुणा। फ़ोटू दिखाया तो हंसती हुई दुकान पर खड़े एक आदमी को बताती हुई बोली-- देखो हमारा फोटो उठाया।

आगे एक की दुकान दिखी। याद आया कि यहां पांच सात साल पहले भी पिए थे चाय। सासाराम के ड्राइवर की फोटो खींचे थे। उसका पता हमारे पास अभी भी है। उसको फोटो भेजना है। चाय का पैसा देने नहीं दिए थे वो लोग हमको उस दिन।


उस समय हमारा मोबाईल नोकिया का ई-71 था। वह पत्नी ने दिया था भेंट। अब बेटे का दिया सैमसंग गैलक्सी है। कितना समय बदल गया। कितने नए दोस्त बन गए इस बीच। नए ,प्यारे बेहद प्यारे।

एक बुजुर्ग बड़ी धीमी गति से चलते हुए आ रहा था। गर्दन में कुछ तकलीफ के चलते टेढ़ी थी गर्दन। एक नल के पास बैठी कुछ महिलाएं पानी भर रहीं थीं। एक सन्मार्ग अखबार बांच रही थीं।

आगे गन एन्ड शेल फैक्ट्री काशीपुर मिली। स्थापना वर्ष 1802 मतलब 213 साल पुरानी। सबसे पुराने औद्योगिक संस्थान। खड़े होकर देखने लगे तो हाथ में कैमरा देखकर कई लोग बोले बारी बारी से--फोटो नहीं उठाना। यह फोटो नेट पर उपलब्ध है। पर फोटो खींचने के लिए टोंकना यह बताता है कि लोग अपने साथ जुडी चीजों से असंपृक्त नहीं हैं। जुड़ाव है। यह कोलकता की खासियत है शायद।


एक आदमी सड़क किनारे खड़ी कार की छत पर लेटा सो रहा था। मन किया जगाकर रास्ता पूँछ लें पर फिर नहीं किये डिस्टर्ब।

एक छोटी जगह में बोरी में छोटी शीशी भरते हुई बच्ची दिखी। पैर में हवाई चप्पल और बिछिया। ये छोटी शीशियां 400 रूपये बोरी के हिसाब से जाती हैं। बोरी में कितनी आती हैं यह नहीं बता पाया लड़का। सिंदूर आदि पूजा का सामन भरकर बेंचने के काम आती हैं यह शीशी।


आखिर में काशीपुर घाट पर गंगा नदी मिली। स्टीमर नाव से नदी पार जाते यात्री दिखे। नदी में नहाते लोग दिखे। पानी में कुल्टी मारकर कूदते और किनारे तैरते बच्चे दिखे।वहीं एक महिला किनारे कपड़े भी धो रही थी। भगीरथी नाम है यहां नदी का एक महिला ने बताया। हम गंगा की विशाल जलराशि को कुछ देर निहारते रहे और सोचते रहे इसमें कानपुर से आया पानी भी मिला होगा। पानी आगे चला जा रहा था जीवन प्रवाह की तरह।


लौटे रिक्शे से। सईद नाम था रिक्शा वाले का। उमर 52 साल। तीन बच्चा। एक लड़का सब्जी बेचता है दूसरा मनी बैग बेचता है। और एक ठो लड़की । बड़ा लड़का और लड़की का शादी बना दिया। रिक्शा तृणमूल ने दिया। 5000 रूपये चन्दा लेकर। पहले सीपीएम में थे। क्या करें -गरीब आदमी किसी पार्टी में नहीं रहेगा तो मारा जाएगा।

5000 में पुराना रिक्शा मिलता है। 10000 में नया। 5000 रूपये लेकर नया रिक्शा दिलाया पार्टी। क्या पता रिक्शा सरकार की तरफ से मुफ़्त मिला हो। 5000 रुपया पार्टी फंड में या स्थानीय कार्यकर्ता के पास गया हो।

चिड़िया मोड़ पर अख़बार की बिक्री खरीद करते दो हॉकर दिखे। हम प्रभात खबर अख़बार खरीदे। नारियल पानी पिए थे जब पिछली बार आये थे। इस बार नहीं पिए।


दमदम के लिए बस पकड़े। बेध्यानी में आगे चले गए। उतरकर पूछे तो रिक्शा वाला बोला– 30 बी बस पकड़िये। दूर है। इस बार फिर गेस्ट हॉउस के आगे निकल गए। फैक्ट्री के पास तक। उतरकर पीछे आये।

दो बार गन्तव्य से आगे निकलकर जाना ऐसे ही लगा जैसे ड्रोन हमले में बम कभी निशाने पर न लगे। या फिर जनकल्याण के कामों के लिए आवंटित पैसा निजकल्याण में लगे।

मोड़ पर मिले सुनील कुमार चक्रबोर्ती। यही रिक्शे वाले कल सबसे पहले दिखे थे। उम्र 54 साल। बच्चे हैं नहीं। शादी बनाया 9 साल पहले। पत्नी की उम्र 35 साल। बीबी डांट के रखती होगी ? के जबाब में बोले-ख्याल भी तो रखती है।

लौटकर कमरे पर आये। चाय मंगाए। पीते हुए पोस्ट लिख रहे हैं। अब आप पढ़िए। मजे से रहिये। खूब खुश। बिंदास। ठीक न। आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।


                                        



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